
अंजनी सक्सेना
नेपाल की राजधानी काठमांडू के पूर्वी भाग में बागमती नदी के किनारे पर देवाधिदेव महादेव पंचमुखी स्वरूप में पशुपतिनाथ के रुप में विराजमान है। पशुपतिनाथ मंदिर में यूं तो पूरे साल श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, मगर श्रावण के महीने में तो मंदिर में भीड़ का नजारा देखने लायक होता है। वैसे भी मान्यता है कि सोमवार को यहां दूध-जल चढ़ाने वाले भक्त को भोले बाबा कभी खाली हाथ नहीं लौटाते। महाशिवरात्रि तथा सावन माह में यहां हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं।
पुराणों एवं धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस तपोभूमि के प्रति आकर्षित होकर भगवान शंकर कैलाश छोड़कर यहां आए और तीन सींग वाले मृग (हिरण)का रुप लेकर रहने लगे। शिव को कैलाश में न देखकर विष्णु और ब्रह्मा उन्हें खोजते हुए यहां पहुंचे। मृग को देखकर ब्रह्मा ने योगविद्या से उन्हें पहचान लिया और उसका सींग पकड़ने की कोशिश की। इस प्रयास में सींग के तीन टुकड़े हो गए। सींग का बड़ा हिस्सा जहां गिरा, वहीं पशुपति नाथ मंदिर बना है। कहा जाता है कि शिव की इच्छा के अनुसार भगवान विष्णु ने बागमती नदी के किनारे ऊंचे टीले पर शिव को पशु योनि से मुक्ति दिलाकर शिवलिंग के रूप में स्थापना की जो पशुपति के रूप में विख्यात हुआ। देवाधिदेव भगवान शंकर यहां मृग बनकर पशु रूप में रहे, इसलिए इस क्षेत्र को पशुपति क्षेत्र कहा गया और शिव की पूजा पशुपति रूप में होने लगी। एक कथा यह भी है कि महाभारत युद्ध के बाद भगवान शिव पांडवों से अप्रसन्न थे। मगवान शंकर की प्रसन्नता एवं आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए पांडव उनके दर्शनों के लिए हिमालय पहुंचे। भगवान शिव उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए उन्होंने भैंसे का रुप धारण कर लिया। पांडव उन्हें भैंसे के रूप में भी पहचान गए। भीम ने भैंसे को पकड़ना चाहा तो उनके हाथ में पीठ ही आई जो केदारनाथ में पूजित हुई। शेष शरीर पशुपतिनाथ के रुप में नेपाल में प्रकट हुआ।
पशुपतिनाथ मंदिर में भगवान शिव का एक विशाल पंचमुखी लिंग है। इस लिंग के चार मुख चारों दिशाओं में हैं, और पांचवां मुख ऊपर की ओर है, जो अदृश्य है। इस शिवलिंग के चार मुख पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशाओं की ओर हैं। पांचवां मुख ऊपर की ओर है, जो अदृश्य है। मान्यताओं के अनुसार इस शिवलिंग का प्रत्येक मुख भगवान शिव के अलग-अलग पहलुओं का प्रतिनिधित्व करता है, जैसे कि सद्योजात, वामदेव, तत्पुरुष, अघोर और ईशान। पांचवे मुख को ईशान कहा जाता है, यह ऊपर की ओर है और आमतौर पर भक्तों को दिखाई नहीं देता है।
नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में नंदी की सबसे बड़ी प्रतिमा है। मंदिर का मौजूदा स्वरूप करीब चार सौ साल पुराना है। तत्कालीन राजा शिव सिंह मल्ल की पत्नी गंगा देवी ने मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था। सन् 1640 में नेपाल नरेश प्रताप मल्ल ने पशुपतिनाथ मंदिर परिसर में अनेक छोटे-छोटे मंदिरों का निर्माण कराया। पहले यह मंदिर लकड़ी का बना हुआ था। लकड़ी के बने बहुत बड़े अंश को दीमकों के क्षतिग्रस्त कर दिए जाने के कारण 1962 में व्यापक स्तर पर मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ। पशुपतिनाथ मंदिर के संस्थापकों की बीसवीं पीढ़ी के काठमांडू शासक धर्मदेव ने शिवलिंग के पश्चिमी मुख की ओर पीतल का विशाल नंदी स्थापित कराया था। मंदिर के मेन गेट से प्रवेश करते ही नंदी का पिछला हिस्सा दिखाई देता है। कहा जाता है कि नेपाल के तमाम मंदिरों में स्थापित नंदी की प्रतिमाओं में यह सबसे बड़ी है। यहां के चौसठ लिंग मंदिर में शिवलिंग के उत्तर मुख के सामने शिवजी के दो विशाल त्रिशूल स्थापित हैं। दोनों पर डमरू भी हैं। उत्तर-पूर्व कोने में सर्पों के देव वासुकी का मंदिर है। ऐसी मान्यता है, पशुपतिनाथ के दर्शन से पूर्व वासुकी के दर्शन करने चाहिए। इस प्रतिमा की स्थापना 1640 में प्रताप मल्ल ने कराई थी। वासुकी मंदिर के सामने तांडव करते हुए शिव मंदिर है। इसका स्वरूप व शैली दक्षिण भारतीय मंदिर जैसी है। पशुपतिनाथ मंदिर में ही शेषशय्या पर लेटे विष्णु, भगवान त्रिविक्रम, विरूपाक्ष, श्रीकृष्ण व सत्यनारायण मंदिर हैं। दक्षिण दरवाजे के पास चौसठ लिंग मंदिर है, जहाँ पांच सौ शिवलिंग हैं। नेपाल में विभिन्न नामों से चौसठ प्रमुख शिव मंदिर हैं। उसी आधार पर इसका नाम चौसठ लिंग मंदिर पड़ा। कहा जाता है कि पशुपतिनाथ मंदिर के परिसर में हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों को ही प्रवेश करने की अनुमति दी जाती है। गैर हिंदू आगंतुकों को बागमती नदी के दूसरे किनारे से इसे बाहर से देखने की अनुमति प्रदान की जाती है।
