मुंबई :(Railway Gyan) रेलवे में सफर के दौरान यात्री रेलवे से जुड़ी कई सेवाओं का अनुभव करते हैं। सफर के दौरान यात्रियों की नजर प्लेटफॉर्म, रेलवे ट्रैक, क्रॉसिंग, सिग्नल समेत कई चीजों पर पड़ती है। रेलवे संचालन में सिग्नल बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि वे यातायात के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करते हैं। आपने देखा होगा कि रेलवे सिग्नल के एक तरफ हमेशा लाइट होती है, वहीं कुछ सिग्नल पर सफेद क्रॉस टारगेट होता है। कई यात्रियों को आश्चर्य हो सकता है कि रेलवे सिग्नल के पीछे सफेद क्रॉस का निशान क्यों होता है, इसके पीछे क्या कारण है। हम आपको बताते हैं कि रेलवे ऐसा क्यों, क्यों और किसलिए करता है।
प्रत्येक रंग संकेत का क्या अर्थ है?
लोको पायलट ट्रैक की तरफ सिग्नल देखकर ही ट्रेन को चलाता है। आप अक्सर पाएंगे कि ट्रेन रास्ते में कहीं बाहर या कहीं रुक जाती है, जिसका सबसे बड़ा कारण सिग्नल की कमी है। ऐसे में पायलट को आगे बढ़ने की इजाजत नहीं है। रेलवे में 3 कलर सिग्नल का इस्तेमाल होता है और इन तीनों के अलग-अलग मायने होते हैं।
सफेद निशान से यह भ्रम दूर हो जाता है
जब भी हरी झंडी मिलती है, लोको पायलट को पूरी गति से ट्रेन चलाने की अनुमति दी जाती है। सिग्नल पर पीली बत्ती होने पर ट्रेन की गति 30 से 40 किमी प्रति घंटा रखनी होगी। वहीं, रेड सिग्नल होने पर लोको पायलट को ट्रेन रोकनी पड़ती है। सिग्नल में रोशनी न होने पर ट्रेन ड्राइवर भ्रमित हो जाता है और सोचता है कि सिग्नल खराब हो गया है। लोकोपलेट की इस समस्या को दूर करने के लिए सिग्नल के पीछे ऐसा सफेद क्रॉस चिन्ह बनाया जाता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि सिग्नल के पिछले हिस्से का मतलब है कि आगे की लाइट सही होगी। बता दें कि रेलवे में हमेशा ट्रैक के बायीं तरफ सिग्नल लगाए जाते हैं।