जालना। मराठा आरक्षण के लिए आंदोलन कर रहे मनोज जरांगे पाटील ने 13 जून को अपनी भूख हड़ताल समाप्त कर दी। राज्य सरकार की अपील पर उन्होंने छठवें दिन अनिश्चितकालीन अनशन तोड़ दिया और मराठा आरक्षण लागू करने के लिए एक महीने का अल्टीमेटम दिया है। मनोज जरांगे ने महाराष्ट्र सरकार को 13 जुलाई तक का समय दिया है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें पूरी नहीं होती हैं, तो वे राजनीति में उतरेंगे और आगामी विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी प्रत्याशियों को हराने का प्रयास करेंगे। जरांगे ने स्पष्ट किया कि अगर सरकार एक महीने में आरक्षण को लेकर फैसला नहीं लेती है तो मराठा समाज कुछ नहीं सुनेगा।
सरकार को दी चेतावनी
मनोज जरांगे ने कहा हमने सरकार को पांच महीने का समय दिया था, जिसमें से दो महीने आचार संहिता में चले गए। वाशी में सरकार ने हमसे मराठा आरक्षण लागू करने का वादा किया था, लेकिन पांच महीने में सरकार ने कुछ नहीं किया। अगर सरकार एक महीने के अंदर हमारी मांगें पूरी नहीं करती है तो हम चुनाव लड़ेंगे। हम एक महीना देने को तैयार हैं, उसके बाद मराठा समाज कुछ नहीं सुनेगा।
मराठा आरक्षण की मांग
मनोज जरांगे महाराष्ट्र सरकार की मसौदा अधिसूचना के कार्यान्वयन की मांग कर रहे हैं, जो कुनबी को मराठा समुदाय के सदस्यों के “सेज सोयरे” (रक्त संबंधी) के रूप में मान्यता देती है। वे कुनबी समुदाय को मराठा के रूप में पहचान दिलाने के लिए एक कानून की भी मांग कर रहे हैं। कुनबी एक कृषि समूह है जो अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में आता है। जरांगे की मांग है कि सभी मराठों को कुनबी प्रमाण पत्र जारी किए जाएं, जिससे वे आरक्षण के दायरे में आ सकें। महाराष्ट्र विधानमंडल ने 20 फरवरी को एक-दिवसीय विशेष सत्र के दौरान सर्वसम्मति से एक अलग श्रेणी के तहत शिक्षा और सरकारी नौकरियों में मराठों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने वाला विधेयक पारित किया था। राज्यपाल रमेश बैस के हस्ताक्षर के बाद राज्य में मराठा आरक्षण 26 फरवरी से लागू हो गया।
पूर्व की आरक्षण प्रक्रिया
2018 में महाराष्ट्र सरकार ने सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए महाराष्ट्र राज्य आरक्षण अधिनियम लागू किया था, जिसमें मराठा समुदाय को शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण देने का प्रावधान था। बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसे मंजूरी दी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को असंवैधानिक करार दिया था। मनोज जरांगे के नेतृत्व में मराठा आंदोलन ने महाराष्ट्र सरकार को एक महीने का अंतिम अल्टीमेटम दिया है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार किस प्रकार से इस मुद्दे का समाधान करती है और मराठा समाज को संतुष्ट कर पाती है या नहीं।