लेखक- जितेंद्र पाण्डेय
बीजेपी खुद को ईमानदार होने का ढोल पिटती रही है। विपक्षी नेताओं को डराने धमकाने के लिए बीजेपी सरकार आईटी, सीबीआई और ईडी को छोड़ दिया करती है। विरोधियों पर भ्रष्टाचार के आरोप पीएम मोदी, गृहमंत्री शाह और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा लगाते रहते हैं। मोदी खुद भोपाल में महाराष्ट्र राकंपा को 76000 करोड़ का भ्रष्टाचार करने के आरोप लगाए थे। हुआ क्या? अजीत पवार, छगन भुजबल सहित तमाम भ्रष्ट नेता बीजेपी के साथ सरकार में डिप्टी सीएम और मंत्री बन गए। इसके पूर्व शिवसेना तोड़ने, शिंदे एंड कंपनी को गुजरात, असम और फिर महाराष्ट्र लाने, जिसपर बीजेपी पर करोड़ों रुपए देकर विधायकों को खरीदने का मामला उछला था। शिंदे को मुख्यमंत्री बना दिया गया। उसके पूर्व असम में खेल चला, कर्नाटक के बाद मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार तोड़कर करोड़ों रुपए देकर भाजपा की शिवराज चौहान की सरकार बनाने में भी कई कई सौ करोड़ देकर विधायकों के खरीदने का मामला उछला था।
मोदी कहते हैं, यह मोदी का वादा है। कोई भी भ्रष्टाचारी बख्शा नहीं जाएगा। बेशक होना यही चाहिए था। मोदी को सिर्फ विपक्षी ही भ्रष्ट दिखता है। विपक्ष का भ्रष्ट नेता यदि बीजेपी में शामिल हो जाता है या फिर बीजेपी के साथ जुड़कर प्रदेश में सरकार बनाता है तो बीजेपी की वाशिंग मधिन में धुलकर ईमान होने का सैटिफिकेट पा जाता है। ईडी ने विपक्ष के जितने भ्रष्ट नेताओं को जेल नहीं भेजती उसका कई गुना बीजेपी में शामिल करा देती है। एक खास बात कि बीजेपी के शीर्ष नेताओं को कभी अपनी पार्टी के भ्रष्ट नेता नहीं दिखते। चाहे केंद्र में हों या फिर राज्यसरकार में। सभी वाशिंग मशीन में धुलकर ईमानदार होने का सर्टिफिकेट होल्ड करने लगते हैं। नोट बंदी के समय किसी विधायक सांसद मंत्री और व्यापारी को किसी ने बैंक की लाइन में खड़े देखा नहीं होगा लेकिन सरकार की नजर में चोर और भ्रष्ट सिर्फ मासूम जनता है जो बैंकों की लाइन में महीनों खड़ी रही भूखी प्यासी और प्राण गंवाती रही। नेताओं और व्यापारियों के घर खुद बैंक पहुंचता रहा। नोट गिनकर बैंक लाता रहा और नई करेंसी उनके घर पहुंचाता रहा। मोदी का दावा था कि देश के भीतर छुपा कालाधन बाहर आएगा लेकिन आरबीआई की रिपोर्ट ने मोदी के दावे को झूठा दिखा दिया। जितनी नोट 1000 और 500 की पुरानी नोट आरबीआई ने छापा था, लगभग सारी करेंसी बैंक में वापस आ गई। मोदी सरकार की तीन उपलब्धियां जरूर गिनाई जा सकती हैं। पहला स्विस बैंकों में 2014 के पूर्व 65 वर्षों में जितना काला धन जमा था उसका तीन सौ गुना मोदी राज में 2016 से लेकर 2018 तक जमा हो गया। मोदी सरकार की दूसरी उपलब्धि यही रही कि बैंकों से हजारों करोड़ कर्ज लेकर ललित मोदी नीरव मोदी जैसे लोग कमीशन लेकर विदेश भगा दिए गए। इतना ही नहीं बीजेपी ने भगोड़े चोर कर्जदार के खिलाफ जारी रेड कॉर्नर नोटिस तक वापस ले लिया। स्विस बैंकों में जमा कालेधन को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन बीजेपी की मंशा और कमीशन लेने के कारण, घोषणा करती हैं कि विदेशी बैंकों में जमा धन काला नहीं है। बेशक बीजेपी सरकार को हजारों करोड़ चंदा देने वाले भ्रष्ट कैसे हो सकते हैं। मोदी सरकार का चरित्र यही है। आरबीआई के अनुसार किसानों मजदूरों के कर्ज माफी नहीं करने वाली मोदी सरकार ने धनी लोगों के 11 लाख करोड़ माफ कर दिए। बेशक उसमें भी बीजेपी सरकार ने भारी चंदा लिया है। बीजेपी के पास चोरों भ्रष्टों से इतना अधिक काला धन आ गया कि देश के हर जिले में बीजेपी ने बीजेपी कार्यालय बनवा लिए। दिल्ली का बीजेपी मुख्यालय तो सेवन स्टार होटल को भी मात देने वाली बहुमंजिली भव्य इमारत बन गई। मोदी को न तो अपनी पार्टी के भ्रष्ट नेताओं का भ्रष्टाचार दिखता है न मंत्रियों मुख्यमंत्रियों का। शेयर बाजार में हेराफेरी करने सेल कंपनिया बनाकर अपने ही शेयर खरीदकर जनता को भी चुना लगाने वाले अडानी का भ्रष्टाचार नहीं दिखता। यदि मोदी सरकार इतना अधिक ईमानदार होने की ढोलक पीटती है वस्तुतः उतनी ईमानदार नहीं है।बेहद भ्रष्ट पार्टी बन चुकी है अन्यथा स्विस बैंकों द्वारा भ्रष्ट उन लोगों की चार सूची बीजेपी सरकार को भेजने के बावजूद सार्वजनिक नहीं करती क्यों? क्यों का एक ही उत्तर है बीजेपी सरकार ने उनसे सौदा किया है। कर्नाटक की बीजेपी सरकार चालीस प्रतिशत कमीशन लेने के लिए कुख्यात थी। राज्य के ठेकेदारों ने पीएम मोदी को कमीशन के बदले टेंडर देने के आरोप वाली चिट्ठियां लिखीं थी। जिन्हे मोदी ने नजरंदाज कर दिया। कर्नाटक चुनाव में बीजेपी की भ्रष्ट सरकार और पार्टी बुरी तरह हार गई। मोदी को भले ही अपनी पार्टी का भ्रष्टाचार नहीं दिखता हो परंतु जनता को जरूर दिखा इसीलिए मोदी शाह के तीन महीने कर्नाटक में जमे रहने,सत्ता की मशीनरी का दुरुपयोग करने यहां तक की धार्मिक भावना भड़काते हुए कहने कि बजरंग बली का नाम लेकर बीजेपी को वोट देना जैसी अपील बेमानी हो गई। कर्नाटक में बीजेपी की भ्रष्ट सरकार की नहीं मोदी शाह और नड्डा के साथ ही बीजेपी की करारी हार हुई। अब पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव होने हैं। जिसमें मध्यप्रदेश भी है। जहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सरकार पर 50 प्रतिशत कमीशन लेकर काम करने का संगीन आरोप है।चुनाव प्रचार में शिवराज चौहान को दूल्हा नहीं बनाया गया बल्कि खुद शाह के हाथों में चुनाव प्रचार की बागडोर दे दी गई है।बीजेपी जान चुकी है कि वह मध्यप्रदेश में बुरी तरह हार रही है। इसीलिए तीन केंद्रीय मंत्रियों और सात सांसदों को मैदान में उतार रही है जिनपर बिना जांच किए भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे हैं। शिवराज सिंह का पत्ता साफ हो चुका है। उसी तरह कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया जो अपने मित्र कांग्रेसी नेता राहुल गांधी की खूब आलोचना कर चुके हैं जिनकी कांग्रेस में वापसी होनी असंभव लगती है। बड़बोले पन की सजा के रूप में उनके समर्थकों को दो सूचियों में जगह नहीं मिलने से हताश और निराश हो चुके हैं। जिस सम्मान को पाने के लिए वे कांग्रेस छोड़कर , राहुल गांधी का भरोसा तोड़कर वे बीजेपी में शामिल हुए थे वही बीजेपी उनका हर तरह से अपमान कर रही है। अब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री सहित कुल पांच मंत्रियों के भ्रष्टाचार का नमूना देखिए। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पास सन 2008 में कुल संपत्ति मात्र 58 लाख 14 हजार हुआ करती थी। सन 2018 में बढ़कर 7 करोड़ 16 लाख के ऊपर हो गई थी। कुंवर विजय सिंह की संपत्ति 2018 के पहले मात्र 6 करोड़ 43 लाख हुआ करती थी। 2018 में बढ़कर 8.5 करोड़ यानी दो करोड़ से अधिक मात्र पांच वर्षों में बढ़ गई। नरोत्तम मिश्रा की संपत्ति सिर्फ 72 लाख 78 हजार से बढ़कर 2018 में 8.5 करोड़ हो गई। यानी पांच वर्षों में दस गुना बढ़ गई। तीसरे मंत्री दिनेश राय मुनमुन की संपत्ति 1 करोड़ 10 लाख से बढ़कर 13.89 करोड़ हो है पांच साल में। अगले मंत्री तुलसी सिंह की संपत्ति 1.64 करोड़ से बढ़कर पांच वर्षों में 9.55 करोड़ हो गई है। उपर्युक्त सूचना चुनाव आयोग से आरटीआई के तहत मिली है। अब 2018 के बाद अपने अंतिम कालावधि के पांच वर्षों में जनता के हित में बनाई और लागू हुई योजनाओं में दोनों हाथों लूटने के बाद कितनी गुना संपत्ति बढ़ी होगी इसकी कल्पना भी अकल्पनीय होगी। ये तो महज पांच मंत्रियों के भ्रष्टाचार की बानगी है।बाकी मंत्रियों का हाल इसी तरह हो तो कहा नहीं जा सकता।
मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री ही नहीं विकास राशि के व्यय में भी लूट का नमूना प्राप्त हुआ है। एक ही जिले में यात्री प्रतीक्षालय हजारों की संख्या में तीन विधायकों द्वारा समान आकार और क्वालिटी के बनवाए गए। उनके खर्च देखकर माथा पीट लेंगे पाठक गण। एक विधायक ने यात्री प्रतीक्षालय बनवाने में साढ़े चार लाख से लेकर 4.89 लाख व्यय किए गए। दूसरे विधायक ने दो लाख पैसठ हजार रुपए से लेकर 3 लाख 63 हजार रुपए प्रति यात्री प्रतीक्षालय बनवाने में खर्च किए। तीसरे विधायक ने प्रति यात्री प्रतीक्षालय पर 2.65 लाख ही व्यय किए। क्या इन तीनों विधायकों द्वारा प्रतीक्षालय बनवाने में खर्च की राशि में इतना अंतर से क्या समझ रहे होंगे आप? जब चालीस प्रतिशत कमीशन लेकर काम करने वाली बीजेपी की कर्नाटक सरकार बुरी तरह से हार चुकी है तो पचास प्रतिशत कमीशन वाली भाजपा की सरकार मध्यप्रदेश में नहीं हारेगी कौन गारंटी लेगा? इतना निश्चित है कि नेता चाहे जो भी कहें। दूसरे को चोर भ्रष्ट बताएं और खुद का भ्रष्टाचार छुपाएं जनता अपनी आंख कान खुली रखने लगी है।वह चुनाव के समय वोट देकर अपना उचित निर्णय ज़रूर सुनाएगी। चेहरा बदलकर जनता को धोखा नहीं दिया जा सकता।