
मुंबई। महाराष्ट्र सरकार द्वारा कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों के लिए हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाने के फैसले को लेकर राज्य की राजनीति गरमा गई है। अब एनसीपी (शरदचंद्र पवार) के अध्यक्ष शरद पवार भी खुलकर उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के प्रस्तावित विरोध आंदोलन के समर्थन में आ गए हैं। शरद पवार ने शुक्रवार को कहा, “महाराष्ट्र के लोग हिंदी विरोधी नहीं हैं, लेकिन छोटे बच्चों पर किसी भाषा को थोपना उचित नहीं है। यह मातृभाषा के महत्व को कम करता है और बाल मनोविज्ञान के भी विरुद्ध है।” उन्होंने यह भी कहा कि कक्षा 1 से 4 तक हिंदी को अनिवार्य बनाना “छात्रों के सर्वोत्तम हित में नहीं है” और किसी भी भाषा को मजबूरी में पढ़ाना उसके प्रति बच्चों की रुचि और सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है।
संभावित विपक्षी एकता का संकेत
पवार ने स्पष्ट किया कि वह जल्द ही उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे से मुलाकात कर इस विषय पर चर्चा करेंगे और यदि सभी दल साझा मंच पर आना चाहें तो विपक्षी एकता का रास्ता खुल सकता है। उन्होंने कहा, “दोनों ठाकरे ने कड़ा रुख अपनाया है। यदि वे चाहते हैं कि अन्य राजनीतिक दल इस विरोध में शामिल हों, तो हमें उनकी योजना को समझना चाहिए। मैं जल्द ही उनसे मिलूंगा।”
नीति की आलोचना तेज
राज्य सरकार के आदेश में कहा गया है कि हिंदी को आमतौर पर मराठी और अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाएगा, जबकि अन्य भारतीय भाषाएं तभी चुनी जा सकती हैं जब किसी ग्रेड में कम से कम 20 छात्रों की रुचि हो। इसे लेकर शिक्षाविद, भाषा प्रेमी और क्षेत्रीय संगठनों ने भी चिंता जताई है कि यह नीति मराठी जैसी क्षेत्रीय भाषाओं को हाशिए पर डालने की ओर कदम हो सकती है।
शिक्षा बनाम राजनीति
राज्य सरकार ने सफाई दी है कि यह निर्णय राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट प्रणाली के तहत लिया गया है, जिससे छात्रों को भविष्य में क्रेडिट पॉइंट मिल सकें। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है और सभी हितधारकों से व्यापक चर्चा के बाद ही नीति लागू की जाएगी।
वहीं अब जब शरद पवार जैसे वरिष्ठ नेता इस विवाद में कूद पड़े हैं और शिवसेना (यूबीटी) व मनसे पहले ही 5 जुलाई को संयुक्त विरोध प्रदर्शन की घोषणा कर चुके हैं, तो राज्य सरकार के लिए यह मुद्दा केवल शैक्षणिक नीति का न होकर राजनीतिक चुनौती बनता जा रहा है। इस घटनाक्रम ने साफ कर दिया है कि मातृभाषा मराठी को लेकर राजनीतिक दलों में अभूतपूर्व एकता दिख सकती है और हिंदी को अनिवार्य बनाए जाने की नीति आने वाले हफ्तों में महाराष्ट्र की राजनीति का केंद्रबिंदु बन सकती है।