
पिछले पांच विधानसभाओं के चुनाव में ईवीएम से धांधली की बात सामने आ रही है। मध्यप्रदेश के एक बूथ पर मॉक पोल के समय दूसरे दल को वोट किया गया लेकिन बी वी पेट में बीजेपी को वोट जाता देखा गया। दूसरी बात कि पोस्टल बैलेट पेपर में हेराफेरी के बावजूद कांग्रेस को 90 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि चुनाव बीजेपी जीत गई। बैलेट पेपर के वोट चुनाव परिणाम के संकेतक होते हैं। जब बैलेट पेपर के वोटों की गणना में कांग्रेस को 90 प्रतिशत मत पड़े तो ऐसा कैसे संभव है कि वे चुनाव परिणाम का संकेत नहीं बनें? इस हिसाब से मध्यप्रदेश में कम से कम दो तिहाई सीटें कांग्रेस की झोली में आने चाहिए थे लेकिन बीजेपी बहुमत से जीती। ऐसा कैसे संभव है कि प्रत्याशी को अपने द्वारा दिया गया वोट ही उसको नहीं मिले? गांव के पंच के चुनाव में अदना आदमी भी सौ वोट पाता है फिर कैसे संभव है कि उसके ही बूथ पर प्रत्याशी को पचास वोट भी नहीं एन मिले? सारी विपक्षी पार्टियां जिसमे बीएसपी की मुखिया मायावती ने भी ईवीएम पर सवाल बड़ी मुखरता से उठाए। बीजेपी छोड़कर देश की सभी विपक्षी पार्टियां ईवीएम बैन कर पेपर बैलेट से चुनाव चाहती हैं। जिनके देश में साठ से अधिक प्रतिशत वोटर हैं।जब बहुमत ईवीएम बैन की बात करता हो जिसे साठ प्रतिशत जनता चुनी हो तो फिर बीजेपी क्यों बैलेट पेपर से चुनाव कराना नहीं चाहती? सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर पचास ईवीएम की मांग की थी ताकि देश भर में टेंपरिंग दिखा सकें। वे चुनाव आयुक्त से मिलने जा रहे थे लेकिन अमित शाह के आदेश से पुलिस फोर्स ने उन्हें रोक कर आगे जाने नहीं दिया। उन्हें जबरन भर कर बस में दूर लेजाकर छोड़ दिया गया।उसके बाद जंतर मंतर पर सार्वजनिक रूप से एक इंजिनियर ने डेमो कर हैक कर बताया कि ऐसे होती है वोटों की हेराफेरी। जिसे चुनाव आयोग ने अस्वीकार कर दिया कि हमारी ईवीएम हैक नहीं की जा सकती। अब चुनाव आयोग जो भी कर रहा है गुलामी जैसा लगता है जिसे ऑर्डर कहीं और से मिल रहा है। अगर चुनाव आयोग निष्पक्ष है। पारदर्शी चुनाव कराना चाहता है तो उसे चुनाव लड़कर सरकार नहीं बनानी है तो वह सच स्वीकार क्यों नहीं कर रहा? इसका अर्थ है उसका रिमोट कहीं और है। इसलिए वह सच्चाई स्वीकार करने से भाग रहा है। ईवीएम की खोज करने वाले बड़े राष्ट्र ईवीएम टेंपर से परेशान होकर बैलेट पेपर से चुनाव कराते हैं।यहां तक कि ईवीएम में लगने वाली नैनो चिप बनाने वाला देश जापान भी बैलेट पेपर से चुनाव कराता है।चिप किसी भी इलेक्ट्रॉनिक्स में लगा हो उसे टेंपर किया जाता है। वैसे भी दूसरे देशों में चुनाव में गड़बड़ी करने वाली इजरायल कंपनी पेंगासस बदनाम है जिसे खुद बीजेपी सरकार ने हायर किया हुआ है। चुनाव आयोग भी ईवीएम और वी वी पेट में पड़े वोटों की संख्या में फर्क स्वीकार कर चुका है। जब टेंपर नहीं किया जाता तो दोनों के वोटों में फर्क कैसे आएगा? इस बात का जवाब चुनाव आयोग के पास नहीं है लेकिन मानवीय भूल कहकर गड़बड़ी की ओर इशारा जरूर करता है।
कल भी सुप्रीम कोर्ट के तमाम एडवोकेट, दूसरे प्रांतों से आए वकील और तमाम जनता जंतर मंतर पर एकत्र हुए। वे सुप्रीम कोर्ट के सामने ई वी एम टेंपर कर न्याय की उम्मीद लिए आए थे लेकिन डरी हुई केंद्र सरकार के गृहमंत्री के आदेश पर भारी फोर्स ने उन्हें घेर लिया जैसे आतंकी हों और एनकाउंटर करने का इरादा है। जान हथेली पर लिए तमाम लोग सुप्रीम कोर्ट जाना चाहते थे। तब दिल्ली पुलिस ने कहा,आप चार पांच लोग आइए। हम ले चलते हैं। पुलिस ने झूठ बोला। उन्हें लेकर वे तिलक थाना चले गए जिसकी सूचना उन्होंने फोन पर अपने साथियों को दी। यानी अमित शाह के आदेश पर एडवोकेट्स से झूठ बोली पुलिस।
बीजेपी और मोदी कहते हैं। जनता उनके साथ है। उसका विकास देखकर जनता चुनती है उसे। यहां सवाल उठता है कि अगर जनता बीजेपी के साथ है तो फिर बैलेट पेपर से चुनाव भाजपा क्यों नहीं चाहती? जनता की मर्जी वोट किसे चाहे उसे दे। कोई जीते कोई हारे। अगर जनता बीजेपी को चाहती है तो बैलेट पेपर से चुनाव कराने को राजी क्यों नहीं होती बीजेपी सरकार? क्यों उसी ईवीएम से चुनाव चाहती है जिसका खुद मोदी विरोध करते रहे हैं अपने भाषणों में? सच तो यह है भाजपा के पास जनता से वोट मांगने के लिए कोई कार्य ही नहीं है। बीजेपी जानती है अगर बैलेट पेपर से चुनाव होगे तो उसकी करारी हार होगी। इसीलिए हठ किए बैठी है। अगर जीत की आशा और विश्वास है तो बैलेट पेपर से क्यों नहीं कराना चाहती चुनाव? बांग्लादेश ने ईवीएम छोड़कर बैलेट पेपर से चुनाव कराए। हिंसा आगजनी और विपक्ष द्वारा चुनाव का वहिष्कार करने के बावजूद सत्तर आजाद प्रत्याशियों की जीत बताती है कि मतदान में बेईमानी हुई है जिसका संज्ञान अमेरिका और यूएनओ ने भी लिया है। बीजेपी सरकार की ई वी एम की धांधली को विश्व परख रहा है। ताज्जुब नहीं जब अमेरिका बीजेपी सरकार पर फेयर निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए बैलेट पेपर से चुनाव कराने के लिए दबाव बनाए।