मुंबई। बंबई उच्च न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि नियम बनाते समय मंशा कितनी भी अच्छी क्यों नहीं हो, अगर किसी नियम या कानून का प्रभाव असंवैधानिक है तो उसे हटाना ही होगा। न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ ने हाल ही में संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियमों को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। संशोधित नियमों के तहत, केंद्र को सोशल मीडिया में सरकार के खिलाफ फर्जी खबरों (फेक न्यूज) की पहचान करने का अधिकार है। हास्य कलाकार कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स ने संशोधित नियमों के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर करते हुए उन्हें मनमाना, असंवैधानिक बताया था। याचिकाओं में दलील दी गई है कि संशोधित नियमों का नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर ‘खतरनाक प्रभाव’ होगा। केंद्र सरकार ने इस साल छह अप्रैल को, सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 में कुछ संशोधनों की घोषणा की थी, जिनमें सरकार से संबंधित फर्जी, गलत या गुमराह करने वाली ऑनलाइन सामग्री की पहचान के लिए तथ्यान्वेषी इकाई का प्रावधान भी शामिल हैं। इन तीन याचिकाओं में अदालत से अनुरोध किया गया है कि वह संशोधित नियमों को असंवैधानिक घोषित कर दे और सरकार को नियमों के तहत किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई से रोकने का निर्देश दे। केंद्र सरकार ने इससे पहले अदालत को आश्वासन दिया था कि वह 10 जुलाई तक तथ्यान्वेषी इकाई को अधिसूचित नहीं करेगी।