
मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में 12 वर्ष और 5 महीने की बलात्कार पीड़िता को गर्भावस्था के उच्च जोखिम वाले चरण (28-29 सप्ताह) में भी गर्भपात की अनुमति दे दी है। यह गर्भावस्था कथित रूप से पीड़िता के चाचा द्वारा किए गए यौन उत्पीड़न का परिणाम थी, जिसकी एफआईआर 5 जून को दर्ज की गई थी। हाईकोर्ट ने माना कि इतने लंबे समय तक अधिकारियों से संपर्क न कर पाने का एक बड़ा कारण आरोपी का पीड़िता का निकट संबंधी होना हो सकता है। पीड़िता के माता-पिता की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सरकारी मेडिकल कॉलेज, अकोला से एक मेडिकल बोर्ड गठित कर रिपोर्ट मांगी थी। बोर्ड ने बताया कि गर्भपात संभव तो है लेकिन यह एक हिस्टेरोटॉमी प्रक्रिया होगी, जो अत्यधिक जोखिम भरी है, और इसे माता-पिता की सूचित सहमति तथा बच्ची की स्वीकृति के बाद ही किया जा सकता है। हालांकि राज्य सरकार ने मेडिकल जोखिम का हवाला देते हुए गर्भपात की अनुमति न देने की अपील की, लेकिन अदालत ने यह आपत्ति खारिज कर दी और कहा कि “राज्य, किसी भी पीड़िता को उसकी इच्छा के विरुद्ध गर्भावस्था जारी रखने के लिए बाध्य नहीं कर सकता।” अदालत ने यह भी कहा कि ऐसा करना उसकी गरिमा, शारीरिक स्वायत्तता और मानसिक स्वास्थ्य के अधिकारों का उल्लंघन होगा। जस्टिस की पीठ ने अपने आदेश में यह स्पष्ट किया कि मेडिकल बोर्ड ने यह नहीं कहा कि प्रक्रिया से पीड़िता की जान को तत्काल खतरा है। इसके अलावा, पीड़िता और उसके माता-पिता दोनों इस गर्भावस्था को समाप्त करने के पक्ष में थे और उन्होंने उच्च जोखिम के बावजूद सहमति देने की बात कही थी। अदालत ने कहा कि अवांछित गर्भावस्था का पूरा बोझ स्त्री पर, और इस मामले में एक बच्चे पर पड़ता है। इसलिए उसकी इच्छा सर्वोपरि है। अदालत ने अकोला मेडिकल कॉलेज के डीन को निर्देश दिया कि गर्भपात की प्रक्रिया जल्द से जल्द एक विशेषज्ञ टीम- जिसमें एक बाल रोग विशेषज्ञ, स्त्री रोग विशेषज्ञ और यदि संभव हो तो बाल मनोचिकित्सक की देखरेख में पूर्ण सुरक्षा प्रोटोकॉल के साथ संपन्न कराई जाए। अंततः हाईकोर्ट ने यह कहते हुए आदेश पारित किया कि माता-पिता की “उच्च जोखिम सहमति” और पीड़िता की “रोगी सहमति” को मेडिकल रिकॉर्ड में शामिल किया जाए और उसके अनुरूप ही चिकित्सा प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाए।