Friday, November 22, 2024
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चुनी दिल्ली सरकार को काम करने नहीं देना चाहती केंद्र सरकार!

जीतेन्द्र पाण्डेय, पत्रकार, लेखक व स्तंभकार
केंद्र सरकार के पूर्व कानून मंत्री जब सुप्रीम कोर्ट को पटरी पर नहीं ले आ पाए थे तब उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जनता द्वारा चुने नहीं जाते और हम जनता द्वारा चुनी कर आने से सुपर पॉवर रखते हैं। हमें सुप्रीम कोर्ट को सुपर सीड करने का पूर्ण अधिकार है। उन्होंने कोलेजियम व्यवस्था जो कि अभी तक जजों की नियुक्ति प्रमोशन के लिए सर्वस्कालिक सुंदर और उत्तम व्यवस्था चली आ रही है, को गैरकानूनी और असंवैधानिक बताते हुए कहा करते थे कि कोलेजियम व्यवस्था का संविधान में जिक्र नहीं है। चलिए मान लेते हैं लेकिन संविधान कहां कहता है कि लोकतंत्र के चारों स्तंभों पर केंद्र सरकार कुंडली मारकर बैठ जाए और उसका वजूद खत्म करने की कोशिश करे?यद्यपि इसके पूर्व भी सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच जिच होती रही है लेकिन इतनी घटिया स्तर पर कभी भी नहीं रही। जब जब देश में सरकार पर कोई तानाशाह कब्जा कर लेता है तब तब वह लोकतांत्रिक ढांचे को तहस नहस करने की पुरजोर कोशिश करता है। जैसा तानाशाह इंदिरागंधी कर चुकी हैं। उन्होंने भी कोर्ट को नहीं माना था। कोर्ट के आदेश को रद्दी की टोकरी में डालकर संविधान में संशोधन और अध्यादेश का सहारा लिया था आज मोदी सरकार भी वही कर रही है। मीडिया पर पूरा कब्जा कर के उसे सरकारी भोंपू बना दिया है जो केवल सरकार का गुणगान करने में व्यस्त रहता है। चाटुकारिता की मिसाल पूरी दुनिया में ऐसी कहीं भी नहीं मिलेगी। मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा गया है लेकिन आज सारे मीडिया इलेक्ट्रोनिक चैनल्स और बड़े घराने की प्रिंट मीडिया सरकार की चापलूसी करने में लगी है। सरकार को आईना दिखाने वाले एंकरों को बाहर का रास्ता दिखाने के लिए अपने मित्र साथी पूंजीपतियों द्वारा खरीदवा कर एकल सत्ता स्थापित करने में लगी है। इंदिरा गांधी के चुनाव को जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अवैध घोषित किया था तो उन्होंने इमरजेंसी लागू कर दिया था। संविधान द्वारा मिले जनता को मौलिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया था। जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से इंदिरा सरकार घबरा गई थी। मीडिया उनकी बात जनता तक पहुंचा नहीं पाए इसलिए प्रेस सेंसरशिप लागू कर दिया था जिस कारण जनता के मन की बात सरकार तक पहुंच नहीं पा रही थी। प्रेस पर कंट्रोल के कारण ही इंदिरा गांधी, संजय गांधी सहित उत्तर भारत से कांग्रेस का पूर्ण सफाया हो गया था। आज भी तानाशाही है।अघोषित इमरजेंसी लागू है। आज भी लोकतंत्र के सभी स्तंभों पर यहां तक कि सुप्रीमकोर्ट के आदेशों की धज्जियां उड़ाने से पीछे नहीं है सरकार। सुप्रीमकोर्ट के रिटायर न्यायाधीशों को जांच कमेटी द्वारा परेशान करने की धमकी खुलेआम दी जा चुकी है। न्यायाधीशों से गैरकानूनी गैर संवैधानिक फैसले कराए और ऐसे जजों को प्रमोशन और मलाईदार पद दिए जा रहे जिसका साफ संदेश है कि हमारे पक्ष और विपक्षियों के विरोध में फैसला दो,प्रमोशन और मलाईदार पद लो।
जिस केंद्र सरकार को जनता द्वारा चुनी सरकार बताया जाता रहा है वही सरकार दिल्ली की दो करोड़ जनता द्वारा चुनी आम आदमी पार्टी की सरकार को दिल्ली की जनता के हित में काम नहीं करने दे रही। तीन तीन बार बहुमत से चुनी आप सरकार को काम करने नहीं दे रही। माध्यम एल जी यानी दिल्ली के उपराज्यपाल विनय सक्सेना द्वारा बाधित कराया जा रहा। दिल्ली की आप सरकार और केंद्र की भाजपा सरकार में तकरार पावर को लेकर है। दिल्ली सरकार के मुखिया अरविंद केजरीवाल चाहते हैं कि उनके संवैधानिक अधिकार उन्हें मिलें लेकिन केंद्र की भाजपा सरकार दिल्ली सरकार को पंगु बनाकर जनहित में काम करने नहीं देना चाहती। यद्यपि विवाद बहुत पहले दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचा था तब दिल्ली हाईकोर्ट ने एल जी के पक्ष में फैसला लिखकर अन्याय किया था और दिल्ली की चुनी सरकार को पंगु बनाने में वह केंद्र की तानाशाही सरकार के पक्ष में खड़ी दिखी। इसके बाद दिल्ली सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई। वहां दो जजों के अलग अलग विचार के बाद तीन जजों की बेंच से होता हुआ मामला पांच जजों की संविधान पीठ को सौंपा गया। जिसने निर्णय दिया कि 239 ए स्पष्ट कर चुका है अधिकारों का बंटवारा जिसमें केंद्र सरकार के अधीन पुलिस, पब्लिक ऑर्डर और जमीनी मामले रहेंगे। चूंकि सरकार जनता द्वारा चुनी बहुमत की सरकार है और दिल्ली सरकार की नीतियों, आदेशों का पालन प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा कराया जाता है अतः प्रशासनिक मामले दिल्ली की सरकार के अधीन रहेंगे लेकिन केंद्र सरकार ने इसे अपना अपमान माना और सुप्रीमकोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की बात करती रही।एल जी खुलेआम कहते रहे कि वे सुप्रीमकोर्ट का कोई आदेश नहीं मानेंगे। वे केवल केंद्र सरकार के एजेंट बने रहेंगे यानी साफ है कि एलजी दिल्ली की चुनी सरकार को जनहित के कार्य करने नहीं देंगे। अडंगा डालते रहेंगे। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट का ग्रीष्मावकाश शुरू हुआ और जैसे ही सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे शाम पांच बजे बंद हुए रात के साथ बजे केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर दिया जिसे नाम दिया एनसीसीए। जिसके अनुसार एलजी चुनी सरकार के विकास कार्यों को करने नहीं देंगे। सुप्रीम कोर्ट का आदेश होने पर केजरीवाल ने डी ई आर सी के चेयर मैन पोस्ट पर मध्यप्रदेश के रिटायर जज की नियुक्ति का प्रस्ताव पांच माह पूर्व किया था लेकिन एलजी ने कोई निर्णय नहीं लिया। दरअसल केंद्र सरकार के मुखिया मोदी को केजरीवाल की जनता में बनी जनहित में कार्य करने और ईमानदार होने की छवि बनी हुई है। दूसरे लाख कोशिशों के बावजूद आप की पंजाब में सरकार बन जाने से क्षुब्ध केंद्र आप की दिल्ली सरकार को शिक्षा और चिकित्सा क्षेत्र में उन्नत करने से रोकने के लिए दिल्ली सरकार के शिक्षा और स्वास्थ्य मंत्री को साजिशन जेल भेजने का काम पहले ही कर के अपना लक्ष्य निर्धारित कर लिया था कि दिल्ली की तीन तीन बार चुनी बहुमत की आप सरकार को जनहित के कार्य करके और अधिक पॉपुलर होने नहीं देना है। और इसीलिए जब से केंद्र में भाजपा सरकार बनी है तभी से मार्ग में अवरोध बिछाना बढ़ गया है। अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की जनता को सबसे पहले बिजली और पानी मुफ्त दिया जिसकी आलोचना कांग्रेस और बीजेपी करने लगी। कहां से आएगा धन? लेकिन दिल्ली सरकार अपने वादे से पीछे हटी नहीं। यही नहीं दिल्ली शिक्षा की जर्जर व्यवस्था हो या अस्पतालों को हाईटेक बनाकर बता दिया कि इच्छाशक्ति और ईमानदारी हो तो चुनावी वादे लोलीपॉप नहीं होते। उन्हें पूरा किया जा सकता है। इस बात को अरविंद केजरीवाल ने कर के दिखाया। इससे जलन हर उस सरकार को होगी ही जो चुनाव के समय किए गए वादे को चुनाव बाद रद्दी की टोकरी में डाल दिया जाता है। आप सरकार चाहे दिल्ली में हो या पंजाब में उसने अपने हर वादे पूरा करने का ईमानदार प्रयास किया है। एक तरफ तो सारे विधायक सांसद दो चार दस पेंशन ले रहे हैं लेकिन आपकी पंजाब सरकार ने वहां केवल एक पेंशन लेने का बिल विधानसभा से पारित करा कर बता दिया कि जनता को उसका हक देना हो तो अपने फिजुलपन को खत्म करना होगा। दिल्ली सरकार ने न्याय और अधिकार पाने की सुप्रीम कोर्ट में दुहाई दी तब कोर्ट की संविधान पीठ ने अपने फैसले में लिखा, 239 से स्पष्ट है दिल्ली की केंद्र शासित सरकार के अधिकार। फैसले में साफ साफ लिखा था कि केंद्र और दिल्ली सरकार के अधिकार कौन कौन से हैं। बिना अधिकार कोई भी सरकार अपनी नीतियों आदेशों निर्देशों का पालन कैसे कराएगी जब प्रशासन उसके हाथ में नहीं हो। इतना ही नहीं केंद्र की भाजपा सरकार के बतौर एजेंट और एजेंडे पर कार्य कर रहे एलजी को डांट भी बड़े जोर की पिलाई थी कि आप दिल्ली सरकार को बेवकूफ बनाकर नहीं रख सकते।इसे केंद्र की भाजपा सरकार ने अपनी बेइज्जती मान ली और रीट पेटिशन दाखिल करने की बात कहती रही। बकौल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में होने वाले समर वैकेशन का इंतजार करती रही और जैसे ही छुट्टियों के लिए सुप्रीम कोर्ट के गेट बंद किए गए शाम पांच बजे तो दस बजे केंद्र सरकार दिल्ली की चुनी सरकार पर नकेल कसने के लिए अध्यादेश ला दिया ताकि छुट्टी के कारण दिल्ली सरकार सुप्रीम कोर्ट में गुहार नहीं लगा सके ।केंद्र सरकार हर कार्य केवल रात में ही करती है कैसे नोट बंदी का गैरकानूनी निर्णय। अध्यादेश के अनुसार कोई भी निर्णय दिल्ली के मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और गृह सचिव ही मिलकर निर्णय ले सकेंगे। अध्यादेश इस तरह बनाया गया है ताकि केंद्र का पलड़ा भारी रहे क्योंकि सचिव केंद्र सरकार के अधीन ही काम करते हैं। उनकी मजाल क्या जो केंद्र सरकार के विरुद्ध हों। केजरीवाल ने सीधे सीधे केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि केंद्र सुप्रीम कोर्ट की छुट्टियों का इंतजार करता रहा और जैसे ही गेट बंद हुआ पांच घंटे में अध्यादेश जारी कर दिया। स्पष्ट है कि सुप्रीमकोर्ट की अवमानना हुई है जिसपर केंद्र के खिलाफ कोर्ट की अवमानना केस सुनिश्चित है। केजरीवाल ने पूछा इस अध्यादेश की अवधि कितनी होगी? जब सुप्रीम कोर्ट खुलेगा तब यह अध्यादेश असंवैधानिक घोषित कर दिया जाएगा। कन्देम ऑफ कोर्ट चलेगा अलग।सच तो यह है कि केंद्र की भाजपा सरकार न संविधान को मानती है न सुप्रीमकोर्ट को।तानाशाही सरकार यही करती है। इसके बाद आप और भाजपा के बीच तकरार और आरोप प्रत्यारोप की झड़ी लग गई है।
केंद्र सरकार अध्यादेश लाकर दिल्ली की दो करोड़ जनता को अपना विरोधी बना दी है। दिल्ली पढ़े लिखे लोगों का महानगर है।वहां के लोग सब कुछ देख समझ रहे हैं। वह यह भी देख रही है कि दिल्ली के लोगों की सुख सुविधा के लिए केजरीवाल सरकार बहुत कुछ कर चुकी है और आगे भी करती रहेगी लेकिन केंद्र की बीजेपी सरकार खलनायक बनकर दिल्ली के विकास में रोड डाल रही हैं। इससे तो अब दिल्ली में लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हार का मुख देखने को बाध्य होना पड़ेगा। भाजपा की केंद्र सरकार को समझना होगा कि हमेशा उसी की सरकार नहीं बनी रहेगी। अटल जी के शब्दों में सरकारें आती हैं जाती हैं लेकिन जनता वही बनी रहती है। कल अगर किसी भी कारण से बैलेट पेपर से चुनाव होने लगें तो बीजेपी का हश्र क्या होगा देश का बच्चा बच्चा जानता है।

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