इजरायल ने पहले जर्मनी से भागकर दुनिया के तमाम देशों से शरण देने की गुहार की लेकिन किसी देश ने मानवीय आधार पर शरण नहीं दिया। तब फिलिस्तीन ही था जिसने यहूदियों को दर ब दर होने से बचाने के लिए अपनी भूमि में शरण दिया लेकिन इजरायल के यहूदियों की मंशा तब सामने आई जब उसने फिलिस्तीनियों को दंड देकर तीन चौथाई भाग पर बलात कब्जा कर लिया। अब चालीस वर्ग किलोमीटर पट्टी में ही फिलिस्तीन की चालीस लाख जनता सिमट कर रह गई। इजरायल से अपनी भूमि छुड़ाने के लिए हमास ने आतंकवाद का रास्ता अपनाया।तमाम खाड़ी देशों ने हमास की सहायता की और हमास बहुत अधिक शक्तिशाली बनकर इजरायल पर हमला कर यहूदियों का कत्लेआम के साथ सैकड़ों यहूदियों सहित विदेशियों को बंधक बना लिया। इजरायल ने फिलिस्तीन के उत्तरी भाग के निवासियों को बहत्तर घंटों में गाजा की उत्तरी पट्टी खाली करने का हुक्म दिया। इतने कम समय में जाएं तो जाएं कहां? मिश्र की सीमा पर इजरायली हमले हो रहे। बम गिराए जा रहे। मिश्र ने भी फिलिस्तीनियों को अपने यहां आने से मना कर दिया जैसे रोहिंज्ञाओं को मुस्लिम देशों ने अपने यहां आने से मना कर दिया।भागकर भारत में राजनीतिक कारणों से आकर बसाना सरल हो गया। सराय बन चुका है भारत। मुस्लिम राष्ट्रों की विशेषता है कि वे अपने देश में विस्थापित मुसलमानों को बसाना नहीं चाहते। अब जब इजरायल ने फिलिस्तीन के उत्तरी क्षेत्र पर जमीनी हमले तेज कर दिए। उसकी सहायता के लिए बॉम्बर बम गिरा रहे। आबादी पर बम गिराना युद्ध अपराध है लेकिन साम्राज्यवादी पश्चिम का समर्थन मिलने से उच्छृंखल इजरायल हमास के बहाने फिलिस्तीन जनता का नरसंहार कर रहा है जो घोरतम अन्याय ही नहीं अपराध भी है परंतु साम्राज्यवादी तानाशाह इजरायल को चिंता नहीं है। वह जानता है कि खाड़ी देश उस पर हमला करने की हिमाकत नहीं कर सकते भले ही संख्या में ज्यादे हों। इजरायल की आक्रामक नीति से सभी डरते हैं। सच कहा जाय तो हमास और इजरायल दोनो ही आतंकी संगठन हैं। किसी एक को दोषी ठहराना उचित नहीं होगा।
यद्यपि यह भी सच है कि इजरायल ने उस केंद्रीय नगर पर कब्जा कर रखा है जिसका नाम है येरूसलम। बेशक येरूसलम से ही यहूदी, ईसाई और इस्लाम की उत्पत्ति हुई है। येरूसलम पर इजरायल का कब्जा होने से कोई और उस पर अपना दावा नहीं कर सकता। यदि कोई दावा करता है,जैसा फिलिस्तीनी आतंकी संगठन हमास कर रहा तो उसका इजरायल की सेना के साथ युद्ध होना तय है और यही हो भी रहा है। भारत की नीति आतंकवादी साम्राज्यवादी दोनों से दूरी बनाए रखने की है लेकिन पीएम मोदी ने जल्दबाजी में हमास को अकेले आतंकी बताकर इजरायल का हमदर्द बनना चाहा जिसका दुष्परिणाम खाड़ी देशों से शत्रुता मोल लेने जैसा है। भारत हमेशा से ही साम्राज्यवाद विरोधी रहा है इसीलिए वह चीन और पाकिस्तान को साम्राज्यवादी कहता रहा है। मोदी द्वारा इजरायल के समर्थन में जल्दीबाजी का परिणाम होगा, खाड़ी देशों की जेलों में बंद विचाराधीन और मौत की सजा पाए पूर्व नौसेना अधिकारियों की सकुशल रिहाई पर।उन हजारों लोगों का भविष्य अंधकारमय हो गया है जिनको छूटने की आशा क्षीण हो गई होगी। यदि पहले जैसे सामान्य संबंध खाड़ी देशों से होते तो राजनयिक और कूटनीतिक स्तर से उन्हें छुड़ाना और स्वदेश लाना आसान होना संभव था लेकिन अब ज़िद की बात होगी।फिर भी हम आशा ही करेंगे कि खाड़ी देशों में बंद भारतीयों की सकुशल वापसी हो