
मुंबई। सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों की विशेष अदालत ने 494 करोड़ रुपये के शिवाजीराव भोसले सहकारी बैंक घोटाले में पूर्व राकांपा एमएलसी अनिल भोसले की जमानत याचिका खारिज कर दी है। भोसले पर आरोप है कि उन्होंने बैंक के अध्यक्ष के रूप में अपने पद का दुरुपयोग किया और कई फर्जी ऋण स्वीकृत किए, जिससे बैंक को भारी नुकसान हुआ। भोसले ने अपनी जमानत याचिका में तर्क दिया कि वे मार्च 2021 से बिना सुनवाई के जेल में हैं और मामला केवल सिविल प्रकृति का है, जो कि वसूली से संबंधित है। भोसले ने कहा कि उनके द्वारा स्वीकृत ऋणों की वसूली की जा रही है, और 400 करोड़ रुपये से अधिक के वसूली प्रमाणपत्र भी जारी किए जा चुके हैं, जिससे मनी लॉन्ड्रिंग का कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने इस जमानत याचिका का कड़ा विरोध किया। ईडी के अनुसार, भोसले ने बैंक में “पूरी तरह से अधिकार” का इस्तेमाल करते हुए गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) को मानकीकृत करने की एक सुनियोजित साजिश रची और चेक डिस्काउंटिंग सुविधा को ऋण के रूप में दर्शाया। ईडी का आरोप है कि भोसले और अन्य आरोपियों ने निजी लाभ के लिए धोखाधड़ी वाले ऋण स्वीकृत किए, जिनमें से कुल 432 एनपीए खाते थे, जिन पर 392 करोड़ रुपये का बकाया था। अदालत ने जमानत खारिज करते हुए कहा कि भोसले इस वित्तीय घोटाले के “मुख्य सूत्रधार” हैं। अदालत ने इस घोटाले को “पूर्व नियोजित और सुनियोजित” बताते हुए कहा कि जमानत पर रिहा होने की स्थिति में भोसले पैसे का पुनः उपयोग कर सकते हैं, जिससे मामले की जांच और कठिन हो जाएगी। अदालत ने भोसले की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि इस बड़े और गंभीर घोटाले में आम जनता का हित भी शामिल है, इसलिए उन्हें हिरासत में रखना आवश्यक है।