Monday, June 17, 2024
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शिवसेना की कमान शिंदे के हाथ आते ही पावर सेंटर मुंबई से ठाणे हुआ, CM के गुरु का घर दफ्तर बना

मुंबई: अंग्रेजी में है एक कहावत – ऐक्शन्स स्पीक लाउडर दैन वर्ड्स (Actions speak louder than words). केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा शिवसेना की कमान एकनाथ शिंदे को दिए जाने के बाद नए बदलावों की सुनाई देने लगी है आहट. शिवसेना का दफ्तर बदल गया है. अब यह मुंबई से ठाणे हो गया है. यानी अब शिवसेना के सारे आदेश और फरमान मुंबई के बांद्री में स्थित उद्धव ठाकरे के बंगले मातोश्री या दादर के शिवसेना भवन से नहीं दिए जाएंगे. अब शिवसेना का सारा कारभार ठाणे के आनंद आश्रम से संचालित होगा. आनंद आश्रम दिवंगत आनंद दिघे का कार्यस्थल रहा है.

आनंद दिघे सीएम एकनाथ शिंदे को जर्रे से आफताब बनाने वाले गुरु का नाम है. आनंद दिघे वही शख्सियत हैं जिन्होंने एक ऑटो ड्राइवर की अहमियत पहचानी और उसे अपना चेला बनाया. आज वही ऑटो ड्राइवर महाराष्ट्र का सीएम बन बैठा है. चेले ने भी गुरु को यह इज्जत बख्शी है कि उनके कार्यस्थल को ही शिवसेना का नया पावर सेंटर बना दिया है.

सीएम शिंदे के गुरु थे आनंद दिघे, उन्हें राजनीति में लाने वाले, चमकाने वाले
आनंद दिघे सीएम शिंदे के गुरु थे. एक ऑटो ड्राइवर को राजनीति में लाने वाले, चमकाने वाले वही थे. सीएम शिंदे ने शिवसेना के दफ्तर को मुंबई से ठाणे लाकर कई संदेश दे डाले हैं. आम तौर पर जो पार्टी एक शख्सियत पर टिकी होती है, उसमें बाकियों की पहचान मिट जाती है. कई बार व्यक्ति पूजा में बाकियों के त्याग भुला दिए जाते हैं. आनंद दिघे वो नाम है, जिसकी वजह से मुंबई के पड़ोसी जिले ठाणे में शिवसेना का आज एक बेहद मजबूत मुकाम है.

ठाकरे की ठोकशाही जो मुंबई में थी, दिघे की वही ठाठ ठाणे में थी
ठाकरे की ठोक शाही जो मुंबई में चलती थी. दिघे की ठाठ वही ठाणे में थी. आनंद दिघे के किसी फैसले पर कभी बालासाहेब ठाकरे ने कोई सवाल नहीं उठाया. आनंद दिघे ने भी कभी बालासाहेब ठाकरे से अलग जाकर अपना कोई मुकाम नहीं बनाया. जब कि यह सच्चाई है कि आनंद दिघे की लोकप्रियता ठाणे में इतनी ज्यादा थी कि उन्हें ना बालासाहेब ठाकरे की छत्रछाया की जरूरत थी और ना ही शिवसेना के नाम के आधार की. लेकिन उन्होंने शिवसेना का दामन थामे रखा. पर एकनाथ शिंदे बार-बार यह सवाल अब करते हैं कि जिन लोगों ने शिवसेना को मर-मर कर खड़ा किया, उन्हें मिला क्या? ना पहचान, ना सम्मान और ना ही स्थान? दरअसल शिंदे का संदेश साफ है कि इससे गुरेज नहीं कि ठाकरे परिवार को श्रद्धा का ऊंचा स्थाल दिया जाए पर साथ ही शिवसेना को बनाने वालों को भी सम्मान दिया जाए, पहचान दी जाए.

बालासाहेब ने शिवसेना खड़ी की तो आनंद दिघे जैसे कार्यकर्ताओं ने पार्टी बड़ी की
अगर बालासाहेब ठाकरे की वजह से शिवसेना खड़ी हुई तो इसके कट्टर कार्यकर्ताओं की वजह से शिवसेना बड़ी हुई. ऐसे में बिना कार्यकर्ताओं की सलाह लिए, नेताओं की भावनाओं को स्थान दिए उद्धव ठाकरे कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन का फैसला कैसे कर सकते हैं. मुंबई से ठाणे शिवसेना का पावर सेंटर बनाने का यह ऐक्शन और भी बहुत कुछ कहता है.

आनंद आश्रम से शिवसेना के आदेश जारी होने लगे, बदलाव दिखने लगे
मंगलवार को एकनाथ शिंदे ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में यह साफ कर दिया कि बालासाहेब के विचार ही उनकी संपत्ति हैं. उन्हें दादर के शिवसेना भवन समेत ठाकरे परिवार से जुड़ी संपत्ति का कोई लोभ नहीं है. ऐसे में अब तक दादर के शिवसेना भवन से सारी नियुक्तियां, सर्कुलर और आदेश जो जारी हुआ करते थे वो अब ठाणे के तेंभी नाके में स्थित आनंद आश्रम से जारी होने शुरू हो गए हैं.

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