मुंबई: मुंबई के गोरेगांव की रहने वाली 35 वर्षीय एक महिला तीन महीने पहले 11 लाख की ठगी की शिकार हो गई, लेकिन पुलिस अब तक एफआईआर दर्ज नहीं की है। पिछले वर्ष नवंबर, 2022 में डिंडोशी थाने में अपना बयान दर्ज कराने वाली शिकायतकर्ता अभी भी एफआईआर दर्ज करवाने के लिए चक्कर काट रही हैं। बता दें कि वह इस बारे में थाने के सीनियर इंस्पेक्टर से मिल चुकी हैं और इसके 15 दिन बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
पिता की बीमारी के बहाने ऐंठे पैसे
शिकायतकर्ता सोशल मीडिया के जरिए 2015 में एक व्यक्ति के संपर्क में आई और दोनों की दोस्ती हो गई। उसने दावा किया कि वह टाटा ट्रस्ट में मार्केट कैपिटलिस्ट के रूप में काम करता है। उसने शिकायतकर्ता को आश्वासन दिया कि वह उसे रतन टाटा का साक्षात्कार दिलाएगा।
इस बहाने से उसने ऐसे हालात और असाइनमेंट बनाए जिससे उसने उसे वर्ष 2019 में 2.03 लाख रुपए और 2020 में 1.78 रुपए दिए। अप्रैल 2021 में कोविड के समय में संबंधित व्यक्ति ने अपने पिता की बीमारी के बहाने से उससे 13.31 लाख रुपए ऐंठ लिए। वह अक्टूबर 2022 तक उसे पैसे भेजती रही।
संबंधित व्यक्ति ने दो वर्ष की अवधि में शिकायतकर्ता को 6.32 लाख रुपए वापस भी लौटाए। फिर उसके 7.50 लाख रुपए के दो चेक बाउंस हो गए। इस बारे में बात करने पर संबंधित व्यक्ति ने उसे गंभीर परिणाम भुगतने की धमकियां देनी शुरू कर दी। ऐसे में स्तब्ध होकर शिकायतकर्ता को समझ में नहीं आया कि वह आगे क्या करें। फिर कानूनी सलाह लेकर उसने पुलिस के पास जाने का फैसला किया।
एफआईआर पर टालमटोल
इसके बाद शिकायतकर्ता की एफआईआर दर्ज करवाने की दौड़ शुरू हुई। शिकायतकर्ता ने 4 दिसंबर को अपने बयान दर्ज करवाए और सभी चैट एवं बैंक विवरण सहित जरूरी विवरण प्रस्तुत किए। इसके बावजूद मामले पर एफआईआर दर्ज नहीं की गई, बल्कि एक के बाद एक दो बार जांच अधिकारी बदल दिए गए।
मामले में कोई प्रगति नहीं होने पर शिकायतकर्ता ने 27 जनवरी को फिर से शिकायत पत्र लिखा कि मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है। फिर भी कोई खास प्रगति नहीं हुई। ऐसे में शिकायतकर्ता वरिष्ठ निरीक्षक के पास पहुंची। उन्होंने आश्वासन दिया कि वह इस मामले पर ध्यान देंगे, फिर भी मामले में कोई प्रगति नहीं हुई। शिकायतकर्ता का कहना है कि वह अपने ऋण के लिए भारी किश्तें चुकी रही है, जबकि पुलिस इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रही है।
शिकायतकर्ता के वकील का इस बारे में कहना है कि उच्चतम न्यायालय के 5 न्यायाधीशों का निर्णय है कि यदि किसी सूचना से संज्ञेय अपराध प्रकट होता हो तो एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है। वाणिज्यिक अपराधों में प्रारंभिक जांच की सकती है, लेकिन शिकायतकर्ता को इस बारे में बताया जाना चाहिए, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हो रहा है। उनके अनुसार, डिंडोशी पुलिस अपनी जिम्मेदारी से भाग रही है और बेवजह समय गंवा रही है।