
तुलसीदास ने दो चौपाइयां लिखीं हैं। पहली है, प्रभुता पाई काऊ मद नाहि। अर्थात प्रभुता पाकर किसे मद या घमंड नहीं होता? दूसरी का भाव है अधज्ल गगरी छलकत जाय भरी गागरिया छलाकत जाए। अर्थात वास्तविक ज्ञानी विनम्र हो जाते हैं जैसे फल लगने पर वृक्ष की डालियां झुक जाती हैं। ये बातें किसी पर भी लागू हो सकती हैं। किसी के प्रति विद्वेष भाव नहीं है इसमें। हमारे महान ज्ञानी केंद्रीय कानून मंत्री जी किरण रिजिजू हैं। कानून के बहुत बड़े ज्ञाता। मेधावी भी रहे हैं छात्र जीवन में। वक्ता भी बहुत अच्छे हैं। लेकिन कुछ समय से शायद उच्च पद का अभिमान हो गया है। गाहे बेगाहे वे बोलते रहते हैं। कुछ दिन पूर्व उन्होंने कहा था, हम नेता जनता द्वारा चुनकर आते हैं। न्यायाधीश जनता द्वारा चुनकर नहीं आते। जनप्रतिनिधि होने के नाते हमारा अधिकार है कि हम यानी सरकार ही सुप्रीमकोर्ट और हाईकोर्ट के सभी जजों की नियुक्ति करें। यह सरकार का अधिकार है। यही नहीं उन्होंने कहा था यह जजों की नियुक्ति के लिए जो कोलेजियम
व्यवस्था जजों ने बना ली है। वह संविधानिक नहीं है। संविधान की दुहाई देते हुए कहते हैं भारतीय संविधान में कोलेजियम की व्यवस्था है ही नहीं। तो यह भी लगे हाथ बटा देते कि न्याधीशों की नियुक्ति के लिए संवैधानिक व्यवस्था क्या है? शायद आप चाहते हैं कि सुप्रीमकोर्ट में जो भी जस्टिस नियुक्त हो वह सरकार के मन माफिक ही फैसला लिखे।
बेशक लिखेगा जो अन्याय का पोषक होगा। सुप्रीमकोर्ट से दो रिटायर्ड जस्टिस में एक को राज्यसभा में
सांसद बनाकर और दूसरे को प्रदेश का राज्यपाल बनाकर पारितोषिक देकर आप की सरकार ने अवश्य साबित कर दिया कि जो जस्टिस सरकार के प्रति लॉयल रहेगा उसे रिटायरमेंट के उपरांत मलाई दार पद देकर उपकृत किया जाएगा। इसमें सरकार का कोई कुसूर नहीं है। सुप्रीमकोर्ट में कई ऐसे जस्टिस रहे हैं जिनकी आकांक्षा रही है कि रिटायर होने पर सरकार कृपा करके उन्हे मलाईदार कोई पद डी डी।पहले भी ऐसा हुआ है। कई जस्टिस को सरकार से वफादारी का इनाम दिया गया है।वैसे हर सरकार चाहती है कि कोई भी जस्टिस सरकार की नीतियों, कार्यपद्धतियों पर सवाल नहीं उठाए। और सरकार के ही पक्ष में फैसला सुनाया करे। परंतु यह क्या? आपने तो रिटायर्ड जस्तिसों को धमकाने, डराने पर उतर आए। कहा कि जो जस्टिस रिटायर्ड होने के बाद सरकार की आलोचना करेगा, परोक्ष रूप से हां में हां नहीं मिलाएगा उसके साथ वहीसीबीआई और ईडी लगा दी जाएगी जो आपके हिसाब से कानूनी कार्रवाई करेगी जैसे विरोधी पक्ष के नेताओं के साथ सरकार कर रही है। संविधान में असहमति के स्वर उठाने के लिए कई मौलिक और मानवाधिकार भी प्रदत्त किए गए हैं। तो क्या आप असहमति के आधार पर हरेक आवाज उठाने वाले के मौलिक अधिकार छीन लेना चाहते हैं? उच्च पद पर पदस्थ होने पर आपको शालीन होने की संविधान आशा करता है। आपतो सीधे सीधे धमकी देने पर उतर आए। एक बार शांतचित्त होकर अपनी संविधान और राष्ट्र के साथ ही जनता के प्रति लिए गए शपथ का स्मरण और चिंतन मनन कर लें तो सर्वोत्तम होगा। धमकी एक उच्च संवैधानिक पद पर बैठे जिम्मेदार व्यक्ति को शोभा नहीं देते। सच तो यह है कि आपका आई क्यू हाई लेबल का है। आपके द्वारा सीधे सीधे रिटायर्ड जस्टिस को दी गई धमकी की एक दो नहीं पूरे ३५० सुप्रीमकोर्ट और हाईकोर्ट के प्रबुद्ध और संविधान ज्ञान के अनुभवी एडवोकेट्स ने आप द्वारा दी गई धमकी की घोर निन्दा करते हुए सामूहिक हस्ताक्षर युक्त विरोध पत्र लिखा है जिसका प्रकाशन किया जा रहा है। उपरोक्त बातें तीन सौ पचास वकीलों द्वारा लिखे विरोध पत्र के आधार पर लिखे गए हैं। विरोध में लिखे पत्र शायद आपको भी मीडिया के माध्यम से हस्तगत हो चुका होगा। जिसमे आपके द्वारा रिटायर्ड जस्टिस को आपने भारत विरोधी गिरोह कहकर अपमानित किया था। पाठकों के लिए सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के ३५० एडवोकेट्स की तरफ से विरोध में लिखे गए निंदा पत्र जानकारी
ले लिए नीचे उद्धृत किए जा रहे हैं। पाठक उसे पढ़कर स्वयं निर्णय लेने को स्वतंत्र हैं। पत्र का मजमुन आपके द्वारा सुप्रीमकोर्ट के इन रिटायर्ड जस्टिस को उनके आलोचना करने पर कानून के अनुसार की धमकी के पीछे अपरोक्ष रूप से जनता को संदेश दे रहे हैं कि विरोध के किसी भी स्वर को बख्शा नहीं जाएगा। सरकार के आलोचक उतने ही राष्ट्रभक्त हैं जितने सरकार में शामिल लोग और जो आलोचक प्रशासन की विफलताओं या कमियों या संवैधानिक मापदंडों के उल्लंघन को उजागर करते हैं वे एक अंतर्निहित और सबसे बुनियादी मानवाधिकार का प्रयोग कर रहे हैं। इस तरह से डराना धमकाना मंत्री के उच्च पद को शोभा नहीं देता। सेवानिवृत्त न्यायाधीश एक मीडिया हाउस द्वारा लाइव टेलीकास्ट किए गए अनुचित हमले की घोर निन्दा करते हैं। कानून के शासन बनाए रखने में अपना जीवन समर्पित करने वालों के खिलाफ राष्ट्र विरोधी और उनके खिलाफ बदले की खुली धमकी, हमारे राष्ट्र के जन विमर्श में आई एक नई गिरावट को दर्शाता है। हम श्री रिजिजू को याद दिलाने के लिए मजबूर हैं कि संसद सदस्य के रूप में उन्होंने भारत के संविधान के प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा की शपथ ली है और कानून और न्यायमंत्री के रूप में न्याय प्रणाली, न्यायपालिका और न्यायाधीश, अतीत और वर्तमान दोनों की रक्षा का कर्तव्य उनका है। यह उनके कर्तव्य का हिस्सा नहीं है कि वे कुछ सेवा निवृत्त न्यायाधीशों को चुन लें जिनकी राय से वे सहमत नहीं हैं और उनके खिलाफ कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा कार्रवाई की सार्वजनिक धमकी न जारी करें। – लेखक जितेन्द्र पाण्डेय