Wednesday, June 7, 2023
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संपादकीय:- समलैगिकता अनैतिक है!

कोई भी धर्म समलैंगिकों का सम्मान नहीं कर सकता। नर मादा की रचना संतति प्राप्ति के उद्देश्य से ही हुई है। समलैंगिक तो हिजड़े हो सकते हैं। मेल फीमेल ही मानवीय संरचना का आधार है। भारतीय मान्यता के अनुसार विवाह का उद्देश्य संतति प्राप्ति और वंश चलाने की धारणा से निर्मित है। प्राचीन समय में जब विवाह की परंपरा चालू नहीं हुई थी उस समय कन्या का पिता सुयोग्य युवक को अपनी पुत्री देते हुए कहता है कि इसके क्षेत्र में बीज डालकर वंश चलाओ। यह कभी नहीं देखा गया कि समलैंगिक विवाह हुए हों। पहले अगर चोरी छिपे कोई समलैंगिक यौन संबंध बनाता था तो समाज उसे हेय दृष्टि से देखता था। उसे देखते ही लोग घृणा भाव से आंखें फेर लेते थे। मानव समाज पूरे विश्व में समलैंगिक संबंध को बुरा मानता आया है। कुछ देशों में समलैंगिक शादी को मान्यता दी गई है लेकिन तमाम देश समलैंगिक शादी के विरुद्ध हैं। स्त्री का स्त्री के साथ और पुरुष का पुरुष के साथ विवाह विकृत मानसिकता की देन है। समलैंगिकता पर आज भारत में भी बहस हो रही है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका डालकर उनके पक्ष में फैसला लिखने की मांग की गई है। केंद्र सरकार ने भी सुप्रीमकोर्ट को अपने जवाब में समलैंगिकता का विरोध किया है। राज्यों ने भी विरोध भावना के कारण उनका पक्ष सुनने की मांग की है। केंद्र सरकार ने बहुत पहले हिंदू विवाह अधिनियम लागू किया हुआ है। सच तो यह है कि विकृत मानसिकता वाले चंद लोगों को सुप्रीमकोर्ट के उस फैसले से बल मिला है जिसमें नाबालिगों के सहमति से सेक्स को जायज माना था जबकि समाज आज भी सुप्रीमकोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय से इत्तेफाक नहीं करता। सुप्रीमकोर्ट समलैंगिकों की याचिका की सुनवाई कर रहा है। उसने केंद्र सरकार के द्वारा दिए गए जवाब को अभी देखने से मना कर दिया है। सुनवाई में समलैंगिकों और सरकारी वकीलों के द्वारा अपना अपना पक्ष रखा जा रहा है। सुप्रीमकोर्ट क्या निर्णय लेता है अभी सुनिश्चित नहीं है लेकिन उसका फैसला यदि समलैंगिक लोगों के पक्ष में आया तो सारे देश में हिंदू मुस्लिम बौद्ध जैन सिख सड़क पर उतर आएं इससे इंकार किया नहीं जा सकता।एक तरफ मुट्ठीभर समलैंगिक अपनी मांग पूरी करने को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं तो दूसरी तरफ हिंदू और मुस्लिम संगठन विरोध कर रहे हैं। यदि सुप्रीमकोर्ट समलैंगिकों के पक्ष में फैसला सुनाता है तो हिंदू और मुस्लिम अपने धर्मों पर कुठाराघात समझने लगेंगे। कोर्ट द्वारा मान्यता देने से समाज में विसंगतियां उत्पन्न होने लगेंगी जो देश की एकता और अखंडता के लिहाज से बेहद खतरनाक होगा। संभव है कट्टर धार्मिक लोग ऐसे समलसिंगिकों के खिलाफ गैरकानूनी कदम उठाने न लगें। वैसे भी इसका विरोध प्रायः हरेक प्रदेश की सरकारें भी करने लगेंगी क्योंकि संख्या के हिसाब से कोई भी सरकार समलैंगिकों को वोट बैंक नहीं मानेगीं। हर हिंदू मुस्लिम परिवार अपने बच्चों को लेकर चिंतित रहेंगे कि कानून बनाने के बाद कहीं वे भी समलैंगिक विवाह के पक्षधर नहीं बन जाएं। ऑनर किलिंग की भी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। अंत में भाजपा की केंद्र सरकार सुप्रीमकोर्ट के निर्णय के खिलाफ बहुमत होने के कारण कानून अवश्य बनाएगी।सुप्रीमकोर्ट के सम्मानित बेंच सदस्यों से हम अपील करना चाहेंगे कि वे कोई ऐसा निर्णय नहीं देन जिससे समाज में अराजकता फैले।

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