
मुंबई। महाराष्ट्र विधानमंडल का मानसून सत्र सोमवार को बेहद नाटकीय अंदाज़ में शुरू हुआ, जब महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के नेताओं ने स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाने के सरकार के विवादास्पद प्रस्ताव के खिलाफ मुंबई के विधान भवन के बाहर जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया। शिवसेना (यूबीटी), कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार गुट) के नेताओं ने सरकार पर मराठी अस्मिता का अपमान करने का आरोप लगाते हुए सरकार की भाषा नीति के खिलाफ नारेबाज़ी की और विरोध के पोस्टर लहराए। विरोध प्रदर्शन में प्रमुख नेताओं में शिवसेना यूबीटी विधायक आदित्य ठाकरे, विधान परिषद में विपक्ष के नेता अंबादास दानवे, शिवसेना नेता सचिन अहीर, और एनसीपी नेता जितेंद्र आव्हाड शामिल हुए। विवाद की जड़ राज्य सरकार के 16 अप्रैल और 17 जून को जारी दो सरकारी प्रस्ताव (जीआर) हैं, जिनमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत कक्षा 1 से तीन भाषाओं—मराठी, अंग्रेज़ी और हिंदी—को अनिवार्य करने का निर्णय लिया गया था। इस फैसले के खिलाफ शिक्षाविदों, संस्कृतिकर्मियों और विपक्षी दलों ने तीखी आलोचना की, जिसके चलते सरकार ने अब दोनों प्रस्तावों को वापस ले लिया है और डॉ नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक नई समिति बनाकर नीति की पुनर्समीक्षा की घोषणा की है। हालांकि यह वापसी विपक्ष को संतुष्ट करने में नाकाम रही है। विरोधी दलों का कहना है कि नीति में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी है और सरकार ने मराठी भाषा और अस्मिता के साथ अन्याय किया है। शिवसेना यूबीटी नेता संजय राउत ने उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के उस दावे को खारिज किया कि यह तीन-भाषा नीति माशेलकर समिति की सिफारिशों पर एमवीए सरकार ने ही स्वीकृत की थी। राउत ने कहा, “बीजेपी की राष्ट्रीय नीति ही झूठ बोलने की है। अगर उद्धव ठाकरे सरकार ने इस नीति को मंज़ूरी दी थी, तो वे कागज़ दिखाएं। हम किसी भी चर्चा को तैयार हैं। विपक्ष की नाराज़गी केवल भाषा नीति तक सीमित नहीं रही। सदन के भीतर भी विपक्ष ने किसानों की समस्याओं, बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों, बुनियादी ढांचे की विफलताओं और भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर महायुति सरकार को निशाने पर लिया। विरोधियों का कहना है कि सरकार की प्राथमिकताएं गलत हैं और जनता के असली मुद्दों से उसका कोई वास्ता नहीं है। हालांकि महायुति गठबंधन (बीजेपी-शिंदे गुट-एनसीपी अजीत पवार गुट) को विधानमंडल में बहुमत प्राप्त है, लेकिन मानसून सत्र की शुरुआत से ही विपक्ष ने यह संकेत दे दिया है कि यह सत्र सरकार के लिए आसान नहीं होगा। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे और अजीत पवार को विपक्षी हमलों और जनभावनाओं के मुद्दों का सामना करने के लिए सतर्क रहना होगा। सरकार ने अपने कदम फिलहाल पीछे खींच लिए हैं, लेकिन ‘हिंदी थोपे जाने’ के मुद्दे ने महाराष्ट्र की राजनीति में मराठी अस्मिता को केंद्र में ला दिया है। विपक्ष इसे एक भावनात्मक और सांस्कृतिक संघर्ष के रूप में भुना रहा है, और यदि सरकार जल्दबाज़ी में पारदर्शिता के बिना कोई और फैसला करती है तो यह विवाद और भी व्यापक राजनीतिक संकट का रूप ले सकता है।