मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने चेंबूर में स्थित सरकारी महिला आश्रय गृह में रह रही महिला को 9 दिसंबर को अदालत में पेश करने का निर्देश दिया है। यह आदेश उस समय जारी किया गया जब एक अंतरधार्मिक साथी ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने अपनी हिंदू साथी की अवैध हिरासत को चुनौती दी थी। मुस्लिम व्यक्ति ने अदालत में याचिका दायर कर कहा था कि उसकी साथी को आश्रय गृह से तुरंत रिहा किया जाए, क्योंकि उसे अवैध रूप से हिरासत में रखा गया है। याचिका में यह भी आरोप लगाया गया कि महिला के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है और उसे हिरासत में रखकर उसके जीवन को खतरे में डाला गया है। व्यक्ति ने अपनी और अपनी साथी की सुरक्षा के लिए “पर्याप्त पुलिस सुरक्षा” की भी मांग की है। बॉम्बे हाई कोर्ट की न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की पीठ ने महिला के माता-पिता द्वारा दर्ज किए गए जबरन वसूली मामले में पुलिस को महिला की गिरफ्तारी से रोकने का आदेश दिया। याचिकाकर्ता ने अदालत में यह दावा किया कि महिला ने अपनी मर्जी से अपने माता-पिता का घर छोड़ा था और वह कई महीनों से याचिकाकर्ता के साथ सहमति से लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही थी। याचिका में यह भी दावा किया गया है कि महिला का याचिकाकर्ता के साथ रहना पूरी तरह से स्वेच्छिक था, और उसने बिना किसी दबाव या अनुचित प्रभाव के इस्लाम धर्म अपनाने और उस व्यक्ति से शादी करने का निर्णय लिया। महिला ने इस संबंध में एक नोटरीकृत हलफनामा और उसका वीडियो भी अदालत में पेश किया, जिसमें उसने खुद कहा कि उसने अपने निर्णय को पूरी स्वतंत्रता से लिया। याचिका में महिला की तत्काल रिहाई की मांग करते हुए कहा गया कि वह न तो कोई अपराध कर रही है और न ही उसके खिलाफ कोई आरोप हैं। महिला की हिरासत को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करार दिया गया है।