United Nations: संघर्षग्रस्त यूक्रेन (strife-torn ukraine) से अपने 22,500 नागरिकों की सुरक्षित वापसी में मदद करने वाला भारत अपने छात्रों की शिक्षा पर इस संकट का प्रभाव कम से कम करने के विकल्प तलाश रहा है।
संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज (Permanent Representative of India Ruchira Kamboj) ने ‘यूक्रेन: नागरिकों की सुरक्षा व बच्चों की स्थिति’ विषय पर मंगलवार को हुई बैठक में कहा कि यूक्रेन संकट का गंभीर असर दुनिया भर के 75 लाख बच्चों पर पड़ा है।
कंबोज दिसंबर महीने में सुरक्षा परिषद की अध्यक्ष हैं। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह नहीं भूलना चाहिए कि यूक्रेन की स्थिति से विदेशी छात्र भी प्रभावित हुई हैं जिनमें भारत के छात्र भी शामिल हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘ भारत अपने 22,500 नागरिकों को सुरक्षित देश वापस लाया, जिनमें से अधिकतर छात्र थे जो यूक्रेन के विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे थे। हम हमारे छात्रों की शिक्षा पर इस संकट के प्रभाव को कम से कम करने के तरीके तलाश रहे हैं।’’
कंबोज ने यूक्रेन की स्थिति पर भारत की निरंतर चिंता को दोहराया और कहा कि संघर्ष के कारण लोगों की जान गई है और उसके लोगों ने अनगिनत दुखों का सामना किया…खासकर महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों ने… लाखों लोग बेघर हो गए या पड़ोसी देशों में शरण लेने के लिए मजबूर हो गए हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘ हालिया सप्ताह में सामने आईं आम नागरिकों तथा आवासीय ढांचों पर हमले की खबरें बेहद चिंताजनक है। हम इस संबंध में अपनी चिंताओं को दोहराते हैं।’’
कंबोज ने इस बात पर जोर दिया कि बच्चे हमारा भविष्य हैं। बच्चे बेहद संवेदनशील हैं, खासकर ऐसे सशस्त्र संघर्ष के दौरान उन्हें अतिरिक्त सुरक्षा व देखभाल की जरूरत है। भारत ने ‘कन्वेंशन ऑन द राइट्स ऑफ द चाइल्ड’ पर हस्ताक्षर किए हैं और बच्चों की परेशानियां कम करने के लिए संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) सहित चलाए जा रहे अन्य कार्यक्रमों की सराहना करता रहा है।
संयुक्त राष्ट्र के आपातकालीन राहत कार्यक्रमों के समन्वयक मार्टिन ग्रिफिथ्स ने परिषद को बताया कि यूक्रेन में 1.4 करोड़ से अधिक लोगों को मजबूरन अपने घर छोड़ने पड़े, 65 लाख लोग देश में ही किसी और स्थान पर चले गए जबकि 78 लाख से अधिक लोगों ने यूरोप में कहीं न कहीं पनाह ली।
मानवाधिकार के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त के कार्यालय के अनुसार, 24 फरवरी को शुरू हुए इस युद्ध में एक दिसंबर तक 17,023 लोगों की जान जा चुकी है, जिनमें से 419 बच्चे थे।
उन्होंने कहा, ‘‘ हालांकि हमें पता है कि वास्तविक आंकड़ें इससे कहीं अधिक हैं।’’ ग्रिफिथ्स ने कहा कि 2022 की शरुआत में दुनिया में 27.4 करोड़ लोगों को मानवीय सहायता की जरूरत थी, यह आंकड़ा अब करीब 24 प्रतिशत बढ़कर 33.9 करोड़ हो गया है। उन्होंने कहा, ‘‘ यानी दुनिया में प्रत्येक 23 में से एक व्यक्ति को मानवीय मदद की जरूरत है।’’