हेमेन्द्र क्षीरसागर,
पत्रकार, लेखक व स्तंभकार
महान संत, दर्शनशास्त्री, कवि, समाज-सुधारक और ईश्वर के अनुयायी संत शिरोमणि रविदास के जन्म को लेकर सबकी अपनी-अपनी राय है। कुछ लोगों का मानना है कि उनका जन्म 1376-77 के आसपास हुआ था, कोई 1399 ई. कुछ दस्तावेजों के अनुसार रविदास 1450 और 1520 के बीच रहे। मान्यता के अनुसार रविदास का जन्म माघ पूर्णिमा के दिनवाराणसी के निकट सीर गोवर्धनगांव में हुआ था। उनकी माता कालसा देवी थीं और उनके पिता संतोख दास थे। 16 फरवरी को माघ पूर्णिमा है। अलौकिक, संत रविदास भारत में 15 वीं शताब्दी के संत परंपरा में एक चमकते नेतृत्वकर्ता और उत्तर भारतीय भक्ति आंदोलन को नेतृत्व देते थे। उन्होंने अपने महान कविता लेखन के जरिए विविध प्रकार के आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश दिए। उन्होंने समानता पर जोर दिया जहां प्रत्येक नागरिक को सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक मानवाधिकारों का आनंद मिलेगा। उनके भक्ति छंद सिख धर्मग्रंथों, गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल हैं। स्तुत्य, भक्ति आंदोलन के प्रमुख संतों में से एक रविदास ने 120 वर्ष की आयु में 1540 ईस्वी में वाराणसी में देहत्याग दिया। रविदास के अनमोल वचन थे कि कोई भी व्यक्ति छोटा या बड़ा अपने जन्म के कारण नहीं बल्कि अपने कर्म के कारण होता है। व्यक्ति के कर्म ही उसे ऊंचा या नीचा बनाते हैं। हमें हमेशा कर्म करते रहना चाहिए और साथ साथ मिलने वाले फल की भी आशा नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि कर्म हमारा धर्म है और फल हमारा सौभाग्य है। जिस प्रकार तेज हवा के कारण सागर में बड़ी-बड़ी लहरें उठती है और फिर सागर में समा जाती है। उनका अलग अस्तित्व नहीं होता इसी प्रकार परमात्मा के बिना मानव का भी कोई अस्तित्व नहीं है। मोह माया में फंसा जीव भटकता रहता है इस माया को बनाने वाला ही मुक्तिदाता है। उत्कंठ, संत रविदास की मशहूर कहावत ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ को ज्यादातर लोगों को बोलते हुए सुना होगा। इस कहावत का अर्थ है अगर व्यक्ति का मन शुद्ध है, किसी काम को करने की उसकी नीयत अच्छी है तो उसका हर कार्य गंगा के समान पवित्र है। दरअसल इस कहावत का जन्म उस समय हुआ जब एक बार संत रविदास के कुछ विद्यार्थी और अनुयायी ने पवित्र नदी गंगा में स्नान के लिये पूछा तो उन्होंने ये कह कर मना किया कि उन्होंने पहले से ही अपने एक ग्राहक को जूता देने का वादा कर दिया है तो अब वही उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी है। रविदास जी के एक विद्यार्थी ने उनसे दुबारा निवेदन किया तब उन्होंने कहा उनका मानना है कि “मन चंगा तो कठौती में गंगा” मतलब शरीर को आत्मा से पवित्र होने की जरुरत है ना कि किसी पवित्र नदी में नहाने से, अगर हमारी आत्मा और हृदय शुद्ध है तो हम पूरी तरह से पवित्र है चाहे हम घर में ही क्यों न नहाये। वस्तुत: संत रविदास ने समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई। छुआछूत आदि का उन्होंने विरोध किया और पूरे जीवन इन कुरीतियों के खिलाफ ही काम करते रहे। उन्होंने लोगों को संदेश दिया कि ईश्वर ने इंसान बनाया है ना कि इंसान ने ईश्वर बनाया है अर्थात इस धरती पर सभी को भगवान ने बनाया है और सभी के अधिकार समान है। इस सामाजिक परिस्थिति के संदर्भ में, संत गुरु रविदास ने लोगों को वैश्विक भाईचारा और सहिष्णुता का ज्ञान दिया। अभिभूत, गुरुजी के अध्यापन से प्रभावित होकर चितौड़ साम्राज्य के राजा, रानी और अनेकानेक जन उनके अनुयायी बनकर भक्ति मार्ग में विलीन हो गए। यथेष्ठर संत शिरोमणि रविदास के एक-एक सबक आज तलक कालजयी बनकर मानव कल्याण के निहितार्थ प्रेरणापुंज हैं।