
पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिए जाने का दुष्परिणाम है लेह-लद्दाख में ज़ेन-जी का सड़कों पर उतरना। केंद्र ने जब धारा 370 हटाई और जम्मू-कश्मीर से लेह-लद्दाख को अलग किया, तब वादा किया गया कि लेह-लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा, लेकिन वर्षों बीत गए, नहीं मिला। पूर्ण राज्य का दर्जा पाने के लिए लद्दाख के सर्वमान्य नेता वांगचुक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें तमाम विदेशी पुरस्कार मिले हैं। विद्वान ही नहीं, पर्यावरण विशेषज्ञ भी हैं। वे दिल्ली आकर महात्मा गांधी की समाधि पर कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए अपने हमउम्र साथियों के साथ लद्दाख से पैदल आ रहे थे, लेकिन हरियाणा में बीजेपी सरकार ने जबरन रोक दिया। आगे बढ़ने ही नहीं दिया। आखिर क्यों?क्या चंद शांतिप्रिय भारतीयों के दिल्ली आकर महात्मा गांधी की समाधि पर श्रद्धांजलि देने से डर गई थी केंद्र सरकार? निहत्थे थे वांगचुक और उनके साथी। उन्होंने कोई विप्लव तो किया नहीं। आतंकवादी भी नहीं हैं, फिर दिल्ली में आने से रोककर केंद्र सरकार कौन-सा संदेश देना चाहती थी? क्या यही कि बीजेपी सत्ता में रहते किसी को अपने ही देश में कहीं आने-जाने का मौलिक अधिकार ही नहीं है? हरियाणा में रोके जाने से सिर्फ वांगचुक ही नहीं, देशप्रेमी शांतिप्रेमी देशवासियों को भी पीड़ा हुई थी। आखिर क्यों कोई दिल्ली में नहीं आ सकता? महात्मा गांधी की समाधि पर पुष्प अर्पित नहीं कर सकता? संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकार ही नहीं देने का क्या अर्थ हो सकता है? वास्तविकता है कि केंद्र सरकार एक पूंजीपति को लद्दाख में खनिज निकालने के लिए जमीन देना चाहती थी, जैसे कश्मीर में दिया गया था, जैसे देश के कई राज्यों में दिया जा रहा उपहार में। यहां तक कि आदिवासियों के मौलिक और संवैधानिक अधिकार- जल, जमीन, जंगल छीनकर पूंजीपति को दिया गया था। तब हसदेव जंगल के 15 हजार पेड़ काटे गए थे। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया गया। आदिवासियों के विरोध को पुलिस की शक्ति के द्वारा रोका गया। बिहार में दस लाख आम के पेड़ों वाली 1030 एकड़ जमीन उसी पूंजीपति को एक रुपए सालाना भाड़े पर 33 साल के लिए लीज में दिया गया। मान लिया जाए कि वह जमीन बंजर दर्ज रही हो, जिस पर किसानों ने आम के दस लाख पेड़ लगाकर हरियाली लाई होगी, तो बुरा क्या है? बंजर जमीन में पक्का आवास तो नहीं बनाया था। उसी पूंजीपति को असम में चालीस-पचास साल से बसे नागरिकों के आशियाने तोड़कर 3000 बीघे दिए जा रहे थे, जिस पर हाईकोर्ट ने आश्चर्य जताते हुए रोक लगा दी। उसी पूंजीपति को फायदा पहुंचाने के लिए कश्मीर से धारा 370 हटाई गई ताकि वहां जमीन खरीदकर कश्मीर को निचोड़ सके, अरबों डॉलर की संपत्ति अर्जित कर सके। एक व्यक्ति पर सरकार की मेहरबानी का क्या अर्थ हो सकता है? वांगचुक तभी से केंद्र की आंखों में खटकने लगे थे जब उन्होंने जमीन पूंजीपति को देने का विरोध किया था, पर्यावरण सुरक्षा और अखंडता के लिए। सुप्रीमकोर्ट के जस्टिस ने विपक्षी नेता राहुल गांधी का मजाक उड़ाते हुए पूछा था। चीन ने लद्दाख की हजारों वर्गमील पर कब्जा करने का दावा कैसे कर रहे? बाद में उल्टा, जस्टिस का बीजेपी से संबंध सामने आया भी, जब बीजेपी के बड़े नेताओं के साथ खिंचवाई गई फोटो सोशल मीडिया में वायरल हुई।
सच तो यह है कि राहुल गांधी के लेह-लद्दाख जाने पर वहां के चरवाहों ने सूचना दी थी कि अब लाल सेना उन्हें उन क्षेत्रों में पशु चराने से रोक रही है, जहां वे पीढ़ियों से बकरियां-भेड़ें चराने जाया करते थे। वांगचुक ने भी चीन द्वारा जबरन लेह-लद्दाख की हजारों वर्गमील जमीन पर कब्जा किए जाने की बात दोहराई थी, जबकि प्रधानमंत्री मोदी कहते रहे- न कोई घुसा है, न घुसेगा। अरुणाचल प्रदेश में भी चीन ने कई भारतीय गांवों के नाम बदल दिए की बातें भी सामने आई थीं। लेकिन कांग्रेस द्वारा “चीन को लाल आंख दिखाना चाहिए कहने वाले अब क्यों नहीं चीन को लाल आंख दिखा रहे? लाल आंख तब दिखाना था जब ऑपरेशन सिंदूर, जिसे सेनाधिकारी ने जनता को मूर्ख बनाने के लिए की गई कार्रवाई बताया। उस समय चीन पाकिस्तान को लड़ाकू विमान, हथियार और भारतीय सेना की लोकेशन बता रहा था। वांगचुक पिछले पंद्रह दिनों से भूख हड़ताल पर बैठे थे। उनके एक इशारे पर जान देने वाले हजारों युवाओं को वांगचुक का भूख हड़ताल देखा नहीं गया क्योंकि केंद्र निश्चिंत बैठा था। कोई खोज-खबर ही नहीं ली और न कोई केंद्रीय बड़ा नेता इनसे संपर्क किया। तो निराश युवा आक्रोश में सड़क पर उतर गए।
पुलिस बल से उनके ऊपर अश्रु गैस के गोले छोड़े गए। गोलियां चलाई गईं, जिससे आक्रोश चरम पर पहुंचा। युवा आंदोलनकारियों ने सीआरपीएफ की गाड़ी फूंक दी और सारा क्रोध बीजेपी के शीश महल ऑफिस पर क्रोधाग्नि बनकर टूट पड़ा। नतीजन बीजेपी कार्यालय को आग के हवाले कर दिया गया। अगर सरकार फोर्स द्वारा दमनचक्र चलाकर आंदोलनकारी युवाओं पर अंकुश लगाना चाहती है तो समझना चाहिए, जब देश की जनता, खासकर युवा, अंग्रेजों के दमनचक्र के सामने अडिग खड़े रहे। लाठियां खाईं। बंदूक की गोलियां झेल लीं। तो अब भारत आजाद है, अपने ही देश में अपनी सरकार से क्यों डर जाएंगे लोग? बेहद संवेदनशील क्षेत्र लेह-लद्दाख में शांति बहाली नितांत जरूरी है। शांति बहाली के लिए लेह-लद्दाख ही नहीं, जम्मू-कश्मीर सहित दिल्ली को भी पूर्ण राज्य का दर्जा देना अनिवार्य है। दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा न कांग्रेस ने दिया और न ही बीजेपी देना चाह रही है। आखिर क्या कारण है लेह-लद्दाख, जम्मू-कश्मीर सहित दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा क्यों नहीं दिया जा रहा? वहां के निवासियों को दबाना उचित नहीं। उन्हें अपना भाग्य संवारने का मौका देना ही देशहित में होगा। आज सारा देश सुलग रहा है, जीएसटी द्वारा आठ साल तक हजारों-लाख रुपए जनता से लूटने के बाद चुनाव के समय थोड़ा जीएसटी कम कर उत्सव मनाने की बात को लेकर। वोट चोरी प्रमाणित होती जा रही है, लेकिन चुनाव आयोग जांच कर रही सीआईडी के पत्रों का जवाब नहीं दे रहा। अब कर्नाटक में एसआईटी बन गई है जो जांच करेगी, तो क्या होगा? अब केंद्र सरकार वांगचुक को पर्यावरण सुरक्षा, लद्दाख के विकास और वैज्ञानिक शोध करने वाले इंस्टीट्यूट पर बदले की भावना से लीज खत्म करके बुलडोज़र चलाने वाली है। यानी लद्दाख के युवकों में वैज्ञानिक सोच विकसित करने से रोकना चाहती है।
असहमति के स्वर दबाकर केंद्र सरकार लद्दाखी लोगों का जीवन और भविष्य शायद बर्बाद करने पर तुल गई लगती है। अनपढ़ गुलाम भक्त बनने के लिए ही इंस्टीट्यूट को तोड़ा जा सकता है। तो यह सरकार की बहुत बड़ी भूल होगी, जिसका परिणाम उचित नहीं होगा। यानी आप देश को अपनी ताकत से कुचलकर शासन करना चाहते हैं।
भूल रही सरकार पड़ोसी देशों में युवाओं की क्रांति, जहां से तानाशाहों को छुपकर भागने को मजबूर होना पड़ा। अगर देश में भी वैसा हुआ तो उसके लिए तानाशाह सरकार जवाबदेह होगी।