
मुंबई। त्रिभाषा नीति को लेकर महाराष्ट्र में चल रहे विवाद के बीच शिवसेना (यूबीटी) के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने मंगलवार को राज्य सरकार पर तीखा हमला बोला। राउत ने त्रिभाषा फॉर्मूले को लेकर हो रही बैठकों को मराठी भाषा का अपमान बताते हुए इसे सरकार की सोची-समझी साजिश करार दिया। संजय राउत ने कहा कि राज्य सरकार हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है, जो महाराष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान और मराठी भाषा के विरुद्ध है। उन्होंने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर आरोप लगाया कि वे मराठी भाषा के बजाय हिंदी के पक्ष में झुकाव दिखा रहे हैं। राउत ने सवाल उठाया, क्या फडणवीस और शिंदे ने कभी मराठी भाषा को बढ़ावा देने के लिए इस तरह बैठकें कीं? अब जब हिंदी का मुद्दा है, तब लगातार बैठकें क्यों हो रही हैं? उन्होंने प्रमुख मराठी साहित्यकारों और कलाकारों की चुप्पी पर भी सवाल उठाए। राउत ने कहा कि “साहित्यकार और मशहूर हस्तियां इसलिए चुप हैं क्योंकि सरकार ने उन्हें पुरस्कार और सम्मान देकर ऋणी बना दिया है। ऐसे में वे सरकार के खिलाफ नहीं बोलते। उन्होंने कटाक्ष किया, “क्या शिंदे पांच प्रमुख मराठी साहित्यकारों का नाम बता सकते हैं? क्या फडणवीस दस नाम जानते हैं? राउत ने दावा किया कि सत्तारूढ़ दल के अधिकांश मंत्री और साहित्यकार अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में पढ़ाते हैं, इसलिए उन्हें मराठी भाषा की चिंता करने का नैतिक अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा, “मेरे अपने बच्चे मराठी माध्यम में पढ़े हैं, और मैं इस पर गर्व करता हूं। दक्षिण भारत के अभिनेता प्रकाश राज के उदाहरण का हवाला देते हुए राउत ने कहा, “जब उन्होंने त्रिभाषा नीति के तहत हिंदी थोपने का विरोध किया, तब वे खुलकर सामने आए। लेकिन हमारे मराठी अभिनेता, कलाकार और क्रिकेटर कहां हैं? नाना पाटेकर, प्रशांत दामले, माधुरी दीक्षित – जब मराठी पर हमला होता है, तो वे खामोश क्यों हो जाते हैं? उन्होंने सरकार के तर्क को खारिज करते हुए कहा कि हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य बनाने की कोई जरूरत नहीं है। यदि छात्रों को कोई अन्य भारतीय भाषा पढ़नी है तो स्कूल में कम से कम 20 छात्रों की सहमति अनिवार्य करने का नियम भी उन्होंने पक्षपातपूर्ण बताया। राउत ने मुख्यमंत्री को सीधे निशाने पर लेते हुए कहा, “फडणवीस हिंदी की वकालत क्यों कर रहे हैं? इसके पीछे उनका कोई और एजेंडा है। वह महाराष्ट्र के हित में नहीं, बल्कि किसी और की स्क्रिप्ट पर काम कर रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा कि सरकार को इस निर्णय पर पुनर्विचार करने की जरूरत नहीं, बल्कि सीधे इसे रद्द करने का आदेश देना चाहिए। उन्होंने कहा, इस पर बार-बार बैठकें करना खुद मराठी भाषा का अपमान है। शिंदे सिर्फ माहौल खराब कर रहे हैं। राउत की यह तीखी प्रतिक्रिया उस आदेश के बाद आई है जिसमें सरकार ने कहा था कि हिंदी को तीसरी भाषा के तौर पर पढ़ाने के लिए स्कूलों में विशेष सहमति की जरूरत है, लेकिन व्यवहार में हिंदी को ही प्राथमिकता दी जा रही है, जो मराठी समर्थकों को अस्वीकार्य है। इस बयानबाज़ी से साफ है कि त्रिभाषा नीति महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया संघर्ष बिंदु बन चुका है, और शिवसेना (यूबीटी) इसे मराठी अस्मिता का मामला बनाकर सरकार पर दबाव बढ़ाने की रणनीति में है।