
जितेंद्र पांडेय
महात्मा गांधी नाम सुनते ही हमारे जेहन में एक चित्र क्रौंध जाता है। आंखों पर गोल ऐनक, हाथ में एक छोटी सी लाठी।एक सामान्य सी धोती जो उनका अंग वस्त्र और अधोवस्त्र दोनों का काम करती है। इसी के साथ सत्य और अहिंसा के उनके विचार याद आने लगते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि गांधी आज भी जिंदा हैं अपने विचारों के लिए भले ही उन्हें नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर हत्या कर दी। अहिंसा का विरोधी है हिंसा और सभ्य समाज कभी भी हिंसा का पक्षधर हो ही नहीं सकता। साउथ अफ्रीका को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए नेल्सन मंडेला ने गांधी के सत्य अहिंसा व्रत का पालन किया था। 28 साल जेल में रहने के बावजूद नेल्सन मंडेला ने सत्य अहिंसा का साथ नहीं छोड़ा। उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध उसी तरह से अहिंसक आंदोलन किया जैसा गांधीजी भारत में किया करते थे। नाथूराम ने गांधी को गोली मारकर भले ही उनके शरीर की हत्या कर दी हो, पंचतत्व से बना गांधी का शरीर भले ही उन्हीं पंच तत्वों में विलीन हो गया हो लेकिन उनके विचारों सिद्धांतों को नहीं मार सका हत्यारा नाथूराम गोडसे। एक निहत्थे संत पर गोली चलाकर नाथूराम गोडसे ने कायरता का परिचय दिया था। सिद्धांत कहता है भयभीत और कमजोर आदमी हिंसक और आक्रामक हो जाता है। नाथूराम गोडसे चाहे जितना भी तर्क दे, जीतने भी बहाने बनाए हों लेकिन दुनिया नाथूराम गोडसे को कभी भी आदर्श नहीं मान सकती। दक्षिणी अफ्रीका में एक व्यापारी का पक्ष रखने के लिए ट्रेन की फर्स्ट क्लास बोगी में गांधी का सफर नदलवादी गोरों को पसंद भीं आया। उन दरिंदों ने गांधी को जबरन तीन से उनके सामान सहित उठाकर जबरन बाहर प्लेटाफॉर्म पर फेक दिया लेकिन गांधी को रोक नहीं सके। गांधी ने व्यापारी का ही नहीं कई मुकदमे साउथ अफ्रीका में गोरों के विरुद्ध जीते और अपना लोहा मनवा लिया। गांधी का नशावन शरीर भले मर गया हो लेकिन गांधी मरा नहीं करते। जिंदा रहते हैं अपने विचारों और वसूल के कारण। नेताजी सुभाष चंद्र बोस जब कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव जीते थे तब गांधी अपनी पसंद के व्यक्ति की हार को अपनी हार मान बैठे। नतीजन नेता जी ने तुरंत कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। कैसे नेताजी को अंग्रेजी सत्ता ने उन्हें उनके ही घर में नजरबंद रखा। कैसे वे निकलकर जर्मनी पहुंचे। वहा तानाशाह हिटलर से मिले। कहावत है शत्रु का शत्रु मित्र होता है। नेता जी ने सोचा होगा अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध युद्ध लड़ रहा हिटलर अंग्रेजों के विरुद्ध जंग में नेताजी का साथ हिटलर देगा किंतु ऐसा नहीं हुआ और नेताजी जर्मनी से जहाज द्वारा सिंगापुर पहुंचे और किस तरह आजाद हिंद फौज बनाई। अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध शुरू कर दिया। अपनी फौज को चलो दिल्ली और तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा का घोष किया। भले ही नेताजी और गांधी के विचार नहीं मिलते रहे हों। गांधी सत्य अहिंसा के पुजारी और नेताजी शत्रु के खिलाफ हिंसा को जायज मानते रहे हों लेकिन दोनो एक दूसरे का व्यक्तिगत जीवन में आदर करतेव्र। बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही थे। व्यक्ति महान अपनी सोच विचार और कर्म के कारण ही महान होते हैं। भले ही भाजपा और मोदी सहित उनके भक्त गांधी को महान न मानने का ढोंग करते हों और हत्यारे गोडसे की पूजा कर अपना आदर्श मानते हों। खुद मोदी गांधी की चाहे जितनी भी आलोचना करते हों। गांधी से नफरत करते हों लेकिन सच को झुठला पाना उनके लिए असंभव है। अभी अभी जी 20 का अधिवेशन दिल्ली में खत्म हुआ है। अपनी छवि की चिंता करने, गरीब देश का अमीर प्रधान मंत्री दिखाने के लिए दिल्ली की सड़कों पर अपनी फोटो वाली पोस्टर लगवाए हों। जिसकी उपलब्धि वे लोकसभा चुनाव में जनता को बताकर वोट मांग लें। लेकिन गांधी की उपेक्षा कर पाना उनके बूते का नहीं है। महात्मा गांधी के विचारों सत्य अहिंसा ने इतनी बड़ी लकीर खींच दी है कि मोदी लाख कोशिश करके भी उससे बड़ी लकीर खींचने को सामर्थ्य नहीं रखते। चाह कर भी मोदी अपना कद इतना ऊंचा नहीं कर सकते कि गांधी के कद की बराबरी कर सकें। वे गांधी के समक्ष हमेशा बौने ही बने रहेंगे। भले ही मोदी पानी पी पी कर गांधी को कोस लें। उन्हे अपमानित करें लेकिन कहा गया है न जिंदा हाथी लाख का मरने पर उसका मूल्य सवा लाख हो जाता है। वही हाल महात्मा गांधी का है। मोदी को विश्व समुदाय के सामने गांधी की मूर्ति के समक्ष सिर झुकाना ही पड़ेगा। जैसा उन्होंने जी 20 का भव्य आयोजन के समय उनके साथ गांधीजी की समाधि के सामने नतमस्तक होना ही पड़ा। गांधी को सिर झुकाकर सम्मान देना ही पड़ा। आज दुनिया का शायद ही कोई ऐसा देश हो जहां गांधी की अदम कद मूर्ति न बनी हो। अपनी अमेरिकी यात्रा के समय वहां स्थापित गांधी की मूर्ति के सम्मुख नतमस्तक होने को बाध्य होना पड़ा। वही हाल मोदी के जापान पहुंचने पर बाध्य होना पड़ा। जहां महात्मा गांधी की मूर्ति के अनावरण के अवसर पर सिर झुकाने को बाध्य होना पड़ा। झूठ की बुनियाद पर आलीशान, गगन चुंबी इमारत तामीर नहीं होती। ताजमहल, लालकिला, बुर्ज खलीफा, पीसा की मीनार या कुतुब मीनार खड़ी करने के लिए सत्य की ईंट पत्थर और गारे के साथ साथ स्टील की जरूरत होती है। झूठे अरबों के विज्ञापनों से प्रसिद्धि तो पाई जा सकती है। झूठ से केदारनाथ मंदिर में लगी सोने के अरबों रूपए मूल्य के पत्र पीतल के हो सकते हैं। झूठ के आधार पर विश्वगुरू नहीं बना का सकता। विश्वगुरू बनने के लिए सिद्धांत की सत्यता अपरिहार्य होती है। सत्य की कसौटी पर कसना पड़ता है। सत्य बनना पड़ता है। गांधी बनना पड़ता है। ज्ञानी बनना पड़ता है। विश्व को सत्य का ज्ञान देना पड़ता है। गांधी की भांति सदा जीवन उच्च विचार रखना पड़ता है। गांधी की हत्या नहीं करनी पड़ती और नहीं गांधी के हत्यारे को आदर्श बनाना पड़ता है।सोना बिना अग्नि और कसौटी पर कसे सौ प्रतिशत शुद्धता की गारंटी नहीं दे सकता। सत्य ही प्रेम का उद्दीपन है और प्रेम में ही वह शक्ति है जो विश्व में शांति, विश्वबंधुत्व का आदर्श निभा सकता है। झूठ से सच्ची मैत्री भी नहीं होती तो विश्वगुरू कोई कैसे बन सकता है। गांधी के सद्विचार आज दुनिया का मार्गदर्शन कर रहे हैं। गांधी बनकर ही विचारों सिद्धांतों में जिंदा बना रहा जा सकता है।