स्मरणीय है कि आपदाओं के लिए पहले से ही पीएम राहत कोष है। अब मोदीजी ने पीएम केयर फंड की स्थापना की। साथ में सार्वजनिक अपील भी अधिक से अधिक धन जनता डोनेट करे। जनता ने हाथोहाथ लिया और यथाशक्ति पीएम केयर फंड में दान भी दिया। अहम बात यह कि अब कहा जा रहा है कि पीएम केयर फंड प्राइवेट है। इसमें सार्वजनिक संस्थानों का पैसा नहीं लगा है जिससे इसकी कैग जांच नहीं कर सकता। आरटीआई नहीं लगाई जा सकती। प्रधानमंत्री का पद नाम सार्वजनिक होता है व्यक्तिगत नहीं। अगर मोदी केयर फंड होता तो प्राइवेट कहा जा सकता है। कोबीड काल में इस फंड की स्थापना की गई। सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया कि इसमें सार्वजनिक संस्थानों अर्थात सरकारी संस्थानों का पैसा नहीं लगा है। खुद सरकार ने हाईकोर्ट में हलफनामा देकर भी यही बात कही है। जिसके पीएम खुद चेयर पर्सन हैं। इनके अलावा गृहमंत्री अमित शाह, वित्त मंत्री सीतारमन जैसे मंत्री इसके ट्रस्टी हैं। अब सूचना आई है कि टाटा ग्रुप के रत्न टाटा को भी ट्रस्टी बनाया गया है। सरकार ने अपने सभी विभागों के कर्मचारियों के वेतन से कटौती कर पीएम केयर फंड में पैसा जमा कराया है। जहां तक यह कहना कि सरकारी संस्थानों का एक भी पैसा जमा नहीं किया गया है लेकिन यह गलत है।चंद सरकारी कंपनियों के नाम जिन्होंने पीएम केयर फंड में पैसा जमा किया है। उसकी सूची बहुत लंबी है लेकिन चंद नाम जनता को जानना चाहिए जिन सरकारी संस्थानों ने करोड़ों रुपए पीएम केयर फंड में डोनेट किए हैं। स्टोक एक्सचेंज की सूचना के अनुसार ओएनजीसी ने 370 करोड़ रुपए, एनटीपीसी ने 330 करोड़ रुपए, आईओसीएल ने 256 करोड़ रुपए, पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन ने 220 करोड़ रुपए, आरईसी लिमिटेड ने 200 करोड़, भारत पेट्रोलियम ने 125 करोड़ और न एमडी ने भी 125 करोड़ रुपए पीएम केयर फंड में जमा कराए हैं। इनके अलावा पावर ग्रिड, गेल जैसी सार्वजनिक अनेक संस्थानों ने कथित रूप से 2913.6 करोड़ जमा किए हैं। इसके अलावा सरकारी कर्मचारियों के वेतन से कटौती द्वारा भी पैसे जमा कराए गए हैं। जनता ने जो धन डोनेट किए वह अलग है। कुल मिलाकर चार हजार करोड़ के ऊपर ही पीएम केयर फंड में जमा कराए गए हैं। जब तमाम सरकारी संस्थानों ने पैसे डोनेट किए हैं तो फिर पीएम केयर फंड सरकारी नियंत्रण में क्यों नहीं है? उस धन का कौन से मद पर कितना खर्च किया गया है। सबका ब्योरा जनता को जानने का अधिकार है।