
स्वतंत्र लेखक- इंद्र यादव
उत्तर प्रदेश के आगरा में 2015 में एक बेटे ने मकान बेचने से मना करने पर अपनी मां की फावड़े से हत्या कर दी थी। थाना एत्माद्दोला के प्रकाश नगर में विमला देवी की चीखें सुन पड़ोसी पहुंचे, तो उनका शव खून से लथपथ पड़ा था और बेटा राहुल, नशे में धुत, फावड़ा लिए खड़ा था। एडीजे-2 पुष्कर उपाध्याय की अदालत ने पोस्टमॉर्टम, वैज्ञानिक साक्ष्य और 9 गवाहों के बयानों के आधार पर राहुल को दोषी ठहराया। जज ने कहा, “मां की हत्या कर आरोपी ने मानवता को कलंकित किया।” राहुल को आजीवन कारावास और ₹50,000 जुर्माने की सजा सुनाई गई! राहुल, एक नशे का आदी, ने मकान बेचने से मना करने पर अपनी मां की हत्या कर दी। उसने मां को कमरे में बंद कर कुंडी लगा दी और पुलिस के आने पर भी दरवाजा नहीं खोला। दरवाजा तोड़ने पर मां की लाश मिट्टी में दबी मिली, केवल हाथ बाहर दिखाई दे रहा था। आरोप है कि राहुल ने नल के हत्थे और फावड़े से हत्या की। पुलिस ने उसे मौके से गिरफ्तार किया और फावड़ा, नल का हत्था, चूड़ी के टुकड़े, खून सनी मिट्टी व कपड़े बरामद किए। विवेचक ने 22 अप्रैल 2015 को आरोप पत्र दाखिल किया। मां, जिसके आंचल में हर दुख की दवा छिपी होती है, जिसकी गोद में दुनिया की हर मुश्किल आसान लगती है, उसी मां की हत्या का गुनहगार उसका अपना बेटा बन जाए, तो इससे बड़ा कलंक और क्या हो सकता है? आगरा की उस दर्दनाक घटना ने, जहां एक बेटे ने मकान बेचने से इनकार करने पर अपनी मां को फावड़े से काट डाला, न केवल मानवता को शर्मसार किया है, बल्कि समाज और सरकार की उस निष्क्रियता को भी उजागर किया है, जो ऐसी त्रासदियों को जन्म देती है। विमला देवी की चीखें, जो प्रकाश नगर की गलियों में गूंजी थीं, सिर्फ एक मां की आखिरी सांसों की पुकार नहीं थीं। वे उस समाज की चीख थीं, जो नशे की लत, पारिवारिक विघटन और नैतिक पतन के दलदल में डूबता जा रहा है। राहुल, जिसने अपनी मां की हत्या की, वह सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि उस सामाजिक व्यवस्था का चेहरा है, जो नशे की गिरफ्त में युवाओं को बर्बाद होने दे रही है। मां की ममता, जो बिना शर्त प्यार और त्याग की मिसाल है, आज नशे, लालच और स्वार्थ की भेंट चढ़ रही है।यह कोई पहली घटना नहीं है, जहां मां की ममता को इस तरह कुचला गया हो। हर दिन देश के कोने-कोने में माता-पिताओं के साथ दुर्व्यवहार, मारपीट और हत्या की खबरें सामने आती हैं। लेकिन समाज का रवैया क्या है? हम इन खबरों को अखबार के पन्नों पर पढ़कर, टीवी पर देखकर, या सोशल मीडिया पर दो मिनट का शोक जताकर भूल जाते हैं। पड़ोसी, रिश्तेदार, और समुदाय, जो कभी परिवार का हिस्सा हुआ करते थे, आज सिर्फ मूकदर्शक बनकर रह गए हैं। राहुल की पत्नी और बच्चे उसे छोड़कर चले गए थे, लेकिन क्या समाज ने कभी उस परिवार को जोड़ने की कोशिश की? क्या किसी ने राहुल को नशे के अंधेरे से निकालने का प्रयास किया? जवाब है—नहीं। भारत सरकार की नाकामी समाज में नशे का जहर और बिखरते परिवार का जिम्मेदार है। राहुल की कहानी सिर्फ उसकी नशे की लत की कहानी नहीं है। यह उस व्यवस्था की नाकामी की कहानी है, जो नशे के कारोबार को पनपने दे रही है। देश में नशे की तस्करी, ड्रग्स की आसान उपलब्धता और पुनर्वास केंद्रों की कमी ने युवाओं को अपराध की राह पर धकेल दिया है। सरकार नशामुक्ति के लिए बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि नशे की लत में फंसे युवाओं के लिए न तो पर्याप्त काउंसलिंग है, न ही पुनर्वास की व्यवस्था। विमला देवी की हत्या सिर्फ राहुल का अपराध नहीं, बल्कि उस सिस्टम का भी अपराध है, जो नशे के खिलाफ ठोस कदम उठाने में नाकाम रहा। परिवारों के बिखरने की कहानी भी कम दर्दनाक नहीं है। राहुल की पत्नी और बच्चे उसे छोड़कर चले गए, लेकिन क्या समाज या सरकार ने उनके लिए कोई सहारा बनाया? एक मां, जिसने अपने बेटे को जन्म दिया, उसे पाला-पोसा, वह अपने ही घर में असुरक्षित थी। यह सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि उस सामाजिक और सरकारी ढांचे की विफलता है, जो परिवारों को टूटने से बचाने में असमर्थ है। मां की ममता का कोई मोल नहीं। वह अपने बच्चों के लिए हर दुख सहती है, हर सपने को अपने आंचल में समेटती है। लेकिन जब वही बच्चा उस ममता को खून से रंग दे, तो समाज और सरकार की चुप्पी असहनीय हो जाती है। अदालत ने राहुल को आजीवन कारावास की सजा सुनाई, लेकिन क्या यह सजा विमला देवी की जान वापस ला सकती है। क्या यह सजा उन हजारों माताओं को न्याय दिला सकती है, जो अपने बच्चों की हिंसा का शिकार बन रही हैं। यह समय है कि समाज और सरकार अपनी जिम्मेदारी को समझें। नशे की लत को खत्म करने के लिए सख्त कानून, प्रभावी पुनर्वास केंद्र और जागरूकता अभियान जरूरी हैं। परिवारों को जोड़ने के लिए सामुदायिक प्रयास और काउंसलिंग की जरूरत है। माता-पिता के साथ दुर्व्यवहार को रोकने के लिए कड़े कानून और उनकी त्वरित लागू करने की आवश्यकता है। मां की ममता को सिर्फ कविताओं और गीतों में महिमामंडन करने से काम नहीं चलेगा। इसे बचाने के लिए समाज को अपनी संवेदनशीलता और सरकार को अपनी जवाबदेही दिखानी होगी।विमला देवी की चीखें अब खामोश हैं, लेकिन उनकी त्रासदी हमें चेतावनी दे रही है। अगर हम अब भी नहीं जागे, तो मां की ममता का यह कत्ल बार-बार होगा, और हमारा समाज इस दाग को कभी नहीं धो पाएगा। आइए, इस दर्द को सुनें, इस जख्म को समझें, और एक ऐसे समाज का निर्माण करें, जहां मां की ममता सुरक्षित रहे, जहां कोई बेटा अपनी मां का कातिल न बने।




