पुणे। दिवंगत बीजेपी सांसद गिरीश बापट के निधन के बाद से पुणे लोकसभा की सीट खाली है। लेकिन नौ महीनों बाद भी निर्वाचन आयोग ने पुणे लोकसभा की खाली सीट पर उपचुनाव नहीं करवाया। जिसके चलते पुणे के एक मतदाता ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की और चुनाव आयोग के फैसले को मनमाना बताया। पिछले हफ्ते बॉम्बे हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग के फैसले को रद्द कर दिया और पुणे लोकसभा उपचुनाव जल्द से जल्द कराने का आदेश दिया। इसी साल २९ मार्च को वरिष्ठ नेता गिरीश बापट के निधन के बाद से पुणे लोकसभा क्षेत्र का कोई प्रतिनिधि संसद में नहीं है। चूंकि बापट के निधन के बाद से वर्तमान लोकसभा का टर्म पूरा होने में १५ महीने का समय बचा था, इसके बावजूद आयोग ने उपचुनाव नहीं कराने का फैसला लिया।
चुनाव आयोग ने दिया ये तर्क
निर्वाचन आयोग का कहना है कि यदि पुणे उपचुनाव होते भी हैं, तो जीतकर आने वाले उम्मीदवार के पास सांसद के रूप में मुश्किल से कुछ महीनो का कार्यकाल बचेगा। साथ ही इससे २०२४ के लोकसभा चुनाव की तैयारियाँ भी प्रभावित होंगी। इसलिए अब उपचुनाव कराने का कोई फायदा नहीं है। इसी दलील के साथ चुनाव आयोग ने अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है। आयोग ने हाईकोर्ट के तुरंत उपचुनाव कराने के आदेश पर रोक लगाने की मांग की है। इस अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट में जनवरी में सुनवाई होने की संभावना है।
हाईकोर्ट ने फटकारा
याचिका पर सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को फटकार लगाई। उपचुनाव के लिए कोई कदम नहीं उठाने पर कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा था कि सांसद के निधन के बाद इतने महीनों तक सीट खाली रखना अनुचित है, जितनी जल्दी हो सके उपचुनाव कराया जाए।
याचिकाकर्ता ने क्या कहा?
पुणे निवासी याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि नियम के अनुसार छह महीने के भीतर उपचुनाव के माध्यम से रिक्त सीटों को भरा जाना चाहिए। इसलिए पुणे उपचुनाव इस साल २८ सितंबर तक हो जाना चाहिए था। याचिकाकर्ता ने बताया कि केंद्र सरकार भी पुणे उपचुनाव नहीं कराने पर सहमत थी, इसलिए आयोग ने उपचुनाव नहीं कराने का फैसला किया, जो कि सही नहीं है। याचिकाकर्ता ने पहले यह मुद्दा चुनाव आयोग के सामने उठाया था, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ, जिसके बाद उन्होंने कोर्ट का रुख किया। याचिकाकर्ता की तरफ से तर्क दिया गया कि चूंकि बीजेपी नेता बापट के निधन के बाद १५ महीने का कार्यकाल बचा था, जो कि सांसद के कुल पांच वर्ष के कार्यकाल का २५ प्रतिशत है, ऐसे में उपचुनाव कराया जा सकता था। चुनाव आयोग ने मार्च से अब तक कई राज्यों के विधानसभा चुनाव व खाली सीटों पर उपचुनाव करवाए। लेकिन पुणे लोकसभा में उपचुनाव नहीं करावाया गया।