
शिवसेना के सुप्रीमो रह चुके स्वर्गीय बाल ठाकरे के शिवसेना प्रमुख पुत्र उद्धव ठाकरे ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर जवाब मांगा है। उद्धव ठाकरे ने अपने पत्र में तार्किक तथ्य देते हुए लिखा है उनके पिता बाला साहेब ठाकरे ने राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे, का जोर शोर से नारा दिया था एक रैली में। आचार संहिता लगी थी। चुनाव आयोग के अनुसार धर्म, जाति का उपयोग चुनाव प्रचार में नहीं किया जा सकता। यदि कोई इस आचार संहिता का उल्लंघन करता है तो चुनाव आयोग को अधिकार होगा कि धर्म जाति का प्रयोग करने वाले राजनेता को छः वर्षों के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहरा दे। उस वक्त चुनाव आयोग ने धर्म का उपयोग करने के कारण बाला साहेब ठाकरे को छः साल तक चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहराकर छः वर्षों के लिए चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी थी जिसे बाला साहेब ठाकरे ने सिर माथे पर लिया और कभी चुनाव ही नहीं लड़े। किंग मेकर बनकर रहे। उनके शब्द शिवासैनिकों के लिए आदेश थे जिनका पालन हर शिवासैनिक अपना कर्तव्य मानता था। उद्धव ठाकरे ने अपने पिता के छः साल तक चुनाव लड़ने से रोकने के चुनाव आयोग के फैसले की बात कहकर पीएम मोदी द्वारा कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बजरंग बली के नारे लगवाए और कहा, बजरंग बली का नाम लेकर कमल की बटन दबाएं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के मध्यप्रदेश में चुनाव प्रचार करते हुए कहना कि प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी तो सभी राम भक्तों को निशुल्क अयोध्या लेजाकर राममंदिर में दर्शन कराएंगे। पीएम मोदी और अमित शाह दोनों ने चुनाव प्रचार के समय धर्म के नाम पर वोट मांगे थे। इसी बात को लेकर चुनाव आयोग से पूछा है कि क्या चुनाव आयोग की नीतियां आचार संहिता के नियम तो नहीं बदल गए? या फिर चुनाव आयोग बीजेपी का समर्थन कर रहा है? चुनाव आयोग दोहरा मापदंड कैसे अपना सकता है?
उद्धव ठाकरे चाहते हैं कि जिस तरह धर्म का उपयोग करने में उनके स्वर्गीय पिता को अयोग्य ठहराया गया था उसी तरह प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री शाह द्वारा धर्म का चुनाव प्रचार में उपयोग करने पर कोई एक्शन क्यों नहीं लिया? अब गेंद चुनाव आयोग के पाले में है। देखना है चुनाव आयोग उद्धव ठाकरे के पत्र का क्या जवाब देता है? देता है या नहीं? लेकिन उद्धव ठाकरे ने चुनाव आयोग के दोहरे रवैए को रेखांकित कर कानूनी कटघरे में अवश्य खड़ा कर दिया है।अब यदि चुनाव आयोग उद्धव ठाकरे के सवाल का ज़वाब नहीं देता तो उद्धव ठाकरे के सामने विकल्प स्पष्ट है।वे इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। वैसे भी सुप्रीम कोर्ट मुख्य चुनाव आयुक्त की गलत ढंग से मनमानी नियुक्ति से खफा है।