Thursday, June 19, 2025
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फडणवीस-राज ठाकरे मुलाकात से महाराष्ट्र की सियासत में हलचल, ठाकरे भाइयों के संभावित गठबंधन पर लगा विराम?

मुंबई। महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर सरगर्मी बढ़ गई है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे के बीच गुरुवार को सुबह मुंबई के बांद्रा स्थित ताज लैंड्स एंड होटल में हुई मुलाकात ने सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बना दिया है। यह मुलाकात ऐसे समय पर हुई है जब राज्य में 29 नगर निगमों के लिए वार्ड परिसीमन की अधिसूचना जारी हो चुकी है और स्थानीय निकाय चुनावों की प्रक्रिया शुरू हो गई है। राजनीतिक हलकों में यह बैठक इसलिए भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि हाल के दिनों में राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच संभावित सुलह की अटकलें तेज थीं। दोनों भाइयों के बीच कुछ संकेत ऐसे मिले थे जिससे कयास लगाए जा रहे थे कि ठाकरे परिवार एक बार फिर एकजुट हो सकता है। गिरगांव इलाके में इस संभावित गठबंधन को लेकर पोस्टर भी लगे थे। लेकिन फडणवीस-राज ठाकरे की मुलाकात ने इन अटकलों को विराम देने का काम किया है।
बीजेपी के मुख्य प्रवक्ता केशव उपाध्याय ने इसे गैर-राजनीतिक मुलाकात बताते हुए कहा कि दोनों नेता अच्छे मित्र हैं और संभव है कि राज्य से जुड़े विकास कार्यों पर चर्चा के लिए मिले हों। हालांकि, जानकार इसे केवल शिष्टाचार भेंट मानने को तैयार नहीं हैं, विशेषकर तब जब मनसे ने 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को समर्थन दिया था लेकिन विधानसभा चुनावों में अकेले मैदान में उतरी थी। राज ठाकरे ने पहले “मराठी माणूस” के हित में एकजुटता की बात कही थी और उद्धव ठाकरे भी “तुच्छ झगड़ों को पीछे छोड़ने” के लिए तैयार होने का संकेत दे चुके थे। लेकिन अब जब मुख्यमंत्री फडणवीस और राज ठाकरे के बीच सीधे बातचीत हुई है, तो यह देखना दिलचस्प होगा कि मनसे की आगामी रणनीति क्या रूप लेती है। राज्य की राजनीति में कभी ठाकरे परिवार का अघोषित वर्चस्व था, लेकिन वर्तमान में शिवसेना दो खेमों में बंटी हुई है और उद्धव ठाकरे सत्ता से बाहर हैं। वहीं, राज ठाकरे की मनसे को भी बीते कुछ वर्षों में जनाधार की चुनौती का सामना करना पड़ा है। इस पृष्ठभूमि में यह मुलाकात न केवल संभावित गठबंधन की दिशा में संकेत देती है, बल्कि आने वाले स्थानीय निकाय चुनावों से पहले बीजेपी और मनसे के समीकरणों को भी नया आयाम दे सकती है। अब सबकी निगाहें इस बात पर हैं कि यह मुलाकात एक चुनावी समझौते की नींव साबित होती है या सिर्फ एक रणनीतिक संवाद तक सीमित रहती है।

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