
पश्चिमी देशों खासकर अमेरिका में जब भी भारतीयों पर नश्लीय हमले होते हैं हम क्षणिक विरोध कर चुप हो जाते हैं। कुछ लोग वहां की सरकार को लानत मलामत भेजने लगते हैं। कारण पर देश विचार नहीं करता। अब अमेरिका के सिएटल प्रांत में नस्लीय भेदभाव के विरुद्ध कठोर कानून बना तो यहां भी चर्चा होने लगी है। यह चर्चा पानी में उठ रहे बुलबुले से ज्यादा कुछ भी नहीं है। दो दिनों बाद कोई चर्चा नहीं होगी। हम भारतीय कुछ पल के लिए उबल ज़रूर जाते हैं फिर उस बात से मुंह फिरा लेते हैं। पश्चिमी देशों में भारतीय जातिवाद को लेकर एक अलग दृष्टिकोण बन चुका है। देश में जातिवाद का निहित स्वार्थ में नेताओं द्वारा जहर घोलने का दुष्प्रभाव पश्चिमी देशों पर पड़ता है क्योंकि ग्लोबलाइजेशन के कारण सारी दुनिया सिमटकर मुट्ठी में आ गई है। भारतीय जातिवाद ब्रिटिश गुलामी, अक्रमणकारी बर्बर क्रूर विदेशी शासकों और बामपंथियों ने बहुत तेजी से फैलाकर स्वहित साधे। पश्चिम को भारत की जातिवादिता अखरती है। भेदभाव छुआछूत नफरत विदेशियों को हमारे प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त है। हालांकि पश्चिम को मुस्लिम आतंकवाद नारियों पर जुल्म, कत्लेआम, नफरत के भाव , काफिरों के ऊपर कातिलाना हमले नहीं दिखते। भारत में जातिवाद, भेदभाव को पश्चिम गुलामी मानता है। उन्हें जातिवाद रंगभेद से भी अधिक क्रूर लगता है। अमानवीय लगता है। भारत में जातिवाद, जातीय आधार पर आरक्षण जैसे विषयों पर उनके द्वारा उठाए प्रश्नों का हमारे पास कोई जवाब ही नहीं होता। बामपंथियो और देश के अपात्र नेताओं के उच्च जाति के प्रति अपने वक्तव्यों में उच्च जातियों द्वारा कथित शोषण, दमन की काल्पनिक विचारों के कारण पश्चिम में हमारी छवि को नुकसान पहुंचा है। नेताओं द्वारा नीची जातियों पर किए गए कथित क्रूरता, दमन, शोषण के खिलाफ उच्च जातियों को अपराधी बताने और प्रतिकार करने के लिए उच्च जातियों पर हमले करने के लिए उकसाने की बातें पश्चिम की नजरों में कुंठा निर्माण करते हैं।कथित संत मदर टेरेसा के द्वारा कथित रूप से हजारों अनाथ, अभागे,उपेक्षित भारतीय बच्चों के कथित व्यवहार को बढ़ा चढ़ा कर बताने से भी समस्या खड़ी हुई है। जबकि सच्चाई यह है कि हिंदुओं को ईसाई मिशनरीज द्वारा हिंदुओं को ईसाई बनाने के षडयंत्र की कभी चर्चा नहीं होती। टेरेसा को संत बताने के कारण विदेश में यह संदेश गया कि भारत में उच्च जाति वालों ने कभी वंचित बच्चों के उद्धार हेतु कोई कार्य ही नहीं किया गया। इन सभी बातों से पश्चिम के लोगों में भारतीयों के प्रति नफरत घोला गया जिसका दुष्परिणाम हुआ जो पश्चिमी देशों में नस्लीय हमले होते हैं। भारत के प्रति ऐसी घड़ी गई छवि का प्रतिकार केवल आरोप लगाने से नहीं होता। हमें यह समझना होगा कि दलीय राजनीतिक वर्चस्व से बौद्धिक प्रभुत्त्व नहीं बनता। क्षेत्र नेताओं की निहित स्वार्थनीति में उच्च जातियों के प्रति अशालीन शब्दों का प्रयोग, जात आधारित जनगणना आदि उसी की देन है। जातिवाद पर आगे बढ़ने के पूर्व देश के कुछ बड़े नेताओं के विचार जानते हैं। महात्मा गांधी छुआछूत को पाप समझते थे। बाबा साहेब आंबेडकर ने स्वप्न देखा था भारत जातिमुक्त बने। औद्योगिक राष्ट्र बने, दलित नौकरियां मांगने वाले नहीं देने वाले बनें। इसीलिए आरक्षण केवल दस वर्ष देकर उभड़ने का अवसर देना चाहते थे। यह भी कहा था कि आरक्षण दस वर्ष से आगे नहीं बढ़ाया जाए वरना राजनीतिक हथियार बन जाएगा और हमारे कर्णधारों ने हथियार बना दिया और आरक्षण को बपौती समझने लगे हैं।आंबेडकर वर्ग हीन समाज निर्माण के लिए जाती व्यवस्था खत्म करने की वकालत करते रहे। जवाहरलाल नेहरू के अनुसार जातियां धीरे धीरे खत्म होती जाएंगी और एक सर्वहारा समाज का निर्माण होगा। डॉक्टर राम मनोहर लोहिया के विचारों में जाति व्यवस्था राष्ट्रीय एकता, अखंडता और समता मूलक समाज निर्माण में बड़ी बाधा है। अब सवाल यह है कि जातिवादी व्यवस्था कैसे खत्म होगी? जबकि जाति आधारित क्षुद्र राजनीति करने वाले जाति आधारित जनगणना करा रहे ताकि उनके वोट बैंक मजबूत हों जो उन्हें सत्तासुख दिला दें। जातिगत आरक्षण के चलते जाति व्यवस्था कैसे खत्म हो सकती है? सभी राजनीतिक दल क्षेत्र में किसी जाति की संख्या बहुल होने पर उसी जाति को चुनाव में टिकट देते हैं। दलित में अति दलित और पिछड़े में अति पिछड़े ढूंढकर आरक्षण जातियों में शामिल करने से जातिवाद कैसे खत्म होगा? जनता में अपनी ही जाति के प्रत्याशी को वोट देने की भावना के चलते जाति बाद कैसे खत्म होगा? कुछ लोग कहते है कि नीची जाति वालों को सीधे ब्राह्मण क्यों नहीं बना दिया जाता? ऐसे अज्ञानियोंं अल्पज्ञानियों को ज्ञात ही नहीं कि ब्राह्मण कोई जाति नहीं है। जिस प्रकार अन्य जाति के लोग कुल में जन्म लेने को जाती से जोड़ दिए हैं वैसे ही ब्राह्मण कुल में जन्म को ब्राह्मण मान लिया गया लेकिन भूल जाते हैं कि पांडेय, दुबे, तिवारी, चौबे, पाठक उपाध्याय आदि सरनेम क्यों लगे? ब्राह्मण सरनेम ही क्यों नहीं हुआ? उनके ज्ञान के लिए बताना ज़रूरी है कि ब्राह्मण वर्ण है, जिनमे चेतनात्मक क्षमता हो वी ही ब्राह्मण हैं। जिसका गुण है अपरिग्रह, सत्यनिष्ठा, सत्यानिशासित होकर सृष्टि के उद्धार की सोचना और करना। यश ब्राह्मण का गुण है क्षत्रिय वाह है जो किसी दुखियारे को रोता देखकर खुद रो दे और उसकी सहायता को दौड़ पड़े। क्षत्रिय का गुण है श्रेय पाने की इच्छा, सत्यनिष्ठा, सत्यानुशासि रहना। प्राण जाहि बरु वचन न जाहि।। का दृढ़ निश्चय होना। वणिक वर्ण उसका होगा जो धन का लोभी, परिवारवादी होगा। शुद्र बालावान बुद्धि विवेक हीन और श्रमवाण होना। जो बोर्ड लगाते हैं गर्व से कहो हम शूद्र हैं और जो ब्राह्मण बनाने की बात करते हैं, वे इतनी जानकारी जरूर रखें कि किसी को ब्राह्मण बनाया नहीं जा सकता। ब्राह्मण बनने के लिए उद्योग करने होते हैं। शारीरिक क्षमता वान लोग पहले बौद्धिक क्षमता, फिर भावनात्मक क्षमता का पूर्ण विकास कर लें। तब ब्रह्मणत्व प्राप्ति का मार्ग खुल जाएगा और चेतामात्मक क्षमता में वृद्धि कर ब्राह्मण बना जा सकता है। एक बार ब्रह्मणत्त्व आए गया तो अपने चेतानात्मक्क क्षमता को अधिक विकसित करने पर देवत्त प्राप्त कर सकते हैं। आरक्षण को बपौती समझने वाले कभी व्यक्तित्व विकास करना ही नहीं चाहेंगे क्यों कि मुफ्त खोरी है उनमें। बिना आरक्षण छोड़े और व्यक्तित्व विकास किए ब्राह्मण होना असंभव है। ऐसे में जब कुनेता सत्तासुख पाने के लिए जातीय किराजनीति करते रहेंगे। दलितों में जो नेता अति दलित ढूंढते रहेंगे ताकि वोट बैंक बढ़े और सत्ता मिले की उम्मीद छोड़ दें तो तमाम समस्याओं को जन्म देते रहेंगे। जातिवादी व्यवस्था समाप्त करने के लिए पात्रता नुसर पद नियोजन व्यवस्था लागू हो ताकि अपराधी सत्तालोभी नेताओं की छुट्टी हो सके।