Monday, April 28, 2025
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त्वदीय पाद पंकजम् नमामि देवि नर्मदे

लेखक- सुरेश पचौरी
गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेस्मिन् सन्निधिं कुरु।।
नर्मदा भारत की सात पवित्र नदियों में एक है। पुराणों में नर्मदा को गंगा के समान पवित्र माना गया है। पौराणिक आख्यान बताते हैं कि नर्मदा प्रलय के प्रभाव से मुक्त, अयोनिजा और कुमारी है। पृथ्वी पर नर्मदा ही ऐसी एकमात्र नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है। भारत की अन्य नदियों के विपरीत नर्मदा पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है। इसका एक नाम रेवा भी है। नर्मदा के मानस पुत्र कहे जाने वाले और तीन बार नर्मदा की परिक्रमा करने वाले प्रख्यात चित्रकार, यात्रा वृत्तांतकार और वक्ता श्री अमृतलाल वेगड़ कहते हैं कि गंगा भले ही श्रेष्ठ है, ज्येष्ठ तो नर्मदा ही है। नर्मदा के तट पर मकर संक्रांति के पुण्य पर्व पर जगह-जगह मेले लगते हैं। नर्मदांचल में बसने वाले समाज की संस्कृति का दिग्दर्शन इन मेलों से होता है। इनमें जनजातीय संस्कृति, आंचलिक संस्कृति और नागर संस्कृति का परिचय मिलता है। विविधता का ऐसा सहअस्तित्व, समन्वय, सामंजस्य और समरसता भारतीय समाज और संस्कृति की गौरवशाली विरासत है,परंपरा है। नर्मदा के तट पर, विशेष रूप से जहाँ नर्मदा का प्रवाह अरण्य से गुजरता है, अतीत में वहाँ अनेक ऋषियों और मुनियों ने तपस्या की है। साधना की है। गुरुकुल बनाए हैं। समाज को अच्छा मनुष्य बनाने के संस्कारों की धारा प्रवाहित की है। नर्मदा को दक्षिण गंगा भी कहा गया है। नर्मदा को समाज ने माँ माना है। देवी स्वरूप में स्वीकारा है। उसकी पूजा की है। मनौती माँगी है। तटीय समाज में यह परंपरा है कि विवाह का पहला आमंत्रण नर्मदा जी को समर्पित किया जाता है। अमरकंटक में नर्मदा के उद्गम से लेकर भेड़ाघाट के धुँआधार, बरमान घाट, बांद्राभान और नर्मदापुरम् का सेठानी घाट, नेमावर और हंडिया, ओंकारेश्वर और महेश्वर से लेकर भरुच तक तीर्थ स्थलों की श्रृंखला विद्यमान है। यहाँ धर्म और आध्यात्म की सरिता सतत् प्रवाहमान है। एकादशी, पूर्णिमा और अमावस्या को दूर-दूर से श्रद्धालु जन नर्मदा स्नान के लिए आते हैं। ग्रीष्म, पावस, शीत कोई मौसम इस परंपरा में बाधक नहीं हो पाता। आज भी निर्जन तटों पर संन्यासियों और साधकों की कुटियाँ यत्र-तत्र दिख जाती हैं। नर्मदा जयंती पूरी नर्मदा पट्टी में उत्साह, उल्लास और आस्थापूर्वक मनायी जाती है। नर्मदा स्नान के लिए जाते पद यात्रियों और बैलगाड़ियों में सवार आबाल वृद्ध नर-नारियों के कंठों से बहती आस्था की सरिता के सुर लोकमान्यताओं का सजीव चित्रण प्रस्तुत करते हैं। यहाँ गाए जाने वाले लोकगीतों को बम्बुलियां कहा जाता है–
नरबदा मैय्या ऐसे मिली रे,
जैसे मिल गए मताई और बाप रे

यह भावनात्मक नाता है नर्मदा और उसके भक्तों का।
आलेख के आरंभ में भारत की जिन सात पवित्रतम सरिताओं का उल्लेख है, वे और कुछ अन्य नदियाँ- ताप्ती, महानदी, कृष्णा, बेतवा, क्षिप्रा आदि को भी पूज्य माना जाता है। भारत में होने वाले चार महाकुंभों में से दो प्रयागराज और हरिद्वार गंगा तट पर होते हैं। नासिक का कुंभ गोदावरी के तट पर और अवंतिका (उज्जयिनी) का सिंहस्थ कुंभ क्षिप्रा के तट पर हर बारहवें वर्ष पर होता है। प्रयागराज का महाकुंभ तो समूचे विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक, आध्यात्मिक समागम है। आस्था और पूजन की चरम मान्यता के बावजूद यह स्पष्ट है कि जो गौरव नर्मदा जी को प्राप्त है वह अन्य पवित्र सरिताओं के हिस्से में नहीं आया है। नर्मदा एकमात्र ऐसी नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है। वर्तमान युग में वाहनों से परिक्रमा की जाने लगी है। पैदल परिक्रमा में भी नर्मदा में विलीन होने वाली सहायक नदियों को लाँघ लिया जाता है। इससे 7-8 महीने में परिक्रमा पूरी हो जाती है। जबकि नर्मदा परिक्रमा का मूल स्वरूप मार्कण्डेय परंपरा में मिलता है। इस परिक्रमा में तीन वर्ष, तीन माह,तीन दिन लगते हैं। जिन-जिन सहायक नदियों का नर्मदा से संगम होता है, उन्हें लाँघा नहीं जाता बल्कि उनकी भी परिक्रमा करते हुए परकम्मावासी नर्मदा परिक्रमा को पूर्णता प्रदान करते हैं। यह भक्ति और शक्ति का अनूठा उपक्रम है जो आदिकाल से निभाया जा रहा है। नर्मदा परिक्रमा की एक और विशेषता है। परकम्मावासी बीच में जहाँ कहीं भी विश्राम करते हैं वहाँ उनके लिए ठहरने और भोजन की निःशुल्क व्यवस्था होती है। कोई पीठ पर सामान लादकर नहीं चलता। जहाँ धर्मशाला आदि नहीं होतीं वहाँ गाँव वाले अपने घरों की दहलान में या गाँव के मंदिर में ठहरने और भोजन की व्यवस्था अपना कर्तव्य मानकर करते हैं। ठहरने के ठिकानों पर भजन कीर्तन से भक्ति रस की सरिता बहती है। यह भारतीय संस्कृति में विद्यमान सामुदायिक जीवन प्रणाली अन्यतम उदाहरण है जो अन्य किसी भी संस्कृति में दुर्लभ है। नर्मदा को मध्यप्रदेश की जीवनदायिनी माना जाता है। नर्मदा के आँचल में आरोग्य और स्वास्थ्य प्रदान करने वाली जड़ी बूटियों का दुर्लभ खजाना है। नर्मदा जल के कारण ही नर्मदा घाटी की भूमि उर्वर है। नर्मदा मानव, पशु-पक्षियों, खेती-किसानी, वन, कल कारखानों की अपरिहार्य आवश्यकता की पूर्ति करती है। खनिज पदार्थों का बाहुल्य भी नर्मदा के वनों और पर्वतों में विद्यमान है। किसी समाज के जीवन यापन और विकास के लिए जल की उपलब्धता बुनियादी शर्त है। यही जीवन का आधार भी है। भारत में आदिकाल से यह लोकमान्यता व्यवहार में है कि जल ही जीवन है। यह हमारे लिए नारा नहीं अपितु जीवन मंत्र है। ऐसी लोकहितैषी, जीवनदायिनी, समृद्धिप्रदायिनी नर्मदा मैय्या को हम बारम्बार प्रणाम करते है।(लेखक पूर्व केन्द्रीय मंत्री रहे है।)

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