Sunday, June 29, 2025
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‘ओह साहेब, छोड़ो अंगूर-वंगूर, गांजा की खेती करने दो’, नुकसान देखने आए कृषि मंत्री से अजब मांग

नासिक: ‘रहने दो साहेब, बार-बार हो जाती है बेमौसम बरसात. अंगूर की फसलें हो जाती हैं खराब. आप रात के अंधेरे में नुकसान का जायजा लेने आए हो. इतनी भी जहमत क्यों उठाते हो. हमें गांजे की खेती करने का परमिशन दिला दो. आपको भी यह झूठमूठ का जायजा लेने आना नहीं पड़ेगा और हम भी आपसे राहत की मांग करना छोड़ देंगे.’ बेमौसम बरसात से बर्बाद हुए अंगूर के बाग के नुकसान का जायजा लेने नासिक पहुंचे महाराष्ट्र के शिंदे सरकार में कृषि मंत्री अब्दुल सत्तार से किसानों ने यह अजब मांग कर दी.

कृषि मंत्री भी गजब कर गए थे, रात को फसलों के नुकसान का जायजा लेने पहुंचे थे. ऐसे में किसान भी उन्हें क्या कहते, क्या दिखाते. ऐसे में अब्दुल सत्तार भी पांच मिनट ही रुके, चाय की चुस्की लेते-लेते नुकसान का जायजा लिया और पतली गली से निकलना सही समझा. उनके जाने के बाद कुछ किसानों ने ’50 खोखे, एकदम ओके’ चिल्लाना शुरू कर दिया.

कृषि मंत्री सत्तार ने देर कर दी, अंधेर कर दी; किसान थे तपे बैठे
लगातार दो हफ्ते महाराष्ट्र के कई इलाकों में हुई बेमौसम बरसात से फसलों और फलों के बागों को खासा नुकसान हुआ है. अंगूर, प्याज, गेहूं, सब्जियां सड़ गए, जो रह गए, वो बह गए. अन्य जिलों की तरह नासिक जिले के किसान भी नुकसान की भरपाई की मांग कर रहे हैं. चार महीने पहले हुए सोयाबीन की फसल के नुकसान की भरपाई भी अब तक नहीं हो पाई है. ऐसे में कृषि मंत्री नुकसान का जायजा लेने मंगलवार (21 मार्च) की दोपहर में पहुंचने वाले थे, लेकिन हुजूर ने आते-आते बहुत देर कर दी, शाम की अंधेर कर दी.

रुकते तो फजीहत होती; जल्दी समझ लिए, चाय पिए और निकल लिए
ऐसे में नासिक जिले के निफाड तहसील के किसान तपे बैठे थे. कृषि मंत्री भी जल्दी समझ लिए कि रुकेंगे तो फजीहत होनी तय है. विवेक बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए चाय पिए और निकल लिए. इस दौरान उन्होंने सिर्फ एक कुंभारी गांव के एक अंगूर के बाग का अंधेरे में जायजा लिया, फिर चाय पे चर्चा शुरू कर दी. ऐसी औपचारिकता ने किसानों के मन में नाराजगी भर दी.

ले चला जान इस कदर जाना तेरा, इस आने से तो अच्छा था ना आना तेरा
जो पांच मिनट वे बैठे उस पर भी सफाइयां देते रहे. क्यों लेट हुआ, कैसे लेट हुआ, ट्रैफिक था, नॉन स्टॉप सफर कर रहे थे…वगैरह-वगैरह. किसान भी सोचते रहे नुकसान भरपाई की बात अब करेंगे, तब करेंगे. लेकिन हुजूर ने कहा- अच्छा तो हम चलते हैं. किसानों ने पूछा, फिर कब मिलोगे? कल या कि परसों?…कृषि मंत्री कहते रहे बहुत जल्दी और निकल लिए जल्दी-जल्दी. किसान सोचते रहे, ‘ले चला जान इस कदर जाना तेरा, इस आने से तो अच्छा था ना आना तेरा…’

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