Saturday, February 22, 2025
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वरली में श्रीमद् भागवत कथा का समापन: संत सेवा और हरिनाम का हुआ गुणगान

मुंबई। वरली स्थित सेंचुरी मिल कामगार वसाहत में हरिहर संत सेवा मंडल के तत्वाधान में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के सात दिवसीय आयोजन का भव्य समापन हुआ। इस अंतिम दिवस पर परम पूज्य महामंडलेश्वर 1008 श्री श्री डॉ. स्वामी विनय स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज ने अपने आशीर्वचन में हरिनाम की महिमा पर प्रकाश डाला।
स्वामी जी महाराज ने अपने प्रवचन में कहा पढ़ने की हद समझ है, समझ की हद ज्ञान, ज्ञान की हद हरिनाम है।
उन्होंने यह स्पष्ट किया कि मनुष्य चाहे कितने भी ग्रंथों का अध्ययन कर ले, कितना भी ज्ञान अर्जित कर ले, लेकिन अंततः हरिनाम ही उसकी अंतिम और वास्तविक उपलब्धि होती है। इसलिए कलियुग में मनुष्य को केवल हरिनाम का आश्रय लेना चाहिए, जिससे उसका जीवन कृतार्थ हो सके।
इस अवसर पर प्रयागराज से पधारे वैष्णवाचार्य स्वामी अप्रमेय प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने भक्तों को श्रीमद् भागवत महापुराण की कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि जीवन में जो कुछ भी प्राप्त करना है-चाहे लौकिक हो या पारलौकिक, वह केवल संत सेवा से ही संभव है। उन्होंने संत सेवा को कामधेनु के समान बताते हुए कहा कि यदि इस धरती पर साक्षात कोई कल्पवृक्ष है, तो वह संत ही हैं।
संत सेवा का महत्व और भक्ति मार्ग पर बल
स्वामी जी ने संत सेवा को जीवन का सर्वोत्तम कार्य बताते हुए कहा कि मनुष्य को बिना समय गंवाए संतों की संगति करनी चाहिए। संतों की सेवा से ही मानव जीवन को सच्चा उद्देश्य मिलता है और आध्यात्मिक उन्नति होती है। उन्होंने कहा कि संत सेवा करने से न केवल सांसारिक सफलता मिलती है, बल्कि आत्मिक शांति भी प्राप्त होती है।
अभंगों के गायन से मंत्रमुग्ध हुए श्रद्धालु
महाराज श्री ने इस पावन अवसर पर संत तुकाराम जी द्वारा रचित अभंगों का गायन किया, जिससे समस्त श्रोता भाव-विभोर हो गए। उनके मधुर भजनों ने भक्तों को अध्यात्म की गहराइयों में डुबो दिया और वातावरण भक्ति रस में सराबोर हो गया।
कार्यक्रम में श्रद्धालुओं की अपार श्रद्धा
कार्यक्रम के अंतिम दिन भारी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। सभी भक्तों ने संतों के प्रवचनों को सुनकर आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त की और हरिनाम संकीर्तन में भाग लिया। श्रीमद् भागवत कथा के इस सात दिवसीय आयोजन ने भक्तों के हृदय में आध्यात्मिक चेतना जागृत की। संतों के दिव्य उपदेशों ने यह संदेश दिया कि मनुष्य को अपने जीवन में हरिनाम और संत सेवा को अपनाना चाहिए, जिससे उसे सच्ची शांति और मोक्ष की प्राप्ति हो सके।

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