
लेखक- जितेंद्र पांडेय
अपनी उच्च शिक्षा, कुशाग्र बुद्धि क्षमता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के कारण ही यहूदी जर्मनी में उच्च पदस्थ एवम धनी हुए थे। पीढ़ी दर पीढ़ी यहूदी उन्नत के शिखर पर चढ़ते गए। आज के अफगानिस्तान अर्थात गांधार राज्य के कुलस्थ ब्राह्मण शिक्षित समुदाय और धर्मप्रांण रहा। अरब ने हमला कर गंधार में हिंदुओं की जघन्य हत्याएं की। दस हजार महिलाओं को अरबी शेखो की हवस शांत करने के लिए अरब भेजा गया। पचास हजार युवाओं को बंदी बनाकर यूरोप की मंडियों में बेच दिया गया।वहां दास रहते हुए मेधावी बुद्धि से उन्होंने अपना स्थान बना लिया। वहीं यहूदी गुरुओं के संपर्क में आकर यहूदी धर्म स्वीकार कर लेने पर यहूदी कहलाने लगे। वक्त गुजरता गया।पीढ़ी दर पीढ़ी यहूदी शिक्षित व्यवसाई और उच्च पदस्थ होकर धनवान बन गए। कालांतर में जर्मनी में तानाशाह एडॉल्फ हिटलर अपनी क्रूरता और दुष्टता से शासक बन बैठा। विस्तारवादी नीति के चलते उसने अपने पड़ोसी मुल्क पर कब्जा करने की फितरत की। सारा यूरोप लगभग उसके प्रभाव क्षेत्र में आ गया। उसने रूस को भी जीतने के लिए हमला कर दिया। रूसी सेना ने रणनीति के चलते उसे रूस में काफी भीतर तक घुसाने का मौका दिया। मूर्ख तानाशाह हिटलर रूसी रणनीति समझने में नाकाम रहा।हिटलर की सेना को रूस में अंदर तक घुसने लेना इसकी रणनीति थी। रूस ने मार्ग के दोनों ओर अपने सैनिक छिपा रखे थे और जब हिटलर की सेना काफी भीतर तक घुस गई तो नीति के अनुसार चारों तरफ से रूसी सेना ने हिटलर की सेना को घेरकर मार डाला। हिटलर यहूदियों के उत्कर्ष और धनवान होने से चिढ़ता था।उसने सभी यहूदियों को मार डालने की योजना बनाई। उनका खुलेआम कत्लेआम करने का आदेश दिया। लगभग पचास लाख यहूदियों का कत्ल कराकर जब जी नहीं भरा तो यहूदियों को पकड़ लाने। का फरमान जारी कर दिया और उन्हें धमन भट्ठियों में झोकवा दिया।अग्नि से जलते यहूदी जब गुहार लगाते चीखते चिल्लाते तो खूंखार हिटलर कहकहे लगाता यहूदियों को तड़पते मृत्यु के आगोश में जाते देख खुशी से नाचने और कहकहे लगाता खुशी से झूम उठता था। अपने प्राण बचाने के लिए लगभग बीस लाख यहूदी बड़ी बड़ी जहाजों में भूसे की तरह भर भर कर पूरे यूरोप में शरण मांगने लगे थे लेकिन हिटलर के कोप से डरकर किसी देश ने भी यहूदियों को शरण नहीं दी। यहां तक कि विशाल राष्ट्र रूस ने भी शरण नहीं दिया। जैसे पूरी दुनिया में मानवता खत्म हो गई थी। लाचार हो यहूदियों का जहाज दक्षिण की ओर बढ़ा। मिश्र जैसे संपन्न राष्ट्रों ने उन्हें शरण नहीं दी। आगे बढ़ता रहा जहाज। भूख प्यास से बेहाल होते रहे यहूदी। प्राण रक्षा की आशा ही त्याग दिए थे। अपने जहाज पर लिखवाया, हमें पूरी दुनिया ने ठुकरा दिया है। हमसे हमारा घर संपत्ति छीन ली गई है। बेवतन हम यहूदियों को पनाह दे फिलिस्तीन। फिलिस्तीनियो की मानवता जागी। उन्होंने यहूदियों को शरण दिया। बीस लाख यहूदी शरणार्थी बन गए। फिलिस्तीन ने उन्हें अपने मकान दिए। जमीन दी बसने के लिए लेकिन यहूदियों को शरणार्थी बनकर रहना स्वीकार नहीं था। उन्होंने फिलिस्तीनी भूमि पर ताकत से लगभग पूरा हो कब्जा कर लिया। बीस लाख फिलिस्तीनी आबादी के लिए छः किलोमीटर पट्टी जिसे गाजा कहा जाता है। फिलिस्तीनी सिमटकर रह गए।यहूदियों ने अपनी मृतप्रायः मातृभाषा हिब्रू को पुनः स्थापित ही नहीं किया बल्कि उसके साहित्य को समृद्ध बना दिया। यहूदी समझते थे कि अगल बगल मुस्लिम राष्ट्र होने से इनपर हमेशा खतरा बना रहेगा। इसलिए उन्होंने वैज्ञानिक खेती शुरू की। खाद्यान्न मामले में आत्मनिर्भर बने। बिना मिट्टी के ही खेती शुरू की। इस्लामिक बिरादरी वालों से अपनी रक्षा के लिए यहूदियों ने अपनी वैज्ञानिक क्षमता के कारण वैज्ञानिक शोधों द्वारा डिफेंस के अत्याधुनिक हथियार बनाकर शक्तिशाली बन गए। अपने पड़ोसियों से युद्ध होने पर यहूदियों ने शत्रु सेना से लड़ने के लिए क्रूरतम आतंकवादी संगठन हमास का निर्माण किया। हमास के आतंकी लड़ाकों के द्वारा यहूदियों ने दुश्मनों पर हमले कराए। इजरायल यहूदी धर्म गुरू के ही नाम पर रखा गया। अपनी सैन्यशक्ति को मजबूत इतने बनाया ताकि पड़ोसी बावन मुस्लिम मुल्कों से मोर्चा ले सके। इजरायल जानता था कि पड़ोसी मुस्लिम देश उसकी स्थिति पचा नहीं पाएंगे। इसलिए वे सम्मिलित होकर इजरायल पर हमला कर सकते हैं इसीलिए उसने अपने हर तरुण युवाओं, युवतियों के लिए मिलिट्री ट्रेनिंग अनिवार्य कर दिया। आज इजरायल का हर बच्चा सैनिक है। आज दुनिया भर में यहूदी बड़े बड़े ओहदे पर हैं। आर्थिक सामरिक दृष्टि से यहूदी सर्बोत्कृष्ठ हैं। पाठकों को याद होगा जब मुंबई पर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी हमला हुआ तो टाटा के पारसी होने के नाते ताज होटल को टारगेट किया गया। स्मरण होगा की आज का ईरान फारस रहा। मुस्लिमों को संरक्षण और शरण दिया गया था लेकिन अपनी जन्मजात फितरत के कारण मुस्लिमों ने पारसियों को ही मिटाने की कोशिश करते हुए पूरे देश पर कब्जा कर उसका नाम ईरान रख लिया। ईरान शिया बहुल राष्ट्र है। पाकिस्तानी आतंकवादियों ने यहूदी परिवारों पर भी हमला किया जिससे यहूदियों के प्रति मुसलमानों के मन में कितनी नफरत है का पता चलता है। आज ईरान इजरायल द्वारा फिलिस्तीनी जमीन पर कब्जे को नाजायज करार दे रहा तो किस मुख से। उसने भी तो पारसियों के देश पर जबरन कब्जा कर ईरान बना रखा है। तुम करो तो ठीक और यहूदी करें तो गलत?? ताजा हालात यह है कि गाजा और मिश्र को जमीन के अंदर से जोड़ने वाली एक अत्याधुनिक गुफा है।लेबनान की धरती का इजरायल पर हमले के लिए उपयोग नहीं करने को नहीं मानकर अब्दुल्ला ने इजरायल पर हमला किया। हमास ने इजरायल में घुसकर कत्लेआम किया। सैकड़ों देशी विदेशी बेकसूर नागरिकों को बंधक बना लिया। अब जब इजरायल ने हमास के खात्मे और नागरिकों को छुड़ाने का प्रयास शुरू किया है तो फिर इस्लामिक राष्ट्र हाय तौबा क्यों मचा रहे? हमास के आतंकी भूमिगत सुरंगों में छिपे हुए है। संभव है वे सुरंग के रास्ते मिश्र जा पहुंचे। यहां हम अरब राष्ट्रों और इजरायल का भारत के साथ संबंधों की चर्चा और मूल्यांकन आवश्यक समझते हैं। यही न्याय भी होगा। जहां तक इजरायल को फिलिस्तीन द्वारा शरण दिया जाना मानवता का प्रबल उदाहरण है लेकिन फिलिस्तीनियों को पतली पट्टी में सिमेट देना अनुचित है।फिलिस्तीन के पास न पीने को पानी है न खाने को अनाज और नहीं चिकित्सा सुविधा। एक तरफ महासागर तो दूसरी तरफ इजरायल की चौकियां। समुद्र में भी रोक टोक। मानवीय आधार पर इजरायल का धर्म होता है कि वह फिलिस्तीन की बेकसूर जनता के साथ मित्रवत व्यवहार करे। खाद्यान्न मगाने की छूट मिले चिकित्सकीय आवश्यकता के लिए अपने संसाधनों का उपयोग करे। जहां तक आतंकवादी गिरोह हमास की बात है उसे नेस्तमामुद करे इजरायल क्योंकि आतंकवादी दुनिया और मानवता के लिए खतरा हैं। इजरायल हमारी कृषि सैन्य प्रौद्योगिकी में सहायक होने के कारण हम उसका समर्थन मात्र हमास के खात्मे को लेकर कर सकते हैं लेकिन अपने शरणदाता बेकसूर फिलिस्यीनियो की हत्या के लिए समर्थन कदापि नहीं कर सकते। मोदी ने इजरायल का समर्थन किया तो खाड़ी देशों ने धमकी दे डाली। खाड़ी के तेल उत्पादक देश हमेशा मनमानी करते रहते हैं। जब हुआ कच्चे तेल का मूल्य बढ़ा दिया। जब हुआ तेल का उत्पादन कम कर भाव बढ़ाकर हमें ही लूटने लगते हैं। यह भूल जाते हैं कि भारत उन्हें खाद्यान्न और मांस शाक सब्जी निर्यात करता है तब वे खाना पाते हैं। मना हमें तेल की जरूरत है और हम खाड़ी देशों से तेल निर्यातक बड़े हैं। सोचो कि हमने इलेक्ट्रिक वेहिकील बना कर उपयोग शुरू कर दिए।सोलर एनर्जी से व्हेहिकिल चलाने लगे और जिस दिन तुम्हारे तेल के कुएं सूख गए तो क्या खाओगे ? रेत?? माना कि तुम संख्या में 54 हो। चीन का साथ है तुम्हें मिलता मगर जिस दिन शेष दुनिया तुम्हारे खिलाफ उठ खड़ी हो गई तो क्या बच पाएगा तुम्हारा अस्तित्व?