मुंबई। महाराष्ट्र की सियासत में मराठा आरक्षण को लेकर काफी लंबे समय से मांग उठती रही है, लेकिन एक बार फिर यह मुद्दा गरमा गया है। मराठा आरक्षण की लड़ाई लड़ रहे मनोज जरांगे मराठों को कुनबी जाति का प्रमाण पत्र देकर ओबीसी कोटे से आरक्षण देने की मांग पर आमरण अनशन कर रहे हैं। ऐसे में शिंदे सरकार ने मराठा समुदाय को कुनबी जाति के तहत आरक्षण देने की वकालत कर रही है, जिसे लेकर ओबीसी समुदाय विरोध में उतर आया है। मराठों को ओबीसी कोटे से आरक्षण देने का विरोध कर रहे हैं। मराठों के आरक्षण को लेकर लेकर बीजेपी-शिंदे सरकार सियासी मझधार में फंस गई है। ऐसे में देखना है कि कैसे आरक्षण के मझधार से पार पाती है? मराठा आरक्षण के मुद्दे पर सोमवार देर शाम महाराष्ट्र में हुई सर्वदलीय बैठक में सहमति बन गई है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने आश्वासन दिया है कि अन्य समाज के आरक्षण में बिना छेड़छाड़ किए मराठा आरक्षण लागू किया जाएगा। सीएम एकनाथ शिंदे ने कहा कि मनोज पाटिल के भूख हड़ताल को ध्यान में रखते हुए हम उनसे विनती करते हैं कि वह अपना अनशन वापस लें। मनोज जरांगे पाटिल की सेहत की हमें चिंता है।
चुनाव से पहले आरक्षण का हल चाहती है शिंदे सरकार
महाराष्ट्र में चुनाव भी दस्तक देने को हैं और उससे पहले लोकसभा चुनाव भी है। ऐसे में मराठा आरक्षण को लेकर उठी मांग राज्य सरकार के लिए बड़ी चिंता का सबब बन गई है। मराठा आरक्षण को लेकर पिछले दो सप्ताह से आंदोलन चल रहा है और मराठाओं के लिए ओबीसी का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहे हैं। इनका कहना है कि सितंबर 1948 तक निजाम का शासन खत्म होने तक मराठाओं को कुनबी जाति में माना जाता था और ये ओबीसी वर्ग में आते थे। इसलिए अब फिर इन्हें कुनबी जाति का दर्जा दिया जाए और ओबीसी में शामिल किया जाए।
अनशन पर बैठे जरांगे सर्टिफिकेट पर अड़े
महाराष्ट्र में कुनबी जाति ओबीसी में आते हैं। कुनबी जाति के लोगों को सरकारी नौकरियों से लेकर शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण मिलता है। मराठवाड़ा क्षेत्र महाराष्ट्र का हिस्सा बनने से पहले तत्कालीन हैदराबाद रियासत में शामिल था। मराठा आरक्षण की मांग को लेकर अनशन पर बैठे मनोज जरांगे का कहना है कि जब तक मराठियों को कुनबी जाति का सर्टिफिकेट नहीं दिया जाता, तब तक भूख हड़ताल खत्म नहीं होगी। मराठा समुदाय के बढ़ते दबाव के चलते शिंदे-बीजेपी गठबंधन सरकार ने मराठा समुदाय को कुनबी जाति का प्रणाण पत्र जारी करने का एक आदेश जारी कर दिया, जिसके चलते अब ओबीसी समुदाय नाराज हो गए हैं, नागपुर में ओबीसी समाज भी मराठों को ओबीसी कोटे से आरक्षण देने के विरोध में उतर गए थे। इस आंदोलन में बीजेपी और कांग्रेस के ओबीसी नेता भी शामिल हुए। विरोध में बीजेपी के ओबीसी मोर्चा के नेता आशीष देशमुख और कांग्रेस के नेता तथा महाराष्ट्र विधानसभा में नेता विपक्ष विजय वडेट्टीवार भी शामिल हुए। देशमुख ने कहा कि मराठा आर्थिक रूप से पिछड़े नहीं हैं और उन्हें ओबीसी कोटे से आधा फीसदी भी आरक्षण नहीं मिलना चाहिए, वरना हमारे लिए आंदोलन के रास्ते खुले हैं।
कांग्रेस नेता वडेट्वीवार ने रख दी है बड़ी शर्त
कांग्रेस के ओबीसी नेता वडेट्टीवार ने कहा कि कांग्रेस मराठों को आरक्षण देने के खिलाफ नहीं है, लेकिन ओबीसी कोटे से मराठों को आरक्षण देने पर मेरा विरोध है. सरकार चाहे तो ईडब्ल्यूएस कोटे से मराठों को आरक्षण दे सकती है या फिर आरक्षण की लिमिट बढ़ा सकती है, लेकिन ओबीसी कोटे में शामिल न किया जाए।
महाराष्ट्र में मराठों की आबादी 28 से 33 फीसदी है। महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से 20 से 22 सीटें और विधानसभा की 288 सीटों में से 80 से 85 सीटों पर मराठा वोट निर्णायक माना जाता है। साल 1960 में महाराष्ट्र के गठन के बाद से अब तक यानी साल 2023 तक 20 में से 12 मुख्यमंत्री मराठा समुदाय से ही रहे हैं। राज्य के वर्तमान मंत्री मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी मराठा ही हैं। वहीं, ओबीसी समुदाय भी बड़ी संख्या में है, जो किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं।