
नासिक। महाराष्ट्र के नाशिक मे स्थित १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक त्र्यंबकेश्वर मंदिर के पास बने हज़रत पीर सैयद गुलाब शाहवली बाबा की दरगाह दरअसल एक हिंदू देवी-देवताओं की एक गुफा है। यह हिंदू गुफा बाबा गोरखनाथ के नाथ संप्रदाय से संबंधित है। यहीं भगवान गणेश विराजमान हैं। यहां अन्य देवताओं की मूर्ति और चिन्ह भी होने का दावा किया गया है. यह दावा अखिल भरतीय संत समिति, महाराष्ट्र के प्रमुख महंत अनिकेत शास्त्री ने किया है। तो क्या अनिकेत शास्त्री यह कह रहे हैं कि त्र्यंबकेश्वर महादेव मंदिर के पास बनी दरगाह नाथ संप्रदाय के मंदिर को ध्वस्त कर बनी? महंत अनिकेत शास्त्री ने आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) से मांग की है कि वह यहां आकर सर्वे करवाएं ताकि सच सामने आ सके। अनिकेत शास्त्री ने यह दावा किया है कि उन्हें इतिहासकार और पुरातत्वविदों ने जो जानकारियां उपलब्ध करवाई हैं, उन्हीं के आधार पर वे ज्ञानवापी की तरह ही यहां भी सर्वे की मांग कर रहे हैं।
बता दें कि महंत अनिकेत शास्त्री ने ही एक दिन पहले यह मांग की थी अगर मंदिर के बाहर स्थानीय मुस्लिमों की ओर से धूप दिखाने की परंपरा १०० साल पुरानी है तो मस्जिदों में भी हनुमान चालीसा पढ़ने की पहल क्यों ना शुरू की जाए? अगर ऐसा नहीं किया जा सकता तो परंपरा के नाम पर जबर्दस्ती की नौटंकी बंद की जाए।
आज एसआईटी की टीम मामले की जांच के लिए त्र्यंबकेश्वर मंदिर पहुंची
१३ मई की रात को त्र्यंबकेश्वर के महादेव मंदिर में गुलाब शाहवली बाबा के उर्स मेले और जुलूस से निकल कर कुछ मुस्लिम युवकों ने धूप दिखाई थी और कुछ लोगों ने यह दावा किया था कि वे मंदिर में जबरन घुसने की कोशिश कर रहे थे। इसके बाद मामले की जांच के लिए महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने स्पेशल इन्वेस्टिगेशन की टीम गठित की थी और चार लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। आज एसआईटी की टीम त्र्यंबकेश्वर मंदिर में जांच के लिए पहुंच गई है और जांच और पूछताछ शुरू कर दी गई है।
हिंदू मंदिर पर दरगाह होने के दावे में कितना दम?
दरगाह सूफी संतों की कब्र को कहा जाता है। आम तौर पर मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाए जाने के दावे किए जाते रहे हैं. बौद्ध गुफाओं को ध्वस्त कर भी मंदिर या मस्जिद बनाए जाने के दावे किए जाते रहे हैं। लेकिन मंदिर या हिंदू अवेशष पर दरगाह होने का दावा आम तौर पर नहीं किया जाता। इसकी वजह यह है कि इस्लाम में सूफी-फकीरों को अमन का पैगाम फैलाने वाला माना जाता है। सूफी परंपरा हार्ड कोर इस्लाम से एक अलग हट कर शुरू हुई परंपरा है। भारत में सूफी-फकीरों को हिंदुओं के भक्तिमार्गी संतों से जोड़ कर देखा जाता रहा है। सूफी-फकीर हिंदू-मुस्लिम एकता के हिमायती रहे हैं दरगाहों में हिंदुओं को जाने और चादर चढ़ाने की भी छूट रहती है। जबकि आम तौर पर हिंदुओं को मस्जिदों में एंट्री नहीं दी जाती। लेकिन सच क्या है, यह जांच के बाद ही पता चलेगा।