
मुंबई। बंबई उच्च न्यायालय ने ‘न्यायिक अंतरात्मा’ का हवाला देते हुए 28 वर्षीय एक महिला को 26 सप्ताह का गर्भ नष्ट करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। अदालत ने रेखांकित किया कि ऐसे मामलों में महिलाओं को मिलने वाले सामाजिक दंड का समान हिस्सा जैविक पिता को देने के लिए कोई तंत्र नहीं है। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि जब वह अपने पति से अलग रह रहे है, तलाक की प्रक्रिया में थी तभी वह अपने मित्र से गर्भवती हो गई। न्यायमूर्ति एस.एस.गडकरी और न्यायमूर्ति नीला गोखले की पीठ ने याचिकाकर्ता जैसी महिलाओं के सामने आने वाली कठिन परिस्थितियों पर दुख व्यक्त किया और जैविक पिता की समान जिम्मेदारी सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी तंत्र की कमी को रेखांकित किया। पीठ ने कहा कि उसकी ‘‘न्यायिक अंतरात्मा’’ उसे गर्भपात की अनुमति देने की अनुमति नहीं देती है। अदालत ने कहा कि गर्भपात के अनुरोध के पीछे मुख्य कारण ‘‘सामाजिक कलंक’’ प्रतीत होता है। महिला ने ‘अवांछित’ गर्भ को नष्ट करने की अनुमति देने का अनुरोध किया था। याचिका के अनुसार, उसकी चार साल की बेटी है और वह अपने अलग हुए पति से तलाक की प्रक्रिया से गुजर रही है। महिला एक दोस्त के साथ रिश्ते में है, जिसके साथ वह गर्भवती हुई। पीठ ने कहा कि वह याचिकाकर्ता की प्रजनन स्वतंत्रता, अपने शरीर पर स्वायत्तता और उसकी पसंद के अधिकार के प्रति सचेत है लेकिन मेडिकल बोर्ड ने स्पष्ट रूप से कहा है कि इस अवस्था में गर्भपात उसके लिए अनुकूल नहीं है। गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम के प्रावधानों के तहत 24 सप्ताह से अधिक भ्रूण को नष्ट करने के लिए अदालत की मंजूरी लेनी होती है।