
पुणे। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने मंगलवार को मालेगांव सहकारी चीनी मिल चुनाव में निर्णायक जीत दर्ज की। यह जीत न केवल राजनीतिक बल्कि प्रतीकात्मक रूप से भी अहम मानी जा रही है, क्योंकि यह पवार परिवार के गढ़ बारामती में सहकारिता क्षेत्र पर नियंत्रण की लड़ाई थी, जिसे अजित बनाम शरद पवार के रूप में देखा जा रहा था। चुनाव रविवार को हुआ था, जिसमें गन्ना उत्पादक किसानों के समूह ‘ए’ के 19,549 मतदाता और समूह ‘बी’ के 102 मतदाता शामिल थे। ‘बी’ श्रेणी में मिल से संबद्ध विभिन्न सहकारी संस्थाओं के प्रतिनिधि होते हैं। इसी श्रेणी में अजित पवार ने जोरदार जीत हासिल की, जहां उन्हें 101 में से 91 वोट मिले और उनके प्रतिद्वंद्वी को केवल 10 वोटों से संतोष करना पड़ा, जबकि एक मत नहीं डाला गया। इस चुनाव में मुख्य मुकाबला अजित पवार के ‘नीलकंठेश्वर पैनल’, चंद्रराव तावरे के ‘सहकार बचाव पैनल’, और शरद पवार के ‘बलीराजा सहकार पैनल’ के बीच त्रिकोणीय रहा। भले ही शरद पवार मैदान में सीधे तौर पर उपस्थित नहीं थे, लेकिन यह संघर्ष स्पष्ट रूप से पवार बनाम पवार में बदल गया था। अजित पवार इस चुनाव में पार्टी सिंबल पर नहीं, बल्कि सहकारी परंपरा के अनुसार पैनल के बैनर तले चुनाव लड़ रहे थे। उनकी अगुवाई वाला नीलकंठेश्वर पैनल वर्तमान में भी मिल की सत्ता में है और इस जीत से उसकी स्थिति और मजबूत हो गई है। नीलकंठेश्वर पैनल की ओर से चुनाव प्रक्रिया की निगरानी कर रहे राकांपा नेता किरण गुजर ने बताया कि 21 सदस्यीय निदेशक मंडल के लिए बाकी मतों की गिनती अभी जारी है, लेकिन समूह ‘बी’ की निर्णायक जीत से यह स्पष्ट हो गया है कि अजित पवार ने बारामती की सहकारी राजनीति में अपना दबदबा बनाए रखा है। इस चुनाव की अहमियत इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि सहकारी संस्थाएं, खासकर चीनी मिलें, महाराष्ट्र की ग्रामीण राजनीति का आधार रही हैं। इसलिए यह नतीजा भविष्य की राजनीतिक समीकरणों पर भी असर डाल सकता है। खासकर तब, जब पवार परिवार में विभाजन के बाद यह पहला बड़ा सहकारी मुकाबला रहा हो।