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सात साल में 18 लाख असंगठित क्षेत्र की कंपनियां बंद हो गईं। जिससे उनमें काम करने वाले 54 लाख लोग बेरोजगार हो गए हैं। सरकारी नीतियों का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। नेशनल सैंपल सर्वे में यह बात सामने आई है। सर्वे में खुलकर सच सामने आया है कि कन्युफैक्चर सेक्टर में सात वर्षों में 9.3 प्रतिशत की गिरावट आई है। एनएसएमओ के अनुसार 2015/16 में असंगठित क्षेत्र में 1.97 करोड़ असंगठित उद्योग थे। लेकिन 2022/23 में असंगठित क्षेत्र के उद्योगों की संख्या घटकर मात्र 1.79 हो गई। सर्वे के अनुसार 2015/16 में 3.60 करोड़ लोग काम कर रहे थे लेकिन नोट बंदी के कारण 2022/23 में 15 प्रतिशत की गिरावट हुई और काम करने वालों की संख्या मात्र 3.06 हो गई। यानी सात साल में सर्वे हुआ। 2017/18 के सर्वे में ही पता कल जाता कि नोट बंदी से सबसे अधिक प्रभावित होने वाला क्षेत्र यही असंगठित उद्योग ही बंद हुए जिससे 54 करोड़ कामगार बेरोजगार हो गए। दरअसल सहसा नोट बंदी के कारण छोटे छोटे उद्योगों के पास पूंजी का अभाव हो गया जिनका पूरा काम काज नकदी के रूप में होता था।नकदी के अभाव में 18 लाख असंगठित क्षेत्र की कंपनियां बंद हो गई और 54, करोड़ लोग बेरोजगार हो गए।मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर नंद होने से 54 करोड़ लोगों के परिवार बेहाल हो गए उनके समक्ष जीवन मरण का सवाल उठ खड़ा हो गया।बड़े फख्र से मोदी ने कहा हमने इतनी कंपनियां बंद करा दी नोट बंदी करके। बड़ा दावा किया था कि नोट बंदी करने पर देश के भीतर जमा काला धन बाहर आएगा लेकिन आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार 98 प्रतिशत करेंसी नोट बंदी के समय उसके पास लौट आई थी तब कालेधन का क्या हुआ? सच्चाई इसके विपरित है। नोट बंदी के समय केवल आम नागरिक भयानक ठंड में दिन भर दो चार नोट बदलने के लिए लाइन में लगा रहा जिसमें सैकड़ों बेगुनाहों की मौत भी हो गई। कालाधन एक लाल पाई भी बाहर नहीं आई। कोई नेता मंत्री सांसद विधायक मुख्यमंत्री बड़ा व्यापारी उद्योगपति ठेकेदार दलाल बैंक की लाइन में लगते नहीं देखा गया तो क्या ये ब्यूरोक्रेट नेता व्यापारी उद्योगपति ही देश में ईमानदार हैं बाकी आम जनता देश की जिनकी संख्या 140 करोड़ है।सारे के सारे बेईमान और चोर थे? नेताओं ब्यूरोक्रेट्स ब्यापारी उद्योगपतियों के घर एक भी पुरानी पांच सौ की नोट नहीं थी? अगर थी तो बैंकों की लाइन में क्यों नहीं दिखे? साफ है कि गोपनीय तरीके से नोट बंदी की सूचना उन्हें दी जा चुकी थी जिससे वे अपने काले धन को सफेद कर चुके थे नोट बंदी के पूर्व। कितनी कंपनिया असंगठित क्षेत्र की बंद हुई। 54 करोड़ लोग बेरोजगार हो गए। क्या उनके संदर्भ में सोचना और उनके रोजगार के लिए काम करना सरकार का दायित्व नहीं था? पांच सौ की करेंसी छापकर कारखानों से आरबीआई तक नहीं पहुंची। वह कहां गई? सरकार और आरबीआई ने इस पर क्यों कुछ नहीं कहा? लाखों करोड़ की करेंसी बीच रास्ते से गायब हो गई। आरबीआई ने यह बात आरटीआई के जवाब में बताया था लेकिन सवाल उठता है कि आरबीआई ने सरकार को जांच कराने के लिए पत्र लिखा क्यों नहीं? यदि लिखा तो सरकार जो छोटी छोटी चीजों के लिए सीबीआई को ड्यूटी पर लगा देती है उसने सीबीआई से जांच को क्यों नहीं कहा?साफ है कि साजिश कर सरकार ने बीच रास्ते से सारी करेंसी अपने पास मांगा ली या यह भी संभव है कि मित्र उद्योगपतियों तक पहुंचा दी गई होगी। कौन जाने? लेकिन गायब करेंसी की सरकार द्वारा जांच न कराने से सवाल तो सरकार से ही पूछे जाएंगे। सरकार है कि उसके पास किसी सवाल का ज़वाब ही नहीं रहता। सवाल पूछने वाला पत्रकार जेल भेज दिया जाता है। उसके घर सीबीआई छपा मारकर मोबाइल लैपटॉप उठा ले जाती है जिससे कुछ भी हासिल नहीं होता। संसद में सवाल पूछने वाले सांसद को निलंबित कर दिया जाता रहा है। सरकार ने दो हजार की नोट बंद की। केवल गुजरात में दलालों के माध्यम से ही नोट बदलने के तमाम वीडियो 30 प्रतिशत कमीशन वाले सोशल मीडिया पर वायरल होते रहे। इतना ही नहीं सरकार ने दो लाख करोड़ की नई करेंसी छपवाई। पहले 16 लाख करोड़ छापी गई थी फिर सरकार ने नोट बंदी के बाद दो लाख करोड़ अवैध ढंग से करेंसी किसे देने के लिए प्रिंट कराई? शिक्षा,बिजली पेयजल सड़क मुहैया कराने के साथ ही करोड़ों शिक्षित युवाओं को रोजगार देने,सबको निशुल्क चिकित्सा सुविधा न देकर अगले पांच साल तक पांच किलो मुफ्त अनाज देकर 80 करोड़ लोगों को गरीब बनाए रखने की साजिश में तल्लीन अब मुख्य मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने के लिए परीक्षा पूर्व ही पेपर लीक कराने में लगी है। याद रहे 2014 से संसद सदस्यों की संख्या घटते हुए 240 पर आ गई जिसमे सैकड़ों सीटें चुनाव आयोग ने एक करोड़ सात लाख मत गलत तरीके से बढ़ाकर बीजेपी को जिताया लेकिन बहुमत न दिला सका। 2029 के लोकसभा चुनाव में जीरो सांसद वाली पार्टी बन जाएगी। वैसे भी कांग्रेस से आए 120 सदस्यों ने जिस दिन अपनी घर वापसी कर दी उस दिन दोनो वैसाखी मिलाकर भी सरकार बचा नहीं सकेगी। बेहतर होगा फालतू बातें छोड़कर सरकार जनहित के मुद्दों पर काम करे।