पुणे। महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली शोमा सेन को शुक्रवार को बड़ी राहत मिली है। एल्गर परिषद केस में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें सशर्त जमानत दी है। जमानत की अवधि में वो स्पेशल कोर्ट को सूचना दिए बगैर महाराष्ट्र से बाहर नहीं जा सकेंगी। मोबाइल नंबर के बारे में जानकारी देनी होगी। साथ ही उस नंबर को चालू रखना होगा। इसके साथ ही सेन लोकेशन का पता चलता रहे, इसके लिए जीपीएस चालू रखना होगा। शर्तों का उल्लंघन करने पर अभियोजन पक्ष जमानत रद्द करने की मांग कर सकता है. बताते चलें कि सेन पर माओवादी संबंधों का आरोप है। इसी मामले में वो जेल में थीं। पुणे के भीमा कोरेगांव में भड़की जातीय हिंसा के बाद अंग्रेजी की प्रोफेसर सेन को ६ जून २०१८ को अरेस्ट किया गया था। सेन के अलावा पुणे सिटी पुलिस ने दिल्ली से रोना विल्सन, मुंबई से सुधीर धावले, नागपुर से वकील सुरेंद्र गाडलिंग और महेश राउत को नागपुर से गिरफ्तार किया था। भीमा-कोरेगांव मामले में स्टेन स्वामी को भी अरेस्ट किया गया था. स्टैनिस्लॉस लोर्दूस्वामी उर्फ फादर स्टेन स्वामी एक रोमन कैथोलिक पादरी थे, जिनका जीवन १९९० के दशक से ही झारखंड के आदिवासियों और वंचितों के अधिकारों के लिये काम करने के लिए पूरी तरह समर्पित रहा। जुलाई २०२१ में मुंबई के होली फैमिली हॉस्पिटल में उन्होंने आखिरी सांस ली थी। स्टेन स्वामी का जन्म २६ अप्रैल १९३७ को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में हुआ था। उन्होंने थियोलॉजी और मनीला विश्वविद्यालय से १९७० के दशक में समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की। बाद में उन्होंने ब्रसेल्स में भी पढ़ाई की, जहां उनकी दोस्ती आर्चबिशप होल्डर कामरा से हुई। ब्राजील के गरीबों के लिए उनके किए गए काम ने स्टेन स्वामी को खूब प्रभावित किया। उन्होंने १९७५ से १९८६ तक बेंगलुरू स्थित इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट के निदेशक के तौर पर काम किया। झारखंड में आदिवासियों के लिए एक कार्यकर्ता के रूप में करीब ३० साल पहले उन्होंने काम करना शुरू किया। साथ ही उन्होंने हाशिये पर रहने वाले उन आदिवासियों के लिए भी काम किया, जिनकी जमीन का बांध, खदान और विकास के नाम पर बिना उनकी सहमति के अधिग्रहण कर लिया गया था।