
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को स्पष्ट किया कि किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी के समय या तुरंत बाद उसे गिरफ्तारी का आधार उसकी समझ में आने वाली भाषा में लिखित रूप में बताया जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह जानकारी मजिस्ट्रेट के समक्ष रिमांड के लिए पेश करने से कम से कम दो घंटे पहले दी जानी चाहिए, ताकि वकील पर्याप्त समय से बचाव की तैयारी कर सकें। सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि गिरफ्तारी के आधार को लिखित रूप में न बताना संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन होगा और अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का हनन माना जाएगा। ऐसे मामलों में गिरफ्तारी अवैध मानी जाएगी और गिरफ्तार व्यक्ति को रिहा करने का अधिकार मिलेगा। पीठ ने कहा कि गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी का आधार बताने का संवैधानिक आदेश सभी अपराधों में अनिवार्य है। यदि अधिकारी गिरफ्तारी के समय या तुरंत बाद लिखित रूप में नहीं दे पाते हैं, तो इसे मौखिक रूप से बताया जा सकता है, लेकिन उपरोक्त समय सीमा का पालन आवश्यक है। दो घंटे की अवधि यह सुनिश्चित करती है कि वकील मामले की समीक्षा कर सके और रिमांड में उचित बचाव कर सके। फैसला जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने सुनाया। पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 22(1) के तहत गिरफ्तारी के आधार की जानकारी देना केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि मौलिक अधिकारों की संवैधानिक सुरक्षा है। इसका उद्देश्य गिरफ्तार व्यक्ति को अपना बचाव करने के लिए तैयार करना है। यह निर्णय जुलाई 2024 में मुंबई में हुए हिट-एंड-रन मामले से संबंधित याचिका पर आया। याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जिसमें गिरफ्तारी में प्रक्रियात्मक खामियों के बावजूद गिरफ्तारी अवैध घोषित नहीं की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्पष्ट किया कि प्रत्येक गिरफ्तारी में उक्त संवैधानिक आदेश का पालन अनिवार्य है।



