
डॉ.सुधाकर आशावादी
विश्व में सबसे बड़ी समस्या बढ़ती जनसंख्या तथा उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन है, जिसका दुष्प्रभाव मानवीय जीवन पर पड़ रहा है। ऐसे में युद्ध की विभीषिका हो या प्राकृतिक आपदाएं। पर्वतीय क्षेत्रों में बादलों का फटना हो या भूस्खलन से पहाड़ों का खिसकना, इनमें जन धन की हानि होना निश्चित रहता है। धर्म ग्रंथो में भी कहा गया है कि जब जब पृथ्वी पर अनाचार और अत्याचार बढ़ता है, तब तब प्रकृति अपना रौद्र रूप दिखाती है और विनाश लीला में जन धन की हानि होती ही है। कालांतर में इस स्थिति को अर्थशास्त्र में माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत से जोड़ा गया, जिसमें कहा गया कि जब जनसंख्या बढ़ जाती है, तब स्थिति विस्फोटक हो जाती है तथा प्रलय, महामारी, भुखमरी सहित अनेक आपदाएं जनसंख्या को नियंत्रित करती हैं।
इतिहास में सृष्टि के निर्माण व ध्वंस के अनेक प्रसंग मिलते हैं तथा पुरातत्व अवशेषों से मानव संस्कृति और सभ्यता के उत्थान व पतन के साक्ष्य आज भी उपलब्ध हैं। कहने का आशय यही है, कि नश्वर जगत में कुछ भी स्थाई नहीं है। वैचारिक संघर्ष समय समय पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए होते रहे हैं। आज भी हो रहे हैं। कभी किसी धर्म का प्रसार करके अपना प्रभुत्व सिद्ध करने के लिए मानवीय संवेदनाओं को कुचला गया, कभी किसी तानाशाही प्रवृत्ति के कारण आदमी को आदमी का गुलाम बनाने का दौर चला, जो एक प्रथा के रूप में समाज में लम्बे समय तक विद्यमान रहा। आज भी स्थिति में ख़ास अंतर नहीं आया है। विश्व में ऐसे अनेक समाज हैं, जहाँ कबीलाई संस्कृति विद्यमान है। महिलाओं पर कठोर अत्याचार किये जाते हैं। कहीं कहीं महिला प्रधान संस्कृति में पुरुषों का उत्पीड़न किया जाता है। वस्तुस्थिति यह है कि शक्ति का दुरूपयोग सदैव निर्बल पर अत्याचार करके किया जाता है। सभ्य समाज में मानवता केवल प्रदर्शन की विषयवस्तु बनकर रह गई है, जिसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं रह गया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रभुसत्ता स्थापित करने के लिए युद्ध को सर्वश्रेष्ठ विकल्प की संज्ञा दी जाती है। सभ्य समाज में युद्ध का कोई स्थान नहीं है। किसी भी समस्या का निदान युद्ध में मानवीय व भौतिक संसाधनों को नष्ट करना नहीं है, हर समस्या का निदान समझौते की मेज पर ही संभव है, किन्तु प्रभुत्ववादी शक्तियां पूरे विश्व को अपने प्रभाव में रखने के लिए अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने में पीछे नहीं हैं। उनकी कूटनीति पर अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन भी चुप्पी साध लेते हैं। मानवाधिकार संगठनों की तलवार भी उन देशों पर चलती है , जो स्वयं अराजक तत्वों और आतंकवाद से जूझ रहे हैं। युद्ध के लिए हथियार सप्लाई करने वाली शक्तियों के विरुद्ध मानवाधिकारों के हिमायती स्वयं को असहाय समझते हैं। बहरहाल समूचे विश्व के सम्मुख शांति और सद्भाव बनाए रखने की चुनौती है। जिसके लिए जनसंख्या विस्फोट से जूझते देशों को जनसंख्या वृद्धि रोकने के लिए सकारात्मक अनुशासित प्रयास किये जाने की आवश्यकता है। जनसंख्या वृद्धि से होने वाली समस्याओं पर विश्व स्तर पर व्यापक चिंतन एवं उपयोगी उपाय अपनाने की आवश्यकता है। यदि समय रहते जनसंख्या वृद्धि की समस्या पर काबू न पाया गया, तो माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत की परिधि में आकर जनसंख्या वृद्धि का समाधान प्रकृति स्वयं ही कर लेगी। यह भी सभ्य समाज और विश्व के दिशानायक अलंबरदारों को नहीं भूलना चाहिए।