
मुंबई। हिन्दू धर्म में शक्ति की अनेक तरह से पूजा होती है। देवी माता के विभिन्न रूपो में से एक वाराही माता को बड़े आस्था के साथ पूजा जाता है। कांदिवली पश्चिम के शंकरगली में वाराही माता का बहुत सुंदर मंदिर है। जहां प्रतिदिन काफी भक्त दर्शन के लिए आते है। मंदिर के पुजारी पद्मलाल शर्मा ने बताया कि मंदिर की सभी मूर्तियां स्वयंभू है। यहां माता त्रिमूर्ति में विराजमान है। और तीनो प्रतिमा धरती से निकली है। शर्मा के अनुसार 1947 के आसपास माता का जमीन से प्राकट्य हुआ था तब लोगों ने चबूतरा बनाकर पूजा-पाठ करना शुरू किया। बाद में 1969 में माता का मंदिर बना। वाराही माता के बारे पंडित पद्मलाल शर्मा ने जानकरी देते हुए बताया कि वाराही माता का सबसे पुराना मंदिर सिंधू क्षेत्र यानि सिंध में था,जो अब पाकिस्तान का कराची है । सिंध में दो हजार वर्ष से या उससे कुछ साल पहले माता वाराही माता स्वयं से उत्पन्न थी। शर्मा ने कहा कि पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है कि माता ने संकट के वक्त देवताओं की सहयता किया। भगवान विष्णु ने जब पृथ्वी को बचाने के लिए हिरणाक्ष असुर का वध करने वाराह अवतार लिया था । उस समय जो शक्ति निकली वही वाराही माता कहलाई। महिसासुर के अत्याचारों से पीड़ित देवताओं की स्तुति से जब देवी उत्पन्न हुई उनका विग्रह स्वरूप वाराही माता है। विपत्ति काल में देवताओं ने भी वाराही माता को ध्यान किया था। और माता के तेज से दैत्यों का संहार हुआ। माता को भगवती तथा लक्ष्मी माना जाता है। आज का परेशान व्यक्ति भी श्रद्धाभाव से माता को याद करेगा उसकी कामना पूर्ण होगी। उन्हों ने कहा कि माता के दरबार कोई खाली नहीं लौटा है। देश में वाराही माता के बहुत कम मंदिर है। मुंबई इकलौता कांदिवली में मंदिर है। इस मन्दिर में पूरे नवरात्रि में भक्तों का जमावड़ा लगता है। यहां लोग अपनी तरह तरह की मुरादें लेकर आते हैं और सभी की मुरादे पूरी होती हैं। माता जी के भक्तों ने बताया कि यहां का बहुत बड़ा महत्व है । पद्मलाल शर्मा के पहले उनके पिता विट्ठलदास शर्मा वर्षो तक सेवा किया । आज उनकी देवी सेवा की विरासत को पद्मलाल संभाले हुए है।