
देश का सर्वोच्च न्यायालय। कई याचिकाओं की सुनवाई करते हुए सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पारदीवाला बेंच ने सुनवाई अगस्त माह के लिए टालते हुए केंद्र और राज्य सरकारो को आदेश दिया था कि इस कानून के अंतर्गत कोई नई केस दर्ज न की जाए। यह आदेश पिछले वर्ष 11 मई को ही जारी किया गया था। कोर्ट में दाखिल कई याचिकाओं पर सुनवाई के समय केंद्र सरकार की ओर से कहा गया कि दंडात्मक कानून आईपीसी की धारा 124ए का अध्ययन केंद्र सरकार कर रही है और यह अंतिम चरण में है। केंद्र की दलील सुनने के बाद याचिकाओं पर सुनवाई टाल दी सुप्रीम कोर्ट ने। पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून पर व्यापक रूप से सरकारी पैनल द्वारा जांच करने का आदेश दिया था। सरकार की ओर से कहा गया कि जांच अपने अंतिम दौर में है। इस दंडात्मक कानून की जांच की जाय।
अभी तक इस दंडात्मक कानून के तहत सरकार के प्रति असंतोष पैदा करने वाले व्यक्ति को तीन साल से लेकर उम्र कैद की सजा का प्रावधान है। अंग्रेजों द्वारा भारत में अपने शासन को सुदृढ़ और सुदीर्घ बनाए रखने के लिए भारतीयों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का अधिकार पाने के लिए आईपीसी यानी इंडियन पीनल कानूनों का निर्माण सन 1890 में किया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के 57 साल पूर्व दंडात्मक कानून 124 ए को लगभग 30 साल पूर्व इंडियन पीनल कानून में शामिल कर लिया गया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत असंतोष शब्द की सभी सरकारों ने अपनी अपनी सुविधानुसार अर्थ निकाले और दुरुपयोग किए। अपने विरोधियों को चुप कराने, कुचलने में यह दंडात्मक कानून बड़ा सहायक रहा। समय बीतने के साथ शिक्षा प्रसार से सोच को नई दिशाएं मिलनी शुरू हो गई। प्रबुद्ध जन जागरूक होने लगे जिसकी परिणति अब आईपीसी की धारा 124 ए की सरकारी पैनल जांच कर उचित कानून बनाने की रिपोर्ट देगा जिसे सरकार पहले सुप्रीम कोर्ट में दिखाने का दावा किया है। ऐसा पहली बार हुआ है कि कोई सरकार संसद में प्रस्ताव रखने के पूर्व सुप्रीम कोर्ट में कानून का मसौदा तैयार कर दिखाने का वादा कर रही है। अंग्रेजों द्वारा बनाए गए इंडियन पीनल कोड और पुलिसिया कानून खत्म कर एक नया रूप देने की मांग जनता की ओर से की जाती रही है।देर से ही सही आईपीसी की धारा 124 ए की जांच और नया कानून बनाने की पहल तो की गई है। संभव है कुछ समय बाद अंग्रेजी सत्ता द्वारा बनाए गए सारे अन्याई कानूनों को रद्द कर आजाद भारत का नया पीनल कोड बनाने की प्रक्रिया शुरू हो। भाजपा सरकार हमेशा से कहती रही है कि वह अनर्थक कानूनों को खम करेगी लेकिन अभी तक ऐसा कुछ नहीं किया गया जिससे नई आशा जगे। अब चूंकि सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई और जस्टिस पारदीवाला ने आदेश दे रखा है और सरकारी पैनल जांच के अंतिम चरण में है, कहना और सुप्रीम कोर्ट को मसौदा दिखाने के बाद ही मानसून सत्र में संसद में प्रस्ताव रखने की बात से आशा बलवती होने लगी है कि आगे चलकर शासक अंग्रेजों द्वारा बनाए गए सारे कानून फिर बदले जाएंगे और प्रजा की जगह जनता को मान्यता मिलेगी।