Friday, April 19, 2024
Google search engine
HomeIndiaक्या सागर किनारे के महानगर डूब जाएंगे?

क्या सागर किनारे के महानगर डूब जाएंगे?

आईपीसीसी के अनुसार यदि ग्लोबल वार्मिंग की रफ्तार में सुधार के उपाय नहीं किए जाएंगे, तो समुद्र का जलस्तर 15 मिलीमीटर हर वर्ष बढ़ सकता है जो दुनिया भर के महानगर जो समुद्र किनारे बसे हुए हैं, समुद्र की अतल गहरे पानी में डूब जाएंगे जैसे कृष्ण की बनाई नगरी द्वारिका डूब गई थी। 1901 से 1971 तक समुद्र जल स्तर सालाना 1.3 मिलीमीटर रहा। 1971 से 2006 तक यह बढ़कर 3.7 मिलीमीटर हो गया। खतरे की चेतावनी थी यह दुनिया के लिए साथ ही चिंता की भी। 1901 से 2018 तक समुद्र के जल स्तर बढ़ने में औसतन 0.20 मिलीमीटर प्रतिवर्ष बढ़ा। रिपोर्ट पर चर्चा करते हुए संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने चिंता प्रकट कर कहा यदि स्थिति में सुधार नहीं किया गया तो बांग्लादेश, चीन, भारत, नीदरलैंड जैसे देशों पर खतरा होगा, तटीय शहर या द्वीप ही नहीं बैंकाक, मनीला, शेनजेन, दुबई, मुंबई, कोलकाता के डूब जाने का अंदेशा है। छोटे छोटे द्वीपों की चर्चा अति भयावह होगी। जैसे कैरेबियाई और प्रशांत के द्वीप दुबे तो इनका अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। सबसे बड़ी चिंता इस बात की है कि यदि ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन यूं ही होता रहा तो समुद्र जल स्तर 2100 आते आते दो मीटर ऊंचा उठ जाएगा। साल 2300के बाद यह जल स्तर 15 मिलीमीटर तक बढ़ सकता है। यह वृद्धि सालाना हो सकती है। 10 साल में 15 सेंटीमीटर तो 50 वर्षों में 75 सेंटीमीटर वृद्धि संभव है जिससे समुद्र किनारे के तमाम शहर डूब जाएंगे अगर कुछ उपाय तापमान वृद्धि को कम करने के लिए ठोस नहीं किए गए तो। दुनिया भर विशेषकर हिमालयिन ग्लैसियर्स सिकुड़ने लग गए हैं। तटीय क्षेत्र के समुद्र में डूब जाने पर पलायन होने लगेगा जिन्हें पुनर्वसन कराने के विषय में सोचा ही नहीं गया है।सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र जैसी नदियां ग्लेशियर सिकुड़ने से जब ज्यादा पानी आने लगेगा तो ये सागर में अधिक पानी बहाने लगेंगी जिससे डेल्टा में भीतर तक समुद्र का खारा पानी भर जाएगा जिससे वहां निवास करने वालों का जीवन दुभर हो जाएगा जो पलायन के लिए बाध्य हो जाएंगे।इतना ही नहीं डेल्टा के द्वीपों पर निवास करने वाले जीवों के अस्तित्व पर भी हमला होगा।
19 वीं सदी के अंत के बाद पृथ्वी का तापमान 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। कार्बन का उत्सर्जन अगर कम नहीं किया गया तो दुनिया 10 से 15 वर्षों में ही 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो जाएगी जिसका प्रतिकूल असर जैविकिय संरचना पर बहुत बुरा होगा। अहम बात यह है कि इस मानवीय और जैविकीय त्रासदी से कैसे बचा जाए। बस एक ही उपाय है ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन बेहद कम या नील किया जाना चाहिए ताकि विश्व मनुष्यों के रहने लायक बनी रहे।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments