Friday, November 21, 2025
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श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष: जब जन्में श्री भगवान, जेल दरमान, मुरलिया वाले, खुल गए जेल के ताले

इंजी.अतिवीर जैन’पराग’
अपनी बहन देवकी की शादी के बाद कंस वासुदेव और देवकी को रथ में बैठा कर, खुद ही सारथी बनकर बड़ी धूमधाम से ससुराल छोड़ने जा रहा था। तभी आकाश में आकाशवाणी हुई ए कंस जिस बहन को इतनी धूमधाम से विदाई दे रहा है उसी की आठवीं संतान तेरा कल बनेगी। आकाशवाणी सुनते ही कंस ने रथ रोक दिया। कंस ने सोचा कि मैं देवकी को ही मार देता हूं, जब यह नहीं होगी तो संतान कहां से होगी, यही सोच कर वह तलवार निकाल कर देवकी को मारने के लिए आगे बढ़ा। तब वासुदेव जी ने कंस के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा कि तुम इसको मत मारो, मैं वादा करता हूं कि हमारी जो भी संतान होगी वह मैं तुम्हें सौंप दूंगा। इस पर कंस ने, वासुदेव और देवकी को बंदी बनाकर मथुरा में सात तालों के अंदर कारावास में डाल दिया। यह वही स्थान है जिसे वर्तमान में कृष्ण जन्मभूमि कहा जाता है। इसके आगे के हिस्से में मस्जिद बनी हुई है। जिस जगह मस्जिद बनी है वह कारागृह का रास्ता होता था जो सीधे यमुनाजी की ओर जाता है। कारागार पर चौबीस घंटे कठोर पहरा रहता था। इसमें सात दरवाजे लगे हुए थे। वासुदेव देवकी को खाना भी कारागार में ही दिया जाता था। एक एक कर देवकी ने सात संतानों को जन्म दिया। जैसे ही कंस को देवकी के संतान होने की सूचना मिलती, वह कारागार में आकर देवकी से उसकी नवजात संतान को छीन लेता और पत्थर पर पटक कर मार देता। देवकी और वासुदेव के लाख रोने और यह कहने पर कि यह संतान तो कन्या है तुम्हारा क्या बिगाड़ पाएगी, उसका मन नहीं पसीजता। इस प्रकार उसने देवकी की प्रथम सात कन्या संतानों को पत्थर पर पटक कर मार दिया। आठवीं संतान के रूप में देवकी ने श्रीकृष्ण को जन्म दिया। भादो के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि थी, अर्धरात्रि का प्रहर था। श्रीकृष्ण भगवान के जन्म लेते ही वासुदेव देवकी की हथकड़ियां खुल गई। कारावास के सातों ताले और दरवाजे खुल गए सभी सुरक्षा सैनिक गहरी नींद में सो गए। बिजली गरज रही थी, घनघोर बादल बरस रहे थे। कृष्ण जी को जन्म देने के बाद देवकी नींद में थी। वासुदेव जी ने एक टोकरी लेकर जिसमें कि उनका खाना आता था,इसमें कपड़े बिछाकर कृष्ण जी को लिटाया और टोकरी को सिर पर रखकर कारागार से निकल पड़े। कारागार से बिल्कुल सीधा रास्ता यमुना जी को जाता है। यमुना जी कारागार से लगभग दो कोस दूरी पर है। ज्यों ज्यों वासुदेव आगे बढ़ते जाते थे, बारिश और तेज होती जा रही थी। कमर तक पानी में चलकर वासुदेव यमुना जी पहुंच गए पर यह क्या यमुना जी अपने पूरे उफान पर थी। बारिश और तेज होने लगी यहां तक कि पानी वासुदेव जी के गले तक आ गया पर यमुनाजी थी कि थमने का नाम ही नहीं ले रही थी। तभी शेषनाग ने अपना फन फैलाकर भगवान कृष्ण के ऊपर छतरी बना दी। भगवान कृष्ण के पंजे टोकरी से थोड़ा बाहर निकले हुए थे। यमुना जी बढ़ते बढ़ते भगवान कृष्ण के पैरों अंगूठे को स्पर्श करने आई। भगवान कृष्ण के चरणों का स्पर्श कर यमुना जी धन्य हो गई और उन्होंने अपनी तीव्रता कम कर दी। वासुदेव यमुना जी पारकर गोकुल गांव पहुंच गए। गोकुल में नंदलाल के घर पहुंच कर उन्होंने उन्हें जगाया। रात्रि में वासुदेव को देखकर नंदलाल बड़े आश्चर्यचकित हुए। पहली बात वे कंस के कारागार में बंद थे, दूसरी भयंकर बरसात की रात। साथ में टोकरी में नवजात बच्चा। वासुदेव ने उन्हें सारी बात बताई और बच्चे को यशोदा जी को सौपने और पालने पोसने का आग्रह किया।उधर यशोदा जी ने उसी समय एक कन्या को जन्म दिया था और वह भी गहरी निद्रा में थी। नंदलाल कान्हा को लेकर यशोदा जी के पास गए और कृष्ण जी को यशोदा जी के पास धीरे से लिटा दिया। यशोदा जी की नवजात कन्या को लाकर वासुदेव को सौंप दिया। वासुदेव कन्या को टोकरी में रख जिस प्रकार आए थे उसी प्रकार वापस कारागृह पहुंच गए। सुबह होने को थी। वासुदेव जी के कारावास में पहुंचते ही सभी दरवाजे अपने आप बंद हो गए। ताले लग गए।वासुदेव देवकी के हथकड़ियां पड़ गई। सुरक्षा सैनिक नींद से जाग उठे और मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी करने लगे। नवजात कन्या रोने लगी। उसकी आवाज सुनते ही सन्तरी ने कंस को सूचना दी। कंस दल बल के साथ आया और कारागृह खुलवा कर देवकी से उस कन्या को छीन लिया। वासुदेव और देवकी ने रो-रो कर बहुत मिन्नतें की पर राक्षस कंस का कलेजा ना पिघला। कन्या को एक पैर से पकड़ा और उसे लेकर कारागृह के बाहर आया। पत्थर पर पटकने के लिए जिस पर कि वह अब तक सात कन्याओं को पटक कर मार चुका था। जैसे ही उसने हाथ उठाया कन्या उसके हाथ से छूटकर आसमान में चली गई, साथ ही भविष्यवाणी हुई अरे दुष्ट कंस तुझे मारने वाला बालक पैदा हो चुका है यह कन्या और कोई नहीं कृष्ण की माया थी। कन्या की भविष्यवाणी से कंस की नींद उड़ गई। उसने पूरे ब्रज में आस-पास के गांव में चुन-चुन कर नवजात पैदा हुए सभी बच्चों को मरवा दिया पर उसने कृष्ण जी को मारने के लिए जिस को भी भेजा, उन सभी के कृष्ण जी ने प्राण हर लिए। अंत में मात्र बारह वर्ष की आयु में कृष्ण जी ने मथुरा आकर कंस का संहार किया। अपने माता पिता वासुदेव और देवकी को कारागार से मुक्ति दिलाई और अपने नाना उग्रसेन को मथुरा का राज्य सौंप दिया।

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