
मनोज कुमार अग्रवाल
देश की राजनीति में मुगल शासक औरंगज़ेब चर्चा में है और समाजवादी पार्टी के नेता अबू आजमी के इसके महिमामंडन करने की कोशिश को लेकर विवाद बढ़ गया है। इतिहास में देखें तो सबसे विवादास्पद मुगल शासकों में सबसे प्रमुख नाम औरंगजेब का है। औरंगज़ेब ने गैर-मुसलमानों पर जज़िया कर जैसी भेदभावपूर्ण नीतियां लागू की। औरंगज़ेब ने सिखों के गुरु तेग बहादुर का सिर कलम करवा दिया था। उसने गुरु गोविंद सिंह के बेटों को जिंदा दीवार में चुनवा दिया, वहीं संभाजी महाराज की आंखें फोड़ दीं और नाखून उखाड़ लिए। इसके शासन काल में भारत में शरियत के आधार पर फतवा-ए-आलमगीरी लागू किया और बड़ी संख्या में हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दिया गया। काशी सोमनाथ मंदिरों को कष्ट करवाया और लाखों हिंदुओं की हत्या करवाई। इसकी क्रूरता के कारण करीब-करीब पूरे भारतीय उपमहादीप में मुगल साम्राज्य अपना सबसे ज्यादा विस्तार कर पाया। औरंगज़ेब की मृत्यु 1707 ईस्वी में हुई थी। कहा जाता है कि मौत से पहले इसको अपने किये पर पछतावा था और औरंगज़ेब ने अपने बेटों आजम शाह और काम बख्श को खेद व्यक्त करने के लिए पत्र लिखे थे । इन पत्रों में उसने अपने पापों और असफलताओं के बारे में जिक्र किया। औरंगजेब ने अपने आखिरी पत्र में जो लिखा वह उसके पछतावे की कहानी कहता है। औरंगज़ेब ने मरने से पहले अपने बेटों को लिखी एक चिट्ठी में अपने पापों का ज़िक्र किया था। इस चिट्ठी में उसने लिखा था कि उसने लोगों का भला नहीं किया और उनका जीवन निरर्थक बीत गया। उसने यह भी लिखा था कि उसे अपने पापों का परिणाम भुगतना होगा। राम कुमार वर्मा की लिखी किताब ‘औरंगजेब की आखिरी रात’ में औरंगजेब के खत का मजमून कुछ यूं जिक्र किया गया है। अब मैं बूढ़ा और दुर्बल हो गया हूं.मैं नहीं जानता मैं कौन हूं और इस संसार में क्यों आया. मैंने लोगों का भला नहीं किया, मेरा जीवन ऐसे ही निरर्थक बीत गया। भविष्य को लेकर मुझे कोई उम्मीद नहीं है, मेरा बुखार अब उतर गया है, लेकिन ऐसा लग रहा है कि शरीर पर केवल चमड़ी हो। दुनिया में कुछ लेकर नहीं आया था लेकिन अब पापों का भारी बोझ लेकर जा रहा हूं। मैं नहीं जानता कि अल्लाह मुझे क्या सजा देगा, मैंने लोगों को जितने भी दुख दिए हैं, वो हर पाप जो मुझसे हुआ है उसका परिणाम मुझे भुगतना होगा। बुराईयों में डूबा हुआ गुनाहगार हूं मैं। औरंगजेब के पिता शाहजहां थे। औरंगजेब ने अपने पिता पर भी काफी जुल्म किये थे। औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहां को आगरा के किले में कैद करके रखा और उन्हें पानी के लिए तरसाया था। शाहजहां ने अपनी आत्मकथा ‘शाहजहांनामा’ में औरंगजेब के लिए बहुत कठोर शब्दों का प्रयोग किया था। शाहजहां ने लिखा कि खुदा करे कि ऐसी औलाद किसी के यहां पैदा ना हो। शाहजहां ने औरंगजेब की तुलना हिंदुओं से की, जो अपने माता-पिता की सेवा करते हैं और उनकी मृत्यु के बाद तर्पण करते हैं। उन्होंने लिखा है कि औरंगजेब से अच्छे तो हिंदू हैं, जो अपने माता-पिता की सेवा करते हैं और उनकी मृत्यु के बाद तर्पण करते हैं। सोशल मीडिया के ज़माने में लोग सुर्खियां बटोरने के लिए क्या-क्या नहीं करते। कुछ नेताओं ने तो इसके जरिए प्रसिद्धि पाने का बढ़िया फॉर्मूला ढूंढ़ लिया है… ‘कुछ भी उल्टा सीधा बोलें, सोशल मीडिया पर वीडियो। औरंगजेब ने क्रूरता, बर्बरता और निर्दयता से शासन किया था, अब यह किसी से छिपा नहीं है। वास्तव में औरंगज़ेब कई बुराइयों का प्रतीक है। उसने अनगिनत हिंदू मंदिर तोड़े थे, जजिया कर लगाया था, तीर्थस्थलों का अपमान किया था। उसकी क्रूरता के निशान आज भी देखे जा सकते हैं। ऐसे शख्स के शासन काल की दो-चार बातों को आधार मानकर उसे इस तरह पेश करना कि गोया ‘वह कोई महान हस्ती था’, तो यह अस्वीकार्य है। अगर अर्थव्यवस्था की बेहतरी ही किसी शासक के श्रेष्ठ होने का प्रमाण है तो इस आधार पर हिटलर का भी गुणगान होने लगेगा, चूंकि जब उसने जर्मनी की बागडोर संभाली थी तो उद्योग-धंधों को काफी बढ़ावा मिला था। क्या इससे उसके गुनाहों को नज़र अंदाज़ किया जा सकता है? अबू आजमी यह भी कहते हैं कि औरंगजेब के शासन काल में भारत की सीमा अफगानिस्तान और म्यांमार तक पहुंच गई थी। वे यह क्यों भूल जाते हैं कि औरंगज़ेब ने सीमा विस्तार से पहले क्या-क्या कांड किए थे? उसने अपने पिता और भाइयों के साथ कैसा सलूक किया था? दारा शिकोह की जिस तरह हत्या करवाई गई, उसका विवरण पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इस पर भी अबू आज़मी अपने फेसबुक पेज पर औरंगजेब का नाम बहुत ही आदर से लिखते हैं, जैसे उसने मानवता की बहुत बड़ी सेवा की थी! औरंगज़ेब के बारे में कुछ कथित इतिहासकारों ने बड़ी भ्रामक बातें फैला रखी हैं। ये विरोधाभासी भी हैं। एक तरफ कहा जाता है कि औरंगजेब टोपी सिलाई कर अपना खर्च चलाता था, दूसरी तरफ कहा जाता है कि वह राजकाज और सीमा विस्तार आदि में बहुत ज्यादा व्यस्त रहता था, उसकी ज़िंदगी का आखिरी हिरसा सैन्य अभियानों में ही गुजर गया था। ये दोनों बातें एकसाथ कैसे संभव हैं? एक तरफ कहा जाता है कि औरंगज़ेब अपने लिए राजकोष से कुछ नहीं लेता था, दूसरी तरफ कहा जाता है कि उसका बहुत रौब था, पांच दशक तक मजबूती से राज किया। सवाल है-कौन अधिकारी या इतिहासकार ऐसे बादशाह से हिसाब मांग सकता था? क्या उसे अपनी गर्दन सलामत नहीं चाहिए थी? जब प्राकृतिक संपदा और कीमती धातुओं से संपन्न देश पर कब्जा था तो खर्चे की किसे फिक्र थी, रोकने वाला कौन था? औरंगज़ेब के समर्थन में कहा जाता है कि कई हिंदू राजा और उनके सैनिक भी उसके पक्ष में लड़े थे… अगर वह इतना ही बुरा होता तो ये लोग उसके साथ क्यों थे? असल में यह बहुत बचकाना तर्क है। कई हिंदू राजा और उनके सैनिक तो परिस्थितिवश अंग्रेजों के साथ भी रहे थे। क्या इस आधार पर ब्रिटिश साम्राज्यवाद के गुनाह भुलाए जा सकते हैं? जो राजा अंग्रेजों के साथ थे, वे अपना राजपाट बचाने के लिए ऐसा कर रहे थे और जो सैनिक उनके झंडे तले खड़े थे, वे अपने सेनापति का आदेश मान रहे थे। यह न भूलें कि वर्ष 1857 में कई राज परिवार अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति में कूदे थे, कई सैनिकों ने अंग्रेजों पर धावा बोल दिया था। उनका एक ही मकसद था- ‘अंग्रेजों के अत्याचारों से मुक्ति’। इसी तरह औरंगज़ेब के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज, गुरु गोबिंद सिंहजी महाराज जैसे दिव्य पुरुष आए थे। अब आप ही तय कीजिए कि हमारे आदर्श वीर महापुरुष होने के चाहिए या औरंगजेब जैसे कोई खूनी क्रूर अत्याचारी बादशाह।