सरकार एक देश, एक चुनाव को इसी विशेष पांच दिन के आकस्मिक संसद सत्र में बिल लाकर पास कराना चाहती है। सोशल मीडिया ही नहीं इलेक्ट्रोनिक और प्रिंट मीडिया इसके नहीं सरकार के समर्थन में प्रमुखता से प्रकाशित और चैनल पर दिखाकर जनता को जताना चाहती है कि देखो सरकार ने तुम्हारा धन बचाने के लिए एक देश एक चुनाव का नारा देकर तुम्हें लुभाना चाहती है। तनिक सोचिए पंच, सरपंच, बीसीडी, जिला परिषद, विधानसभा, लोकसभा यानी कुल छः प्रत्याशी चुनने की विकट समस्या वोटरों के सामने परोस रही है। देखने सुनने में तो बड़ा लोक लुभावन योजना है लेकिन देश की आधी निरक्षर आबादी हो या पढ़े लिखे लोग। एक साथ छः बैलेटपेपर या ईवीएम के द्वारा अपनी पसंद का प्रतिनिधि चुनने की कवायद से जूझने को बाध्य होंगे।अशिक्षित, अल्पशिक्षित और शिक्षित मतदाताओं के लिए अत्यंत जटिल कार्य होगा। किस किस को याद रखेंगे मतदाता?गड़बड़ हो जाएगा। एक कमरे में एक साथ छः सिंबल याद रखना असम्भव है। माना की जनता के धन का अपव्यय कम होगा लेकिन जनता को विकट परिस्थिति में डूबना होगा। छः लोगों के नाम, सिंबल याद रखा ही नहीं जा सकता। वोटर वोट किसी को देना चाहता होगा लेकिन किसी दूसरे को मिल जाएगा।
नौ वर्षों से बीजेपी नेताओं, गोदी मीडिया और भक्त सोशल मीडिया पर मांग करते अथवा समर्थन करते रहे हैं। उनका सिर्फ एक ही काम होता है।बीजेपी से संबंधित है तो टूट पड़े। दिन रात मूसल बाजा बजाते रहो, बजाते रहो।समझ में आए या नहीं आए यह मायने नहीं रखता।बीजेपी सरकार पिछले नौ वर्षों तक सोती रही। अब जब लोकसभा के आगामी चुनाव में हार दिखने लगी है तो समय पूर्व चुनाव कराने की कवायद कर रही है। ईवीएम से चुनाव कराने का खतरा अलग से। कई बार इंजीनियर्स आईएएस और स्पेशलिस्ट प्रमाणित कर चुके हैं कि बीजेपी ईवीएम हैक कराकर जीतती है। एक साथ छः चुनाव भारत के लिए न्यायोचित नहीं है। बीजेपी सरकार जानती है कि छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान विधानसभा चुनाव के साथ ही लोकसभा चुनाव में हार रही। सभी सर्वे जिसमे अधिकतर गोदी मीडिया के हैं।इसके अलावा आरएसएस और खुद बीजेपी द्वारा कराए सर्वे देखका बीजेपी नेतृत्व और आर एस एस में बेचैनी है। इसी समय अडानी के खिलाफ देश से बाहर हवाला द्वारा पैसा भेजे जाने के साथ ही चीनी नागरिक के अडानी ग्रुप में भागीदार बनने, नियम विरुद्ध लगभग 70 प्रतिशत शेयर अपने परिवार के नाम रखकर फर्जी तरीके विदेशी खरीददारों को लुभाकर शेयर ऊंचे मूल्य पर बेचने के आरोप संस्था ने लगाए हैं। इसके पूर्व हिंदेनवर्ग और प्रसिद्ध पूंजीपति सोरोस के द्वारा आरोप और प्रमाण सामने आने के कारण अदानी दुनिया के दूसरे नंबर से इकतीसवें नंबर पर सरक आई एयरग्रूप केशेर धड़ाम से नीचे गिरे थे। अब खोजी पत्रकारों ने विदेशी निवेश के दो प्रमाण दिए तो फिर अडानी के शेयर गिर गए। ईडी चुपचाप सब कुछ देख रही। कुछ भी नहीं करेगी। इतना सब कुछ होने पर भी बीजेपी सरकार, ईडी की चुप्पी का कारण जनता अब समझने लगी है। इसी भय से बीजेपी सरकार लोकसभा चुनाव समय पूर्व कराने के लिए फरेब कर रही। उसे पता है विपक्षी दलों का गठबंधन इंडिया बजट अभाव से जूझ रहा है।चुनाव की तैयारी आधी अधूरी है।इसलिए समयपूर्व चुनाव कराने का निर्णय कर चुकी है। वह इंडिया को चुनाव की तैयारी के लिए समय नहीं देना चाहती।इसीलिए सारी कवायद कर रही। बीजेपी सरकार को मालूम है लोकसभा और राज्यसभा में चंद नेताओं को ई डी का भय दिखाकर समर्थन ले लेगी जिससे बिल पास कराने में समस्या नहीं होगी। बीजेपी सरकार संयुक्त अधिवेशन में ही बिल रखेगी। लोकसभा में बहुमत राज्यसभा के अल्पमत को बहुमत में बदल देगा। थोड़े वोट कम भी हुए तो बीजेपी सरकार का सबसे बड़ा हथियार काम देगा जो पहले ही भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा है।
वोटर लिस्ट सुधार या अपडेट के समय वोटर का मोबाइल नंबर और आधारकार्ड जोड़ा जा चुका है। चुनाव आयोग पहले डिजिटल चुनाव की तैयारी कर चुका है।डिजिटल वोटिंग सिस्टम के लिए चुनाव क्षेत्र के प्रत्याशियों उनके सिंबल हरेक वोटर की मोबाइल पर सरलता से चुनाव के दिन सुबह एक साथ भेजा जा सकता है।वोटर उसमें से अपनी पसंद के प्रतिनिधि के क्रमांक पर बटन दबाकर वोट दे सकता है जिसके लिए बूथ निर्माण, सुरक्षा, कर्मचारियों की तैनाती और ट्रेनिंग आदि का व्यय जीरो किया जा सकता है। इसी तरह बैलेट बॉक्स या ईवीएम की ढुलाई, स्ट्रॉन्ग रूम में पहरा। गणना के लिए पंडाल, गणक कर्मी सुरक्षा और अन्य मद पर होने वाले सारे व्यय भी जीरो किए जा सकते हैं। क्षेत्र से दूर रोज़ी रोटी के चक्कर में रहने वाले वोटर भी मोबाइल से वोट डाल सकेंगे। काश स्वार्थलिप्त् नेताओं सरकार को यह समझ आती कि वह डिजिटल वोटिंग और डिजिटल काउंटिंग का प्रस्ताव संसद में लाते।
माना की चुनाव व्यय कम करने की बात करती है बीजेपी सरकार। हम तो समर्थन तब करेंगे जब डिजिटल कर चुनाव व्यय जीरो कर दे सरकार। माना की वोटिंग छः प्रतिनिधियों के एक साथ चयन का विकल्प दिया जा रहा है लेकिन पूरी तरह अव्यावहारिक ही है। बूथ,चुनाव कर्मी, पर्वेक्षक और सुरक्षा कर्मी तो लगेंगे ही। वोटिंग के बाद बॉक्स स्ट्रॉन्ग रूम में रखकर सुरक्षा करने का व्यय और फिर एक साथ छः छः पंडाल लगाने, कुर्सी टेबल्स की व्यवस्था करने,गणना करने वाले कर्मियों और सुरक्षा पर व्यय तो होगा ही। सबसे अहम बात पी एम, सीएम, मंत्री गण हवाईयात्रा करेंगे उसका करोड़ों का व्यय, सुरक्षा पर करोड़ों का रोज खर्च, इसके अलावा पार्टी द्वारा प्रत्याशी को दिए जाने वाले लाखों के फंड, वोटरों को लुभाने के लिए चुनाव पूर्व मुफ्त की रेवड़ियां सरकार द्वारा बांटने पर होने वाले व्यय। दलालों के माध्यम से करोड़ों रुपए वोट खरीदने के लिए कई कई करोड़ व्यर्थ में किए जाते हैं।पीएम, सीएम, मंत्री पूरे देश के लिए होते हैं।इनके हवाई व्यय करोड़ों में रोज, अकेले पीएम की सुरक्षा का करोड़ों रोज व्यय, रैली की व्यवस्था करने में एक एक रैली का व्यय कई कई लाख होते हैं।गरीब देश भारत के अमीर पीएम, सीएम, मंत्री आदि किसी पार्टी या प्रत्याशी का प्रचार क्यों करें? वह भी जनता के धन से।इंडिया में पीएम चुनाव विश्व के सबसे धनी अमेरिकी राष्ट्रपति से बहुत अधिक होता है।क्या गरीब देश में जनता का पैसा व्यक्तिगत पार्टी के प्रचार में लगाना उचित है। क्यों नहीं क्षेत्रीय प्रत्याशी अपना प्रचार खुद करें। क्या इतने नाकारा होते है प्रत्याशी जो वोटरों से रूबरू होके अपने मन की बात नहीं कह सकते।तो फिर ऐसे प्रतिनिधि की जरूरत ही क्या है।सिर्फ सरकार बनाने के लिए वोट देने की हद तक। लानत है गरीबों के द्वारा मिले टैक्स की सात खरब राशि चुनाव पर अपव्यय करना।सरकार एक राष्ट्र एक चुनाव के लिए जीरो बजट की सोच क्यों नहीं रखती? डिजिटल वोटिंग और डिजिटल काउंटिंग हो न्यायधर्म सभा का प्रस्ताव है को लागू क्यों नहीं करती जिससे जनता की गाढ़ी कमाई का एक भी पैसा व्यर्थ में खर्च नहीं किया जाए? जहां तक प्रत्याशियों की बात है जनता और लोकतंत्र आशा करती है कि प्रत्याशी शिक्षित और सज्जन हों।माफिया, डॉन, व्यभिचारी, दुराचारी, बाहुबली, गुंडे, बदमाश, गिरोहाबाज, अपात्र लोगों को टिकट देने और चुनाव लड़ने से रोकने के लिए विशेष सत्र में बिल लाकर संसद में पास कराना चाहिए सरकार को। शिक्षितों पर शासन करने वाले अशिक्षित, भ्रष्ट, लुटेरों, बलात्कारियों, बाहुबलियों को चुनने को मजबूर क्यों की जाए जनता? अगर जनता शिक्षित और जागरूक होती और राष्ट्रहित की सोचने मे समर्थ होती तो दागियों को कभी भी वोट नहीं देती। ये दागी, अपात्र सिर्फ इसीलिए चुने जाते हैं क्योंकि जनता को पार्टी को वोट देने की बात कही जाती है। प्रत्याशी को नहीं। सारे प्रत्याशियों को रेडियो टीवी पर समय आबंटित कर, चुनावी व्यय जीरो करके चुनाव को निशुल्क लड़ने वाला बनाया जाना चाहिए ताकि सज्जन व्यक्ति भी चुनाव लडने का साहस कर सकें। सबसे अहम बात यह कि पार्टियां अपना पीएम, सीएम चेहरा सामने रखकर चुनाव लड़ती हैं जो संवैधानिक रूप से 100 प्रतिशत असंवैधानिक है क्यों कि संविधान कहता है कि जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि सदन में अपना नेता चुनेंगे। ऐसा करने से पीएम और सीएम पद हेतु सुयोग्य व्यक्ति ही चुना जाएगा और किसी पार्टी या गठबंधन की स्वार्थी सरकार के स्थान पर राष्ट्रीय सरकार का गठन संभव होगा। तब ईडी, सीबीआई और आईटी को पालतू तोता नहीं बनाया जा सकेगा और न सरकार केवल विपक्षी में ही भ्रष्ट नेता ढूंढकर उसके पीछे सीबीआई, आईटी और ईडी जैसे हथियार का दुरुपयोग कर भेदभाव नहीं कर सकेगी न तो भ्रष्ट विपक्षी नेता को अपनी पार्टी में शामिल कर ईमानदार होने का तमगा दे सकेगी। बेईमान भ्रष्ट कोई भी नेता हो उसे हटाने का अधिकार जनता को दिया जाए।- जितेंद्र पांडेय