Friday, November 21, 2025
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संपादकीय: पिछलग्गू नहीं बनेंगे हम!

दुनिया की महाशक्तियां दूसरी माध्यम शक्तियों को अपने पाले में लाकर अपनी शक्ति कई गुना बढ़ाती रही हैं। दुनिया भर में कई संगठन हैं। ब्रिटेन, अमेरिका और समूचे यूरोपीय राष्ट्रों का संगठन है नाटो। ब्रिक्स जी 20 जैसे कई संगठन हैं जिसमें शामिल राष्ट्र अपने हित की चिंता करते हैं। एशियाई देशों सहित भारत सार्क संगठन का भी सक्रिय सदस्य उसी तरह है जैसे जी 20 का। अमेरिका चीन, रूस की तनातनी जग जाहिर है। अमेरिका दूसरी महाशक्ति चीन को अपना शत्रु मानता है। वह चाहता है कि चीन के खिलाफ नाटो प्लस बनाकर ऑस्ट्रेलिया जापान और भारत को नाटो प्लस में शामिल कर चीन को चारो तरफ से घेर सके। चीन की भी चाल रहती है अपने से कमजोर पड़ोसी राष्ट्रों की जमीन इंच इंच हड़पता रहता है। 1962 में चीन ने हमारी हजारों किलोमीटर जमीन पर नाजायज कब्जा किया था क्योंकि चीन के मुकाबले में भारत बेहद कमजोर रहा लेकिन लगभग एक डेढ़ साल पहले गलवान घाटी में भारतीय सैन्य टुकड़ी और चीन की सेना के बीच झड़प हुई थी। जिसमें चीन का ज्यादा नुकसान हुआ था। भारत ने सिद्ध कर दिया कि वह 1962 का भारत नहीं 2024 का भारत है जो विश्व की महाशक्तियां में शामिल होने की ताकत रखता है। हालांकि चीन ने भारत के एक राज्य अरुणाचल प्रदेश सहित लद्दाख को भी अपना मानता है। कहा जाता है चीन ने अरुणाचल प्रदेश में कब्जा जमाकर सौ गांव बसाए हैं और लद्दाख का शुष्क पठारी हिस्से पर कब्जा जमा लिया है।चीन ताइवान को अपना अंग मानता है। दोनों के बीच कभी भी रूस और यूक्रेन की भांति युद्ध की संभावना है। अमेरिका ताइवान के साथ है। इसलिए अमेरिका, भारत जैसे देशों को नाटो प्लस में शामिल कर चीन की दुश्चिंता दूर भगाना चाहता है। भारत को नाटो में शामिल करने और नाटो प्लस बनाने का प्रस्ताव अमेरिकी कांग्रेस पारित कर चुकी है।अमेरिका कई वर्षों से भारत पर डोरे डाल रहा है लेकिन हमारे विदेश मंत्री जयशंकर ने अमेरिका को दो टुक जवाब देते हुए कहा है कि चीन से मुकाबला करने में भारत स्वतः सक्षम है। हमे किसी दूसरे देश की जरूरत नहीं है। चीन के साथ हमारे रिश्ते बेशक खराब हैं फिर भी बहुत अधिक चिंता की बात नहीं है। एस जयशंकर ने साफ लफ्जों में अमेरिका को जवाब दे दिया है भारत नाटो प्लस में शामिल नहीं होगा। निश्चित ही अमेरिका भारत के इस जवाब से सदमे में होगा। उसे कदापि आशा नहीं रही होगी कि भारत इस तरह से टका सा जवाब देगा वह भी महाशक्ति अमेरिका को।
भारत की शुरू से ही विदेशी नीति रही है गुट निरपेक्षता की। भारत का अधिकार है कि वह जिससे चाहे जैसा भी चाहे संबंध रख सकता है। भारत अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिका सहित रूस और फ्रांस जैसे राष्ट्रों से सामरिक महत्व की सामग्री खरीदता रहा है। यह भारत की गुट निरपेक्ष नीति का हिस्सा है। भारत रूस संबंध मजबूत हैं। कोरोना काल में भी जब रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच नाटो राष्ट्रों ने रूस पर पाबंदियां लगा दी तब रूस ने भारत को कच्चा तेल कम दाम में देने की पेशकश की थी और भारत आज भी रूस से कच्चा तेल सस्ते दाम में खरीदकर रूस की आर्थिक मदद करता है। इजरायल और ईरान के बीच संभावित युद्ध और अमेरिका द्वारा ईरान पर तमाम प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद ईरान से तेल खरीद रहा है। अमेरिकी प्रतिबंधों का भारत की विदेश नीति पर कोई भी नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा है। अमेरिका हमेशा से दबंगई करता आया है।बांग्लादेश में नरसंहार होने पर भारत ने तब पूर्वी पाकिस्तान की आजादी के लिए लड़ रहे मुजीबुर्रहमान की सहायता की और बांग्लादेश को पाकिस्तान से मुक्त कराया। भले आज बांग्लादेश भारत के विरुद्ध जा रहा है चिंता की बात नहीं है। अमेरिका ने भारत पाकिस्तान युद्ध के बीच पाकिस्तान के समर्थन में अपना जंगी जहाजों का काफिला हिंद महासागर में भेज दिया था। जिसका नाम सातवां बेड़ा जो बहुत शक्तिशाली था फिर भी इंदिरा गांधी ने स्पष्ट कहा था हमारा एक सैनिक अपने सीने में विस्फोटक बांधकर तुम्हारे बेड़े के बॉयलर में खुद पड़ेगा तब तुम्हारे इस ताकतवर सातवें बेड़े का पूरी तरह विनाश हो जाएगा। अमेरिका ने तब भी भारत पर बैन लगाया था जब इंदिरा गांधी ने एटम बम का परीक्षण कराया और दुनिया में तहलका मचा दिया। तब भी बैन किया था जब शांतिप्रिय प्रधानमंत्री अटल जी ने दोबारा उसी पोखरण में पुनः एटम बम का विस्फोट कराया था। अब भारत सहित कई देशों के निर्यात पर सौ प्रतिशत एक्साइज ड्यूटी लगाने की धमकी दी। जबकि चीन ने अमेरिका को बहुमूल्य सामान देने से साफ मना कर दिया जो गोला बारूद ही नहीं अन्य तमाम समानों जैसे सेमी कंडक्टर बनाने में फैल हो जायेगा अमेरिका और तब उसे सुधारने में कई दशक लग जाएंगे। ग्लोबलाइजेशन के बाद दुनिया बहुत छोटी हो गई है। बिना ट्रेड किए कोई मुल्क धनवान नहीं हो सकता। यह सच्चाई अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जितनी जल्दी हो सके समझ लें। इसी में अमेरिका की भलाई होगी अन्यथा मंदी की मार में तहस नहस हो जायेगा। भारत तो फिर भी खड़ा रहेगा।

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