छत्रपति शिवाजी महाराज हों या महाराणा प्रताप, दोनों ने हिंदू हिंदुत्व के लिए लड़ाई लड़ी। कभी भी मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की। शिवाजी ने शून्य से विस्तार कर हिंदवी स्वराज्य को बहुत बड़े क्षेत्रफल में स्थापित किया। महाराणा प्रताप की छोटी सेना ने छापामार युद्ध का श्रीगणेश किया। शिवाजी महाराज ने भी वही युद्ध शैली अपनाई। दोनों ने हिंदवी स्वराज्य के लिए बलिदान दिए। छत्रपति शिवाजी केवल महाराष्ट्र के लिए नहीं, अपितु पूरे देश के लिए वंदनीय हैं। आदर्श हैं। उनका सेनापति मुस्लिम था परंतु शिवाजी के एक इशारे पर प्राण देने में बहुत आगे रहा। शिवाजी के मन में मुस्लिमों के प्रति कोई विरोधाभास रहा हो, तो वह कहीं दिखा नहीं। मुस्लिम महिला के सेना द्वारा पकड़े जाकर दरबार में लाने के बाद शिवाजी ने उसमें मां का अक्ष देखा और कहा, काश मेरी मां भी इतनी सुंदर होती तो मैं भी सुंदर होता। कहना नहीं होगा कि महिलाओं के प्रति शिवाजी के मन में अटूट आदर भाव था। उस मुस्लिम महिला को सादर उसके आवास तक पहुंचवाया। समूचे हिंदू समाज के लिए शिवाजी आदर्श और गर्व के पात्र हैं। ऐसे में शिवाजी की मूर्ति जो चुनावी फायदे के लिए बनवाकर उद्घाटन किया गया, लेकिन आठ महीने भी टिक न सकी मूर्ति। यह बेहद शर्मसार करने वाली भ्रष्टाचार का ही प्रमाण है। पीएम मोदी महाराष्ट्र पहुंचे और क्षमा मांगी, लेकिन उद्धव ठाकरे ने ठीक कहा कि माफी मांगने में भी अहंकार झलक रहा था। माफी मांगने समय सावरकर पर कांग्रेस की टिप्पणी का उल्लेख करने का अर्थ है अपराध बहुत छोटा है जिसे महाराष्ट्र की जनता इंडिया गठबंधन के नेताओं के साथ सड़क पर उतर आई। इसके पूर्व कांग्रेस ने मोदी को काले झंडे दिखाए थे। मुंबई के जुहू चौपाटी पर लगभग सैकड़ों साल पूर्व बनी मूर्ति आज भी वैसी ही है। यह प्रमाण है शिवाजी के प्रति आदर भाव का, लेकिन बीजेपी केवल राजनीतिक नफा नुकसान को देखकर काम करती है। गांधी के हत्यारे को अपना आदर्श मानने वाले शिवाजी के कब होंगे? माफी मांगनी थी तो सीधे-सीधे मांग लेते। सावरकर और कांग्रेस का नाम इसलिए लिया कि इसमें कोई अपराध नहीं किया। कांग्रेस ने सावरकर का अपमान किया था, तो बीजेपी ने बदले की भावना से शिवाजी का अपमान किया। इंडिया गठबंधन माफीनामे के तरीके का विरोध करता है, जबकि मुख्यमंत्री शिंदे ने राजनीतिक बयान देकर अपने भ्रष्टाचार को छुपाने की कोशिश की है। महाराष्ट्र में पहले ही हार का अनुमान मिल गया था, जिस कारण जम्मू-कश्मीर और हरियाणा चुनाव के साथ महाराष्ट्र और झारखंड में चुनावी तिथियों की घोषणा करने की हिम्मत नहीं रही। क्षतिपूर्ति के लिए आर्किटेक्ट के कहने के बावजूद कि इतने जल्दी मूर्ति नहीं बन सकती। चुनाव पूर्व इमोशनल दबाव बनाने के लिए ही मूर्ति का अनावरण हुआ। माफी मांगनी थी तो महिला पहलवानों से मांगते। राममंदिर और नई संसद भवन की छत टपकने पर देश से माफी मांगते। बाहुबली सांसद बृजभूषण को बचाने पर माफी मांगते। कुलदीप सेंगर द्वारा दलित युवती के बलात्कार पर माफी मांगनी थी। बीएचयू की छात्रा के साथ गैंगरेप और उन्हें बचाने के लिए सरकारी वकील द्वारा समुचित पैरवी न करने पर माफी मांगते। किसानों को खालिस्तानी कहने, बीजेपी की महिला सांसद के मूर्खतापूर्ण बयान कि किसानों ने बलात्कार और हत्याएं की कहने पर माफी मांगते। विपक्षी भ्रष्टाचारियों को बीजेपी में शामिल कराने, महाराष्ट्र की जनता द्वारा चुनी गई सरकार गिराने और भ्रष्टाचार के विरुद्ध झूठी लड़ाई पर माफी मांगते। तमाम बातें हैं। घटनाएं हैं जिनपर मोदी को देश से माफी मांगनी चाहिए थी, लेकिन चुनावी फायदा के लिए शिवाजी की मूर्ति लगाने के लिए भी तो माफी मांगी जा सकती है। सच तो यह है कि खुले दिल से माफी मांगना तानाशाही के विरुद्ध है।