Wednesday, April 24, 2024
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गीता प्रेस गोरखपुर- अनूठी पहल, स्थापना के सौ वर्ष

जीतेंद्र पाण्डेय
लागत से भी कम मूल्य पर ज्ञान, धर्म और अध्यात्म की पुस्तकें अपने सुधि पाठकों तक पहुंचाने वाला गीता प्रेस गोरखपुर की इस अनूठी पहल को कोटि कोटि नमन। आप में से अधिकांश ने कभी न कभी रामचरित मानस, गीता आदि ग्रंथ खरीदे अथवा पढ़े अवश्य होंगे। यद्यपि अन्य प्रकाशक भी गीता और रामचरित मानस का प्रकाशन किए हैं परंतु उनके छपे मूल्य से गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित ग्रंथों के मूल्य की तुलना करें तो सच्चाई अवश्य सामने आ जाएगी। गोरखपुर स्थित गीता प्रेस विश्वविख्यात प्रेस है। लगभग हर भारतीय ने इसका नाम अवश्य पढ़ा होगा। रेलवे स्टेशनों, हर नगरों महानगरों में कहीं न कहीं आप को गीता प्रेस के बोर्ड दिख जाते होंगे। प्रायः हर रेल स्टेशन पर गीता प्रेस का स्टाल अवश्य मिलेगा। गीता प्रेस के जन्म की कथा भी अनुपम है। आज का कोलकाता पहले कलकत्ता हुआ करता था। जैसे बंबई को मुंबई और मद्रास को चेन्नई नाम दिए गए हैं। गीता प्रेस स्थापना की कहानी प्रेरणादाई है। तब के कलकत्ता में वर्ष 1921 में सेठ जयदयाल गोयन्दका ने भगवदगीता के प्रचार प्रसार के लिए अपना अमूल्य जीवन अर्पित करते हुए गोविंद भवन ट्रस्ट की स्थापना की थी। इस ट्रस्ट के माध्यम से श्रीमद्भगवद्गीता का प्रकाशन प्रारंभ किया। शुद्धता युक्त प्रकाशन के लिए प्रेस को कई बार संशोधन करना पड़ता था। एक दिन प्रेस के मालिक ने इनपर व्यंग्य करते हुए कहा, यदि इतना शुद्ध श्रीमद्भगवद्गीता प्रकाशित करना चाहते हैं तो अपना प्रेस लगा लीजिए और छपते रहिए शुद्धतम रूप। इस कथन को ईश्वरीय आज्ञा मानकर स्वीकार कर लिया और प्रेस के लिए गोरखपुर को चुना। गोरखपुर चुनने के लिए उन्हें दो सत्संगियों ने सुझाव दिए थे। फिर क्या था कलकत्ता को त्याग भाईजी गोरखपुर आ गए और 10 रुपए मासिक भाड़े पर एक कमरा लिया और गीताप्रेस की यात्रा प्रारंभ कर दी। धीरे धीरे गीता प्रेस के लिए विशालतम भवन का निर्माण प्रारंभ हुआ जो शनै शनै आकर लेता चला गया। धीरे धीरे गीता प्रेस की ख्याति बढ़ने लगी।गीता का अपना महत्त्व है।अंग्रेजों ने गीता को बैन कर दिया था क्योंकि तब हमारे देश के जाबांज युवा आंदोलन में बेहिचक कूद पड़े थे।उन्हें मृत्यु भय कदापि नहीं था क्योंकि उन्होंने गीता पढ़ी थी।आत्मा की अमरता का ज्ञान था। शरीर नश्वर है। आत्मा शाश्वत है। अंग्रेज दमन करते।गोलियां चलवाते। देश को अपनी मातृभूमि को आजाद कराने के लिए युवा सिर पर कफन बांधकर निकलते। अंग्रेजों से कहते, तुम गोलियां चाओगे।… फांसी पर लटकाओगे। लटका दो। हमारी हत्या कर दो। शरीर मरेगा। हम पंच तत्व शरीर नहीं हैं। आत्मा हैं। आत्मा अमर है।तुम एक शरीर खत्म करोगे।हम पुनर्जन्म लेकर फिर आएंगे। तुमसे लड़ेंगे। अपनी मातृभूमि को आजाद करेंगे। कदाचित इस आख्यान से गीता का महत्त्व समझ में आ गया होगा। वासांसी जिरनानी यथा विहाय…
वैसे गीता में कर्म त्रयी का उद्घोष है।
गोयन्दका के मौसेरे भाई हनुमान प्रसाद पोद्दार जिन्हें लोग भाईजी कहते थे, गोयन्दका की अनुमति लेकर वर्ष 1926 में मुंबई से कल्याण नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू कर दिया था। गीता प्रेस का आकार और पुस्तकों की संख्या बढ़ते रहने के कारण गोयन्दका को सहयोगी की आवश्यकता अनुभव होने लगी थी। अतः गोयंडक्स जी ने पोद्दार भाई को 1927 में गोरखपुर बुला लिया। धर्म और अध्यात्म को समर्पित जीवन कर चुके गोयन्दका जी ने कल्याण पत्रिका का भी प्रकाशन गोरखपुर में गीता प्रेस से आरंभ कर दिया। जिसके संपादक हनुमान प्रसाद पोद्दार ही रहे। अब तक कल्याण की 16.77 करोड़ से अधिक प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं जिससे उसका महत्त्व जाना जा सकता है। कल्याण और अन्य पुस्तकों के माध्यम देवी देवताओं के प्रामाणिक स्वरूप से जन मानस को परिचित कराने का महत कार्य किया है। कल्याण एक्स प्रत्येक अंक में दो और विशेषांकों में आठ दस और अन्य पुस्तकों में अनेकों चित्र प्रकाशित होते रहते हैं। कुछ दिनों पूर्व ही प्रेस ने चित्रांकन ग्रंथ का भी प्रकाशन आरंभ किया है। गीता प्रेस की पुस्तकों में चित्र बनाने का कार्य विनय कुमार मित्रा, अर्थात बी के मित्रा, जगन्नाथ और भगवान जैसे समर्पित चित्रकारों ने बड़े मनोयोग से बनाए हैं जो जनमानस में ईश्वर के स्वरूप की अमित छाप छोड़ा है। गांधीजी की प्रेणना से गीता प्रेस किसी बाहरी विज्ञापन प्रकाशित नहीं करता। यही नहीं गीता प्रेस किसी बाहरी व्यक्ति और संस्था से आर्थिक सहयोग भी नहीं लेता। गांधी जी और गीता प्रेस का संबंध अटूट रहा है। गांधीजी के अनेक लेखों का प्रकाशन गीता प्रेस द्वारा किया जाता रहा है। पुराने कल्याण अंकों में गांधी जी के लेख देखे जा सकते हैं। प्रेस ने दर्शक दीर्घा में गांधीजी के पत्रों को सुरक्षित रख छोड़ा है। गीता प्रेस की विशेषता यह है कि यह प्रेस लागत मूल्य से भी कम मूल्य पर पुस्तक उपलब्ध कराता आ रहा है। प्रश्न उठता है कि आखिर जब प्रेस लागत से भी कम मूल्य पर पुस्तकें उपलब्ध कराता है तो लगातार घाटा सहकर प्रेस चलाया कैसे जाता है तो इसका भी उत्तर है प्रेस को हुए घाटे की भरपाई गोयन्दका जी का कलकत्ता वाले ट्रस्ट को होने वाले लाभ से घाटे की पूर्ति की जाती है गीता प्रेस नो प्रॉफिट के सूत्र पर संचालित होता है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात कि हरेक पुस्तक के प्रकाशन में शुचिता का ध्यान रखा जाता है। त्रुटि हीन रहती हैं पुस्तकें। इससे पुस्तकों की शुद्धता बनी रहती है। कल्याण पत्रिका में प्रकाशित लेख देश भर के विद्वानों द्वारा प्रमाणिकता के साथ लिखे जाते हैं। वह भी निशुल्क। आइए!, हम भी गीता प्रेस का नैतिक सहयोग करें। गीता प्रेस की अनेक सुप्रसिद्ध पुस्तकें खरीदने और पढ़ने की आदत डालें।

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