
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की पांच संविधान पीठ ने शुक्रवार को २०२२ के महाराष्ट्र सत्ता संघर्ष मामले में नबाम रेबिया फैसले की समीक्षा के सवाल को सात जजों की बड़ी पीठ को नहीं भेजा। उद्धव ठाकरे गुट ने सर्वोच्च अदालत के २०१६ के नबाम रेबिया बनाम डिप्टी स्पीकर के फैसले की फिर से समीक्षा की मांग करते हुए बड़ी पीठ भेजने की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा कि नबाम रेबिया फैसले की समीक्षा कि मांग को मुख्य मामले की योग्यता के साथ सुना जाएगा और समीक्षा के लिए बड़ी पीठ के सामने नहीं भेजा जाएगा। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह, कृष्ण मुरारी, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा की पीठ ने उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना के प्रतिद्वंद्वी गुटों द्वारा दायर मामलों के एक बैच पर आदेश पारित किया। २०२२ के राजनीतिक संकट के कारण महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन हुआ था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले के तथ्यों के बिना रेफरेंस के मुद्दे को अलग से तय नहीं किया जा सकता है। रेफरेंस के मुद्दे को केवल मामले की योग्यता के आधार पर तय किया जाएगा। सर्वोच्च अदालत ने यह निर्देश दिया कि मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए। इस मामले की योग्यता के आधार पर २१ फरवरी २०२३ को सुबह १०:३० बजे सुनवाई होगी। संविधान पीठ ने बुधवार को इस बिंदु पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। दरअसल, २०१६ में नबाम रेबिया मामले ५ जजों की संविधान पीठ ने फैसला दिया था कि अगर स्पीकर के खिलाफ हटाने का प्रस्ताव लंबित है तो विधायकों की अयोग्यता पर स्पीकर फैसला नहीं ले सकते। अब इस मामले की अगली सुनवाई के लिए २१ फरवरी की तारीफ तय की गई है। फैसले के बाद से अब यह साफ हो गया है कि सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ही इस मामले पर सुनवाई करेगी। इस मामले पर सुनवाई पूरी होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।